मजदूरों की लाशों पर बन रही है दिल्ली मेट्रो
दिल्ली मेट्रो में ठेका मजदूरों के लिए न तो कोई श्रम कानूनों के अधिकार दिए जाते हैं और न कोई सुरक्षा के नियम लागू है। नतीजे के तौर पर आज एक और हादसा हो गया। ग्रेटर कैलाश की कंस्ट्रक्शन साइट पर हुए इस हादसे में अब तक पांच मज़दूरों के मारे जाने और लगभग 15 मज़दूरों के गंभीर रूप से घायल होने की खबर है। दिल्ली मेट्रो और सरकार ने तत्परता दिखाते हुए मामले की लीपापोती शुरू कर दी है। जहां पांच घण्टे बीत जाने के बावजूद अभी तक एफआईआर भी दर्ज नहीं की गई है वहीं मेट्रो प्रवक्ता और शीला दीक्षित ने बार-बार मरने वालों के गैमन इंडिया के कर्मचारी होने की बात कहकर मामले से डीएमआरसी और सरकार के पल्ला झाड़ने के संकेत दे दिये हैं।
दिल्ली मेट्रो में यह कोई पहला हादसा नहीं है जिसमें मजदूरों की जानें गई हैं। डीएमआरसी अब तक मरने वालों की कुल संख्या 69 बताता है पर ये संख्या ज्यादा हो सकती है। दिल्ली मेट्रो, कंस्ट्रक्शन कंपनियां और ठेकेदार ये सब मजदूरों से सिर्फ काम करवाने के लिए हैं। लेकिन जब दिल्ली मेट्रो के मजदूर इन्हीं की लापरवाही और बदइंतजामी से अकाल मौत मारे जाते हैं तो जिम्मेदारी कोई नहीं लेता। दिल्ली मेट्रो में सुरक्षा इंतजामों और श्रम कानूनों का खुलकर मखौल उड़ाया जाता है। मजदूरों की जान की कोई कीमत नहीं समझी जाती है।
दिल्ली मेट्रो के मजदूरों ने जब-जब इस सबके खिलाफ आवाज उठाई, तब-तब इस आवाज को ठेकेदार, कंपनियों, मेट्रो प्रशासन से लेकर सरकार तक ने निर्ममता से कुचल दिया।
बार-बार होने वाली ये मौतें बताती हैं कि देश और दिल्ली की शान बताए जाने वाली दिल्ली मेट्रो में मजदूरों की जान कितनी सस्ती समझी जाती है।
दिल्ली मेट्रो में गड़बडि़यों और घोटालों के बारे में 'बिगुल' अखबार लगातार रिपोर्टिंग देता रहा है। कुछ समय पहले मेट्रो सफाईकर्मियों ने मेट्रो की ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी और मेट्रो कामगार संघर्ष समिति का गठन किया। मेट्रो, पुलिस और प्रशासन के तमाम दबावों के बावजूद यह आंदोलन लगातार गति पकड़ता जा रहा है। दिल्ली मेट्रो से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों के लिए नीचे दिए गए लिंक देखें।
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1 कमेंट:
मेट्रो में भी यूनियन बनवा कर आप इसका भी बेडा गर्क कर देंगे जैसे अन्य औधोगिक इकाईयों का कर रखा है | दूसरी बात मेट्रो का निर्माण कार्य ठेके पर है वहां काम करने वाले मजदुर सम्बंधित क. की जिम्मेदारी है न कि मेट्रो की |
भाई आजतक हमने तो मजदूरों के हक़ के लिए इन्कलाब के नारे लगाने वालों को मजदूरों के लुटेरे बने ही देखा है मजदूरों की चिंता न सरकार को है न क. को और यूनियन वालों को तो बिलकुल नहीं | यूनियन वाले तो मजदूरों के नाम पर अपनी रोटियां सकते है |
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