पाँच साल में शहरों को झुग्गी-मुक्त करने के दावे की असलियत
यूपीए सरकार ने बड़े जोर-शोर से दावा किया है कि पाँच साल में देश के शहरों को झुग्गियों से मुक्त कर दिया जायेगा। वैसे तो एक तरह से शहरों में अमीरों और उच्च मध्यवर्ग के लोगों वाले इलाकों को ''झुग्गी-मुक्त'' करने का अभियान लगातार बेरोकटोक चलता ही रहता है। झुग्गी बस्तियों पर बुलडोजर चलाने से लेकर उन्हें आग लगवाकर जगहें खाली कराना और गरीबों को शहरों के बाहर दूर-दराज उठाकर फेंक देने का काम साल भर चलता रहता है। लेकिन अब सरकार कह रही है कि नये तरीके से शहरों को झुग्गी-मुक्त किया जायेगा यानी ग़रीबों को पक्के मकान बनाकर दिये जायेंगे। वैसे खुद सरकार का कहना है कि इस काम के लिए कुछ लाख मकान बनाये जायेंगे। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि झुग्गी-मुक्त करने के दावे की असलियत क्या है?
मोटे अनुमान के तौर पर आज देश के बड़े शहरों में रहने वाली लगभग एक तिहाई आबादी झुग्गियों में रह रही है। (वैसे संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार अगले कुछ सालों में दुनिया के शहरों में रहने वाली आधी आबादी झुग्गियों में होगी!) यानी झुग्गी बस्तियों में रहने वालों की आबादी चन्द लाख नहीं बल्कि कई करोड़ अभी हो चुकी है। पूँजीवादी लुटेरी नीतियाँ गाँव और छोटे शहरों और कस्बों से लगातार जिस तरह गरीबों को उजाड़कर रोजी-रोटी की तलाश में बड़े शहरों में लाकर पटक रही है ऐसे में महानगरों में झुग्गी में रहने वालों की तादाद लगातार बढ़ती ही रहेगी। फिर ये कुछ लाख पक्के मकान कितने लोगों की जरूरत पूरी कर सकेंगे इसे आसानी से समझा जा सकता है।
दूसरी बात यह है कि सरकारी मकान भी उन्हीं लोगों को मिलेंगे जिनके पास झुग्गी के काग़ज या और कोई प्रमाणपत्र होगा। आज शहरी ग़रीबों की एक बहुत बड़ी आबादी तो ऐसी है जिसके पास अपनी पहचान या रोजगार का ही कोई प्रमाण नहीं है, तो भला वे पक्के मकान पाने के बारे में सोच भी कैसे सकेंगे। और ये मकान भी सरकार कोई मुफ्त नहीं देगी बल्कि उनकी लागत तो किश्तों में ही सही गरीबों से वसूली जायेगी। किसी तरह दो वक्त क़ी रोटी का इन्तजाम करने वाली ग़रीबों की भारी आबादी ये किश्तें भी भला कैसे चुका पायेगी? दूसरे, इस तरह की योजनाओं में पहले जो मकान बने हैं उनका बहुत बड़ा हिस्सा तो मध्यवर्गीय लोगों और छोटे-मोटे बिल्डरों के क़ब्जे में आ चुका है। इस योजना का हश्र इससे अलग होगा ऐसा नहीं लगता। कुल मिलाकर, शहरी गरीबों की भारी आबादी के मन में एक झूठी उम्मीद पैदा करने और शोषण और तबाही से उनमें बढ़ते असन्तोष की ऑंच पर पानी के छींटे डालने के अलावा इससे और कुछ नहीं होगा। हाँ, मन्दी की मार झेल रहे निर्माण उद्योग, सीमेण्ट कम्पनियों और बिल्डरों को घटिया मकान बनाकर मोटी कमाई करने का एक और रास्ता मिल जायेगा।
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