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30.7.09

कॉमरेड हरभजन सिंह सोही को क्रान्तिकारी श्रद्धांजलि

बिगुल प्रतिनिधि


देश के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन की एक अजीम हस्ती कॉमरेड हरभजन सिंह सोही अब हमारे बीच नहीं रहे। इस देश के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी हलकों में कॉमरेड हरभजन का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। देश के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन ने जिन चन्द एक बेहद मेधावी नेताओं को जन्म दिया है, उनमें से एक थे कॉमरेड हरभजन।


16 जून 2009 की सुबह कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन के लिए एक सदमा लेकर आयी। 15 जून की रात को का. हरभजन अचानक दिल का दौरा पड़ने से क्रान्तिकारी काफिले से सदा के लिए बिछड़ गये। इस समय वे कम्युनिस्ट पार्टी रीआरगेनाईजेशन सेण्टर ऑफ इण्डिया (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) के सचिव थे। कॉमरेड सोही का तमाम जीवन इस देश के मेहनतकश तथा उत्पीड़ित जनों की मुक्ति के महान संग्राम को समर्पित था।


कॉमरेड हरभजन का जन्म 28 मार्च 1942 को पंजाब के संगरूर जिले के गाँव भड़ी में एक छोटे पुलिस अधिकारी तेजा सिंह के घर में हुआ। जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही मेहनतकश तथा उत्पीड़ित जन समूहों की मुक्ति उनके जीवन का आदर्श बन चुकी थी। वे मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी विचारधारा के गहन अध्‍ययन तथा क्रान्तिकारी गतिविधियों में जुट गये। पंजाब विश्वविद्यालय पटियाला से अंग्रेजी से एम.ए. करने के बाद राजिन्दर कॉलेज, भटिण्डा में हासिल की लेक्चरर की नौकरी को एक साल बाद ही ठुकरा दिया तथा पेशेवर क्रान्तिकारी जीवन का चुनाव किया।


का. हरभजन के राजनीतिक जीवन की शुरुआत सी.पी.एम. के एक कार्यकर्ता के रूप में हुई। कुछ समय तक वे इस पार्टी के पंजाबी भाषा में निकलने वाले अखबार 'लोक लहर' के सम्पादन से भी जुड़े रहे। उन्हीं दिनों देश के भीतर नक्सलबाड़ी की किसान बग़ावत तथा पूरे विश्व में महान सर्वहारा सांस्कृतिक क्रान्ति की गूँज सुनायी दे रही थी। पच्छिम बंगाल से उठे नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह को हुक्मरान सीपीएम ने बेरहमी से कुचलने की राह पकड़ी। इस पार्टी के चरित्र पर तो क्रान्तिकारी कतारों के मनों में पहले से ही सवाल उठे हुए थे, लेकिन नक्सलबाड़ी के किसान विद्रोह को कुचलने से इस पार्टी की असलियत और भी नंगी हो गयी।


कॉमरेड हरभजन ने सीपीएम के खिलाफ बग़ावत की, एक सही क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी के गठन के लिए प्रयासरत कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की कतारों में शामिल हो गये। ये कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी उस समय कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की अखिल भारतीय तालमेल कमेटी में संगठित थे। बाद में कुछ समय तक का. हरभजन नवगठित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी-लेनिनवादी) में भी सक्रिय रहे।


1951 से, जब से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने संशोधनवाद का रास्ता पकड़ा, लेकर 1967 तक, जब तक नक्सलबाड़ी आन्दोलन शुरू हुआ, भारत का कम्युनिस्ट आन्दोलन संशोधनवाद के गङ्ढे में गिरा रहा। नक्सलबाड़ी किसान विद्रोह का झण्डा उठाने वाले कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों ने संशोधनवाद से निर्णायक विच्छेद किया। नक्सलबाड़ी ने भारत के मेहनतकशों तथा क्रान्तिकारी कतारों में एक नयी उम्मीद जगायी थी। लेकिन जल्द ही इस आन्दोलन पर चारू मजूमदार की वामपन्थी दुस्साहसवादी लाइन के हावी हो जाने से ये उम्मीदें टूटने लगीं। चारू मजूमदार ने वर्ग शत्रुओं के सफाये को वर्ग-संघर्ष का उच्चतम रूप होने का नायाब सिद्धान्त पेश किया। उन्होंने सशस्त्र संघर्ष को वर्ग-संघर्ष का एकमात्र रूप घोषित कर दिया। हर तरह के जनसंघर्ष तथा जनसंगठनों के निर्माण की अर्थवादी संशोधनवाद कहकर भर्त्सना की।


कॉमरेड हरभजन शुरू से ही इस वामपन्थी दुस्साहसवादी लाइन के खिलाफ थे। जनता की मुक्ति सशस्त्र संघर्ष से ही होगी, संसदीय मार्ग से नहीं। इस मार्क्‍सवादी सत्य में उनका दृढ़ विश्वास था। लेकिन उनका कहना था कि साधारण जनता से टूटा हुआ कोई भी सशस्त्र संघर्ष कभी कामयाब नहीं हो सकता। ऐसा संघर्ष क्रान्तिकारी आन्दोलन को लाभ के बजाय नुकसान ही पहुँचाता है। सशस्त्र संघर्ष वर्ग-संघर्ष का एक उच्चतम रूप है। मेहनतकश जनता को वर्ग-संघर्ष के उच्चतम मुकाम तक ले जाने के लिए उसे जगाना होगा, संगठित तथा गोलबन्द करना होगा। जनता के अलग-अलग हिस्सों के जनसंगठन बनाकर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को उसके रोजमर्रा के संघर्षों में भागीदारी करनी होगी।


कॉमरेड हरभजन ने पूरी दृढ़ता के साथ चारू मजूमदार की वामपन्थी दुस्साहसवादी लाइन का विरोध किया तथा जनदिशा पर अडिग रहे। ऐसे समय में जब कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन में वामपन्थी आन्दोलन का बोलबाला था, जनदिशा की बात करने वालों पर ग़द्दार, भगोड़े तथा कायर होने के लेबल चस्पाँ किये जाते थे। कॉमरेड हरभजन पर भी ये सारे लेबल चस्पाँ किये गये। लेकिन उन्होंने इन सबकी कोई परवाह नहीं की। 1970 के शुरू में ही उन्होंने चारू के नेतृत्व में वामपन्थी दुस्साहसवादी लाइन पर चल रही सीपीआई (एमएल) से नाता तोड़ लिया। जनदिशा की अपनी लाइन को व्यवहार में लागू करने के लिए उन्होंने कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की भटिण्डा-फिरोजपुर कमेटी का गठन किया। बाद में उन्होंने इसका नाम पंजाब कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी कमेटी रखा। उन्होंने वामपन्थी दुस्साहसवाद के खिलाफ सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक दोनों धरातलों पर संघर्ष जारी रखा तथा इसे शिकस्त दी। पंजाब कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी कमेटी ने जल्द ही छात्रों, युवाओं, मजदूरों, किसानों के जनसंगठनों का निर्माण शुरू किया तथा इनके नेतृत्व में बड़े-बड़े जन आन्दोलन लड़े गये, जिनमें 1972 का ऐतिहासिक मोगा आन्दोलन भी शामिल है।


उधर सीपीआई (एमएल) की वामपन्थी दुस्साहसवादी लाइन व्यवहार में बुरी तरह पिट गयी। बाद में इन्हें भी जनसंगठनों तथा जनसंघर्षों की जरूरत महसूस होने लगी। भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन के ऐसे नाजुक समय में का. हरभजन ने कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों को एक नयी राह दिखायी। वामपन्थी दुस्साहसवाद के खिलाफ उनका संघर्ष तथा जनसंगठनों के निमार्ण पर उनकी शिक्षाएँ आज भी पहले जितनी ही प्रासंगिक हैं। क्योंकि वामपन्थी दुस्साहसवाद का खतरा अभी भी टला नहीं है तथा आने वाले समय में भी कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन में यह खतरा किसी न किसी रूप में सिर उठाता रहेगा। और ऐसे में कॉमरेड हरभजन की शिक्षाएँ कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की नयी पीढ़ियों का मार्गदर्शन करती रहेंगी।


1976 में कॉमरेड माओ की मौत के बाद चीन की राज्यसत्ता पर संशोधनवादी देङ गुट ने कब्जा कर लिया। देङ गुट ने तीन दुनिया के सिद्धान्त के नाम पर अमेरिकी साम्राज्यवाद से गठबन्धन की वकालत शुरू कर दी। भारत में अनेक कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी संगठन इस नयी घटना को समझ सकने में नाकाम रहे। कॉमरेड हरभजन भारत के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने देङ गुट की संशोधनवादी खसलत को सबसे पहले पहचाना। इस तरह पूरे विश्व के पैमाने पर एक अत्यधिक महत्तवपूर्ण सवाल पर उन्होंने कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों का मार्गदर्शन किया।


का. हरभजन एक मेधावी कम्युनिस्ट सिद्धान्तकार, एक सक्षम संगठनकर्ता के साथ एक बड़े कवि भी थे। उन्होंने अपनी कविताओं, गीतों तथा आलोचनात्मक लेखों से पंजाबी साहित्य को समृध्दि प्रदान की।


कॉमरेड हरभजन भारत के कम्युनिस्ट आन्दोलन में स्वस्थ परम्पराएँ विकसित करने के लिए जीवनभर संघर्ष करते रहे। कुत्सा प्रचार की राजनीति भारत के कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी आन्दोलन के इतिहास पर एक कलंक की तरह है जो आज भी इसका पीछा नहीं छोड़ रही। राजनीतिक विरोधियों से स्वस्थ राजनीतिक-वैचारिक संघर्ष करने के बजाय उन पर व्यक्तिगत हमले करना तथा उनका चरित्रहनन करने तक उतर आना आज तक यहाँ के आन्दोलन में जारी है। कॉमरेड सोही भी ऐसे कुत्सा प्रचार, चरित्रहनन के शिकार होते रहे हैं। लेकिन ख़ुद उन्होंने राजनीतिक संघर्ष में कभी इसका सहारा नहीं लिया। उनका कहना था कि राजनीति फौजी नीति की तरह नहीं होती। जंग में हम दुश्मन की सबसे कमजोर जगह पर हमला करते हैं, लेकिन राजनीति में विरोधी के सबसे मजबूत पक्ष यानी राजनीति पर हमला करते हैं।


एक ओर जहाँ कॉमरेड हरभजन ने बहुत ही नाजुक दौरों में कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों का मार्गदर्शन किया, अनेकों राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय मुद्दों पर ठीक स्टैण्ड लिया, वहीं यह एक दुख की बात है कि तमाम बौद्धिक क्षमता के बावजूद वे भारतीय अर्थव्यवस्था में, यहाँ के उत्पादन सम्बन्धों में आये बदलावों को नहीं समझ सके जिससे सही लाइन पर कम्युनिस्ट क्रान्तिकारियों की एकता की प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ पायी।


भारतीय समाज के चरित्र, क्रान्ति की मंजिल, रणनीति आदि तमाम सवालों पर उनसे मतभेदों के बावजूद हम दिल की गहराइयों से उनके प्रति अपना आदर प्रकट करते हैं तथा उनके क्रान्तिकारी जीवन को सलाम करते हैं।

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