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1.9.11

मारुति सुज़ुकी, मानेसर का मज़दूर आंदोलन संघर्ष को व्‍यापक और जुझारू बनाना होगा

गुड़गांव, 1 सितम्‍बर, सुबह 9 बजे। मारुति सुज़ुकी, मानेसर के मज़दूरों पर मैनेजमेंट द्वारा थोपे गए आंदोलन का आज चौथा दिन है। 29 अगस्‍त की सुबह से की गई जबरन तालाबन्‍दी के बाद से 49 मज़दूर बिना कोई कारण बताये बर्खास्‍त या निलंबित किये जा चुके हैं। मैनेजमेंट ने करीब 2000 ठेका मज़दूरों और अप्रेंटि‍सों को अलग करने के लि‍ए 1 सि‍तम्‍बर तक वि‍शेष छुट्टी घोषि‍त कर दी थी।  आज सुबह लगाई गई नई नोटि‍स में इसे 5 सि‍तम्‍बर तक बढ़ा दि‍या गया है। ठेका मज़दूर और अप्रेंटि‍स आसपास के जि‍न गांवों में कि‍राये पर रहते हैं उनके सरपंचों के ज़रि‍ए मज़दूरों पर दबाव डाला जा रहा है कि‍ वे आन्‍दोलन से दूर रहें। कारखाना गेट की ओर आ रहे मज़दूरों को रास्‍ते में रोककर गांवों के दबंगों द्वारा डराने-धमकाने की कई घटनाएं सामने आने के बाद कल मज़दूरों ने यह नि‍र्णय लि‍या कि‍ ठेका मज़दूर और अप्रेंटि‍स कंपनी की वर्दी में नहीं आयेंगे। मैनेजमेंट मज़दूरों में भ्रम पैदा करने और उनका मनोबल तोड़ने के लिए तमाम तरह के घटिया हथकंडे अपनाने में लगा हुआ है। मीडिया में कभी यह प्रचार किया जा रहा है कि प्‍लांट में प्रोडक्‍शन शुरू हो गया है तो कभी यह कहा जा रहा है कि प्रोडक्‍शन को गुड़गाँव प्‍लांट में शिफ्ट करने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि मज़दूरों पर इन हथकंडों का कोई असर नहीं है और वे लड़ने के लिए तैयार हैं।

1 सितम्‍बर को 4 बजे से मारुति सुज़ुकी कारख़ाने के गेट नं. 2 पर सभा होगी जिसमें गुड़गाँव और आसपास की कई कंपनियों की यूनियनें शामिल होंगी। कहा जा रहा है कि आगे के कार्यक्रम की घोषणा उसी सभा में की जायेगी।

पिछले तीन दिनों के अनुभव से ऐसा लगता है कि पिछले जून की हड़ताल से ज़रूरी सबक नहीं सीखे गये हैं। कुछ बिन्‍दु जिन पर मज़दूरों और इस आन्‍दोलन के समर्थकों को सोचने की ज़रूरत है:

-     यह साफ़ है कि मैनेजमेंट ने पूरी योजना और तैयारी के साथ यह हमला किया है। लेकिन मज़दूरों की ओर से इसकी जवाबी कार्रवाई में योजनाबद्धता, स्‍पष्‍ट दिशा, तेज़ी और अपनी ताक़त का उचित इस्‍तेमाल करने की क्षमता की कमी साफ़ दिखाई देती है।
-       - पहले तीन दिनों में कोई प्रभावी कार्रवाई की ही नहीं जा सकी। गेट पर सुबह-शाम एक-डेढ़ घंटे की सभा के अलावा आन्‍दोलन को चलाने का कोई कार्यक्रम नहीं था। सैकड़ों मज़दूर सारे दिन छोटी-छोटी टोलियों में गेट के आसपास के इलाके में यहां-वहां बैठे रहते थे।
-       - जून की हड़ताल की ही तरह इस बार भी व्‍यापक मज़दूर आबादी को आन्‍दोलन से जोड़ने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। एटक, सीटू, एचएमएस जैसी बड़ी यूनियनों के नेताओं ने 40 यूनियनों के समर्थन की घोषणा कर दी है और आज शाम की सभा में इन यूनियनों से जुड़े कुछ मज़दूर शामिल भी होंगे। लेकिन मारुति के आन्‍दोलन में उठे मुद्दे गुड़गांव के सभी मज़दूरों के साझा मुद्दे हैं -- लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, जबरन ओवरटाइम, वेतन से कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकारों का हनन और लगभग गुलामी जैसे माहौल में काम कराने से मज़दूर त्रस्‍त हैं और समय-समय पर इन मांगों को लेकर लड़ते रहे हैं। बुनियादी श्रम क़ानूनों का भी पालन लगभग कहीं नहीं होता। इन मांगों पर अगर मारुति के मज़दूरों की ओर से गुडगांव, मानेसर, धारूहेड़ा, बवाल बेल्‍ट के लाखों मज़दूरों का आह्वान किया जाता और केन्‍द्रीय यूनियनें ईमानदारी से तथा अपनी पूरी ताक़त से उसका साथ देतीं तो एक व्‍यापक जन-गोलबन्‍दी की जा सकती थी। इसका स्‍वरूप कुछ भी हो सकता था - जैसे, इसे एक ज़बर्दस्‍त मज़दूर सत्‍याग्रह का रूप दिया जा सकता था।
सभी तस्‍वीरें 'बिगुल मज़दूर दस्‍ता' के साथियों ने खींची हैं

-       पिछली बार की ही तरह इस बार भी ऐसा भ्रम पैदा हो रहा है जैसे पूरे गुड़गांव क्षेत्र के मज़दूर आन्‍दोलन के समर्थन में सक्रिय हैं। बेशक, मज़दूर आन्‍दोलन का समर्थन करते हैं, लेकिन इस मौन समर्थन को संघर्ष की एक प्रबल शक्ति में तब्‍दील करने के लिए सक्रिय प्रयासों और योजना की ज़रूरत होती है। यूनियनों की ओर से किये गये एकाध कार्यक्रमों और अखबारी बयानों मात्र से यह समर्थन कोई ताक़त नहीं बन सकता। पिछली बार का उदाहरण सामने है जब 5 जून की गेट मीटिंग के बाद तमाम बड़ी यूनियनें महज़ ज़बानी जमाखर्च करती रहीं और एक भी प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सकीं। कई दिन बाद महज़ दो घंटे के टूलडाउन का नोटिस दिया गया लेकिन ''मुख्‍यमंत्री के आश्‍वासन पर'' उसे दो बार टाला गया और फिर इतने आगे की तारीख तय की गई कि उसके पहले ही समझौता हो गया।

-      इतने लंबे चले आन्दोलन के दौरान आम मज़दूर आबादी को आन्‍दोलन से जोड़ने के लिए एक भी पर्चा या पोस्‍टर तक नहीं निकाला गया। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। पूरे इलाके की आम मज़दूर आबादी आन्‍दोलन के बारे में उतना ही जानती है जितना अख़बारों या टीवी द्वारा बताया जा रहा है। भारी संसाधनों से लैस तमाम केन्‍द्रीय यूनियनें अगर एक पर्चा या पोस्‍टर तक नहीं निकाल सकतीं तो यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि वे आन्‍दोलन को व्‍यापक बनाना ही नहीं चाहतीं।

-      मारुति का नेतृत्‍व भी आम मज़दूरों को निर्णयों में भागीदार बनाने और उनके जोश और सक्रियता का कोई इस्‍तेमाल कर पाने में अब तक विफल रहा है। हज़ारों युवा मज़दूर बिना किसी योजना और बिना किसी काम के हैं जबकि उन्‍हें लेकर जन गोलबन्‍दी और प्रचार के विभिन्‍न रूपों का इस्‍तेमाल किया जा सकता था।

-    आन्‍दोलन के पक्ष में दबाव बनाने के लिए देश के विभिन्‍न मज़दूर संगठनों, यूनियनों और नागरिक समाज से सम्‍पर्क करने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। देश और दुनिया की तमाम ऑटोमोबाइल यूनियनों तथा खासकर सुज़ुकी मोटो कॉर्प के विभिन्‍न प्‍लांट की यूनियनों से भी संपर्क किया जाता तो मैनेजमेंट और सरकार पर दबाव बनाया जा सकता था। यूनियन नेतृत्‍व को इस बारे में कई बार सुझाव देने पर भी वह इसके महत्‍व को समझने में अब तक विफल रहा है।

- दरअसल, मैनेजमेंट और सरकार की मंशा और नीयत को लेकर मज़दूरों तथा नेतृत्‍व में काफी भ्रम है। वे इस बात को नहीं समझ पा रहे कि यह सब यूनियन गतिविधियों को सुनियोजित ढंग से ख़त्‍म करने की कोशिश का हिस्‍सा है जिसमें राज्‍य सरकार पूरी तरह से कंपनी के साथ है। भूमंडलीकरण के दौर की नीतियों के तहत पूरे देश और दुनियाभर में यूनियन अधिकारों पर बढ़ते हमलों और मंदी तथा बढ़ती होड़ के कारण कंपनियों पर लागत कम करने के दबाव के परिप्रेक्ष्‍य में भी वे इन कार्रवाइयों को नहीं देख पा रहे। उन्‍हें ऐसा लगता है कि मैनेजमेंट में बैठे कुछ व्‍यक्तियों की प्रतिशोधी कार्रवाइयों और प्रशासन द्वारा कंपनी से पैसे खा लेने के चलते ये कार्रवाइयां की जा रही हैं। इसके लिए सबसे अधिक ज़ि‍म्‍मेदार वे कथित ''वाम'' यूनियनें हैं जो मज़दूरों के बीच राजनीतिक प्रचार के काम को तो बहुत पहले ही तिलांजलि दे चुकी थीं और अब तो कोई जुझारू आर्थिक संघर्ष करने के काबिल भी नहीं रह गई हैं। चन्‍द एक रस्‍मी कार्रवाइयों से आगे कुछ करने की उनकी औकात भी नहीं रह गई है और अब नीयत भी नहीं है। उनका सबसे बड़ा काम है, कुछ गरम-गरम जुमलेबाज़ि‍यों के बाद मज़दूरों के गुस्‍से पर पानी के छींटे डालना और किसी भी आन्‍दोलन को जुझारू और व्‍यापक होने से रोककर किसी-न-किसी समझौते में ख़त्‍म करा देना। एटक के गुड़गांव इलाके के प्रभारी के शब्‍दों में ऐसे समझौते ''विन-विन'' होते हैं यानी मज़दूरों और मैनेजमेंट दोनों की जीत होती है। लेकिन जैसा मारुति के पिछले समझौते ने साफ़ कर दिया, वास्‍तव में जीत मैनेजमेंट की ही होती है।

-- मारुति सुज़ुकी के मज़दूर आन्‍दोलन के समर्थन में नागरिक मोर्चा
संपर्क: सत्‍यम (9910462009), रूपेश (9213639072),  सौरभ (9811841341)

बिगुल मज़दूर दस्‍ता की ओर से आन्‍दोलन के समर्थन में जारी पर्चा (देखें संलग्‍न पीडीएफ़ फ़ाइल) Pamphlet Distributed by Bigul Mazdoor Dasta_31.8.11

कल शाम मारुति गेट पर एकत्र मज़दूरों के बीच इसे बाँटा गया और आज से मानेसर तथा गुड़गांव के विभिन्‍न कारखानों और मज़दूर इलाकों में इसका वितरण किया जायेगा।

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15.6.11

मारुति सुजुकी के मजदूरों के समर्थन में सभा कर रहे कार्यकर्ताओं पर कंपनी के सिक्योरिटी गार्डों द्वारा हमले की कड़ी निन्दा


गुंडों और ग्रुप फोर के सिक्योरिटी गार्डों ने कार्यकर्ताओं के साथ कई जगह मारपीट की, पर्चे छीने, अपहरण करने की कोशिश

नई दिल्ली, 15 जून। मानेसर स्थित मारुति सुजुकी के कारखाने में जारी मज़दूर आन्दोलन के समर्थन में मजदूरों के बीच सभाएं कर रहे बिगुल मजदूर दस्ता के कार्यकर्ताओं पर कल शाम और आज सुबहगुड़गांव तथा मानेसर में कई स्थानों पर मारुति सुजुकी के प्राइवेट सिक्योरिटी गार्डों और गुंडों ने हमला किया और मारपीट की।
घटना का ब्योरा देते हुए बिगुल मजदूर दस्ता के रूपेश कुमार ने बताया कि वे लोग मजदूर आन्दोलन के समर्थन में गुड़गांव तथा मानेसर में मजदूरों के बीच जगह-जगह सभाएं कर रहे हैं तथा पर्चे बांट रहे हैं। इसी क्रम में कल शाम करीब 7.30 बजे जब वे कार्यकर्ताओं की टोली के साथ मानेसर स्थित मारुति कारखाने के निकट अलियर गांव में मजदूरों की सभा कर रहे थे तो मोटरसाइकिलों और जीप में सवार होकर पहुंचे एक दर्जन से अधिक हथियारबन्द लोगों ने अचानक उन पर हमला कर दिया। इनमें मारुति सुजुकी कंपनी की सिक्योरिटी का काम संभाल रहे ग्रुप फोर कंपनी के वर्दीधारी गार्ड भी शामिल थे। इन लोगों ने कार्यकर्ताओं के साथ गाली-गलौज और मारपीट की तथा वहां उपस्थित करीब 250 मजदूरों को हथियार दिखाकर आतंकित करके भगा दिया। वे कह रहे थे कि यह मारुति का इलाका है और यहां किसी को भी मारुति के मैनेजमेंट के खिलाफ बोलने की इजाजत नहीं दी जाएगी।
आज सुबह गुड़गांव स्थित मारुति के कारखाने के निकट मौलाहेड़ा गांव तथा सेक्टर 22 में भी मारुति सुजुकी के प्राइवेट सिक्योरिटी गार्डों ने कार्यकर्ताओं की टोली पर हमला किया। इस इलाके में बड़ी संख्या में मारुति के कर्मचारी रहते हैं। दो गाड़ियों में पहुंचे हथियारबन्द गार्डों ने 8-9 कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की और उनके पास मौजूद 2000 से अधिक पर्चे छीन लिये। वे दो कार्यकर्ताओं को जबरन गाड़ी में बैठाकर ले जाने की भी कोशिश कर रहे थे लेकिन अन्य कार्यकर्ताओं तथा मजदूरों के प्रतिरोध करने पर उन्हें छोड़ दिया और हथियार लहराते हुए धमकियां देते हुए चले गए। इनमें से एक सिक्योरिटीगार्ड का नाम राजकुमार और फोन नंबर 9891982269 है।
बिगुल मज़दूर दस्ता, दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन तथा मारुति सुजुकी के मजदूर आंदोलन के समर्थन में नागरिक मोर्चा ने इस घटना की कठोर निंदा करते हुए कहा है कि हरियाणा सरकार की खुली शह पर सिक्योरिटी गार्ड की ड्रेस में मारुति के भाड़े के गुण्डे मज़दूरों का समर्थन करने वालों के साथ भी अब खुलेआम गुण्डागर्दी कर रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे गुड़गाँव में सरकार का नहीं मारुति का राज चल रहा है, पुलिस और प्रशासन का का काम मारुति के सिक्योरिटी गार्डों ने हथिया लिया है।
उन्होंने कहा कि इस तरह की घटिया हरकतें करके मारुति सुजुकी कम्पनी अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का काम कर रही है। अगर उसे लगता है कि डरा-धमकाकर वह मज़दूरों की आवाज़ बन्द करने में कामयाब हो जायेगी तो वह बहुत बड़ी गलतफहमी की शिकार है। कम्पनी की गुण्डागर्दी और आन्दोलन तोड़ने के घटिया हथकण्डों का सारे देश और दुनियाभर में भण्डाफोड़ किया जाएगा। हाल ही में गठितमारुति सुजुकी के मजदूर आंदोलन के समर्थन में नागरिक मोर्चा ने देशभर के नागरिक अधिकार कर्मियों, बुद्धिजीवियों, न्यायविदों, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से अपनी न्यायसंगत मांगों के लिए शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे मज़दूरों का साथ देने की अपील की है।
मोर्चा ने कहा है कि मैनेजमेंट मजदूरों को थकाकर, डरा-धमकाकर और घटिया चालों से उनका मनोबल तोड़कर आंदोलन को खत्म कराने की कोशिश कर रहा है। ठेका मजदूरों को लगातार अपना हिसाब लेकर चले जाने के लिए बाध्य किया जा रहा है। आंदोलन खत्म कराने के लिए मजदूरों के परिवारों तक पर दबाव डाला जा रहा है। इसीलिए वार्ताओं के नाटक को जानबूझकर लंबा खींचा जा रहा है जबकि मारुतिसुजकी किसी भी मांग पर समझौते के लिए तैयार नहीं हैं।
मोर्चा ने केंद्रीय यूनियनों की भूमिका की आलोचना करते हुए कहा है कि कुछ यूनियनें शुरू से इस आंदोलन को हड़प लेने और नवगठित स्वतंत्र यूनियन को ‘‘अपनी’’ यूनियन बताने में लगी हुई हैं मगर सच्चाई यह है कि पिछले डेढ़ सप्ताह से जारी इस जुझारू संघर्ष के समर्थन में अखबारी बयानबाजी के अलावा उन्होंने कुछ भी नहीं किया है।
गुड़गांव और उसके आसपास फैले विशाल औद्योगिक क्षेत्र में स्थित सैकड़ों कारखानों में कम से कम 20 लाख मजदूर काम करते हैं। अकेले आटोमोबाइल उद्योग की इकाइयों में करीब 10 लाख मज़दूरकाम करते हैं। अत्याधुनिक कारखानों में दुनिया भर की कंपनियों के लिए आटो पार्ट्स बनाने वाले इन मजदूरों की कार्यस्थितियां बहुत बुरी हैं। इनमें से 90 प्रतिशत से भी अधिक ठेका मजदूर हैं जो 4000-5000रुपये महीने पर 10-10, 12-12 घंटे काम करते हैं। उनके काम की रफ्तार और काम बोझ बेहद अधिक होता है और लगातार सुपरवाइजरों तथा सिक्योरिटी वालों की गाली-गलौज और मारपीट तक सहनी पड़ती है। अधिकांश कारखानों में यूनियन नहीं है और जहां है भी वहां अगुआ मजदूरों को तरह-तरह से प्रताड़ित करने और निकालने के हथकंडे जारी रहते हैं। स्थापित बड़ी यूनियनें जुबानी जमाखर्च से ज्यादा कुछ नहींकरतीं और बहुत से मामलों में तो मजदूरों के साथ दगाबाजी कर चुकी हैं। ऐसे में यूनियन बनाने के अधिकार का मसला पूरे गुड़गांव इलाके का एक आम और सर्वव्यापी मुद्दा है।
बिगुल मजदूर दस्ता की ओर से बांटे जा रहे पर्चे में कहा गया है कि गुड़गाँव ही नहीं, सारे देश के मज़दूरों से आज यूनियन बनाने का हक छीना जा रहा है ताकि मज़दूर अपने शोषण और लूट केख़िलाफ एक होकर आवाज़ भी न उठा सकें। इसीलिए मारुति के मज़दूरों की लड़ाई हर मज़दूर के हक की लड़ाई है। अगर इस आन्दोलन को कुचल दिया गया तो गुड़गाँव की तमाम फैक्टरियों में मालिकान पहले से भी ज़्यादा हमलावर हो जायेंगे और मज़दूरों की आवाज़ को और भी बुरी तरह दबाया जायेगा। अगर मज़दूर इस लड़ाई में कामयाब होते हैं तो पूरे इलाके में यूनियन बनाने के संघर्ष को ताकत मिलेगी। पर्चे में अन्य मजदूरों और नागरिकों का आह्वान किया गया है कि मजदूरों की न्यायसंगत मांगें मनवाने के लिए वे भी सरकार पर दबाव बनाएं
-  मारुति के मजदूर आन्दोलन के समर्थन में नागरिक मोर्चा, दिल्ली

सन्दीप, फोनः 8447011935, ईमेलः sandeep.samwad@gmail.com
- रूपेश कुमार, बिगुल मज़दूर दस्ता, बादली, दिल्ली
फोनः 9213639072, ईमेलः bigul@rediffmail.com
- अजय स्वामी, दिल्ली मेट्रो कामगार यूनियन
फोनः 9540436262, ईमेलः ajaynbs@gmail.com

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1.6.11

गोरखपुर के मज़दूरों के नाम मुंबई के गोलीबार निवासियों का संदेश


मुंबई, 30 मई। खार (पूर्व) में बस्तियों-सोसायटी-झुग्गियों को ढहाने के प्रशासन के इरादे आखिरकार खुद ही धूल में मिल गए। वहां के बाशिंदों की एकजुटता और देशभर से उन्‍हें मिले समर्थन तथा सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर एवं उनके साथियों की भूख हड़ताल ने माफिया-बिल्‍डर-प्रशासन के गठजोड़ को पीछे हटने को मजबूर कर दिया।
बीती 28 मई की दोपहर को उस समय पूरा इलाका ‘बिल्‍डरों की जागीर नहीं, मुंबई हमारी है’, ‘घर हमारे हक़ का-नहीं किसी के बाप का’, ‘इंक़लाब जिंदाबाद’, ‘आवाज दो, हम एक हैं…’, ‘लड़ेंगे लड़ेंगे-जीतेंगे जीतेंगे’ के नारों से गूंज उठा जब मुख्‍यमंत्री के आदेश पर मुख्‍य सचिव ने धरनास्‍थल पर आकर इस संबंध में अधिसूचना जारी की। अब सिविल सोसायटी के प्रतिनिधियों, शासन-प्रशासन की दो कमेटियां पूरे मामले की जांच करेंगी और कोई निष्‍कर्ष आने तक वहां बुलडोजर नहीं चलेंगे। एक कमेटी गणेश कृपा सोसायटी और दूसरी कमेटी बाकी 15 बस्तियों, झुग्गियों, कालोनियों के मामले की पूरी जांच करेगी।

ज्ञात हो कि पिछले दिनों कलेक्टर ने बुलडोजर चलवा कर यहां के  करीब 25 घर ढहा दिए थे।। यह कार्रवाई मुख्यमंत्री की ओर से गोलीबार नगर में तोड़फोड़ की कार्रवाई न करने के आदेश के बावजूद हुई थी। सीएम ने इस मामले में रिडिवेलपमेंट करने वाले बिल्डर शिवालिक वेंचर की ओर से किए जा रहे कथित भ्रष्टाचार के जांच का आदेश भी दिया था। इसके बावजूद स्‍थानीय प्रशासन-माफिया-बिल्‍डरों का गठजोड़ यहां की बस्तियों-सोसायटियों-झुग्गियों को नेस्‍तनाबूद करने पर जैसे आमादा ही था।
गोरखपुर मजदूर आंदोलन की ओर से चार दिन पहले गोलीबार के निवासियों के नाम लिखित और रिकॉर्डेड संदेश जारी किया गया था। इस संदेश में संयुक्‍त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा केप्रमोद कुमार ने वहां आंदोलनरत् अपने मेहनतकश साथियों से कहा था कि वे एकजुट रहेंगे तो जीत निश्चित ही उनकी होगी। गोरखपुर में मालिक-प्रशासन-गुण्‍डा–नेता गठजोड़ के बारे में बताते हुए उन्‍होंने गोलीबार के निवासियों को गोरखपुर के मजदूर आंदोलन की ओर से समर्थन दिया था।
गोलीबार के निवासियों ने जीत के बाद गोरखपुर मजदूर आंदोलन के लिए अपना संदेश भेजा है और अपना समर्थन जाहिर किया है। वहां से इस आंदोलन की एक नेता प्रेरणा गायकवाड़ ने अपने संदेश में कहा है, ”हम तो अपनी लड़ाई जीत गए हैं, अब आपको अपनी लड़ाई जारी रखनी है। आप लड़ाई जारी रखें हम आपके साथ हैं।”
गणेश कृपा सोसायटी के देवान और फ़ैज़ा ने भी गोरखपुर मजदूर आंदोलन के नाम अपने संदेश में कहा है कि ”गणेश कृपा सोसायटी के निवासी गोरखपुर के भ्रष्‍ट अधिकारियों द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की कड़ी निंदा करते हैं और आपके आंदोलन को पूरा समर्थन देते हैं। आप लड़ाई जारी रखिए, जीत आपकी ही होगी।”
संदेश सुनने के लिए नीचे दिए बटन पर क्लिक करें।










  

आंदोलन संबंधी खबरों के लिए यह ब्‍लॉग देखें: http://khareastandolan.wordpress.com

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गोरखपुर मज़दूर आन्दोलन के दमन के विरोध में कोलकाता में सैकड़ों मज़दूरों का प्रदर्शन


एन.ए.पी.एम. के सन्दीप पाण्डेय के नेतृत्व में जांच दल ने गोरखपुर के कारखानों में श्रम कानूनों के उल्लंघन पर चिन्ता जताई

वयोवृद्ध सामाजिक कर्मी कमला पाण्डेय ने मुख्यमंत्री मायावती को फिर पत्र भेजकर मज़दूरों का दमन-उत्‍पीड़न रोकने की मांग की

नई दिल्‍ली, 29 मई। गोरखपुर में मज़दूरों के दमन और उत्तर प्रदेश सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में कोलकाता में सैकड़ों मज़दूरों ने प्रदर्शन किया तथा राज्यपाल के माध्यम से मुख्यमंत्री मायावती को ज्ञापन भेजा। श्रमिक संग्राम समिति के बैनर तले कोलकाता इलेक्ट्रिक सप्लाई कारपोरेशन, हिन्दुस्तान इंजीनियरिंग एंड इंडस्ट्रीज लि., भारत बैटरी, कोलकाता जूट मिल, सूरा जूट मिल, अमेरिकन रेफ्रिजरेटर्स कं. सहित विभिन्न कारखानों के 500 से अधिक मज़दूरों ने कल कोलकाता के प्रशासकीय केंद्र एस्प्लेनेड में विरोध प्रदर्शन किया। दिल्ली, पंजाब तथा महाराष्ट्र में भी कुछ संगठन इस मुद्दे को लेकर प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं।
कोलकाता में प्रदर्शन के बाद तीन सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल पश्चिम बंगाल के राज्यपाल एम.के. नारायणन से मिला और गोरखपुर में आन्दोलनरत मज़दूरों की मांगों के समर्थन में तथा उत्तर प्रदेश सरकार की मजदूर विरोधी नीतियों के विरोध में एक ज्ञापन उन्हें सौंपा। प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से आग्रह किया कि वे पश्चिम बंगाल के मज़दूरों एवं बुद्धिजीवियों की भावनाओं से उ.प्र. की मुख्यमंत्री सुश्री मायावती को अवगत कराएं।
प्रदर्शन के दौरान सभा में वक्ताओं ने कहा कि अपने अधिकारों के लगातार हनन के खिलाफ मज़दूरों में नई चेतना जाग रही है और वे समझौतापरस्त पुरानी ट्रेड यूनियनों से अलग नए सिरे से जगह-जगह संगठित होकर संघर्ष कर रहे हैं। शासक वर्ग इस नई प्रवृत्ति को शुरू में ही कुचल देना चाहते हैं। गोरखपुर में पिछले एक माह से संघर्षरत मज़दूरों पर मालिकान और प्रशासन के हमले इसी का उदाहरण है। वक्ताओं ने ऐसे सभी संघर्षों के अग्रणी मज़दूरों का देशव्यापी मंच बनाने की जरूरत पर बल दिया जिससे कि शासकों-शोषकों के हमलों का एक होकर सामना किया जा सके। सभा को विभिन्न कारखाना यूनियनों के नेताओं के अतिरिक्त कोलकाता से प्रकाशित अखबार ‘श्रमिक इश्तेहार’ के संपादक तुषार भट्टाचार्य तथा गाजियाबाद से प्रकाशित पाक्षिक ‘हमारी सोच’ के संपादक सुभाषीश डी. शर्मा ने भी संबोधित किया।
इस बीच मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित प्रसिद्ध सामाजिक कर्मी सन्दीप पाण्डेय के नेतृत्व में जन आन्दोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम.), पी.यू.सी.एल. तथा पीपुल्स यूनियन फार ह्यूमन राइट्स (पी.यू.एच.आर.) की एक संयुक्त जांच टीम ने कल गोरखपुर का दौरा किया और 3 मई के गोलीकांड तथा लगातार जारी श्रमिक अशान्ति के कारणों की जांच-पड़ताल की। जांच टीम ने गोलीकांड के बाद से आज तक अस्पताल में भरती घायल मज़दूर पप्पू जैसवाल से मुलाकात की और फिर अंकुर उद्योग के मज़दूरों से मिलने बरगदवां पहुंची जहां वी.एन. डायर्स के दो तालाबंद कारखानों के मज़दूर भी उनसे मिलने पहुंच गए।
मज़दूरों ने जांच दल को फैक्ट्रियों में हो रहे श्रम कानूनों के उल्लंघन और काम की परिस्थितियों के बारे में विस्तार से बताया। टीम ने इस बात पर हैरत जाहिर की कि मजदूरों के घायल होने की स्थिति में कारखानों के अंदर प्राथमिक उपचार तक की व्यवस्था नहीं है। कल ही अंकुर उद्योग में एक मज़दूर की उंगली कट गई तो उसे पट्टी बंधवाने के लिए भी बाहर ले जाना पड़ा। 3 मई की घटना में भी जिन मज़दूरों को गोली या छर्रे लगे उन्हें मालिक या प्रशासन की ओर से कोई मदद नहीं मिली। जांच दल ने बाद में गोरखपुर के जिलाधिकारी से भी मुलाकात की। जांच दल में श्री संदीप पाण्डेय के अलावा पी.यू.सी.एल. के फतेहबहादुर सिंह एवं राजीव यादव और पी.यू.एच.आर. के मनोज सिंह शामिल थे। जांच दल 3 जून को लखनऊ में अपनी विस्‍तृत रिपोर्ट जारी करेगा लेकिन गोरखपुर से जारी जांच दल की विज्ञप्ति में गोलीकांड और मज़दूरों पर लाठीचार्ज की न्‍यायिक जांच कराने तथा वी.एन. डायर्स में तालाबंदी समाप्‍त कराकर निकाले गए मज़दूरों को काम पर लेने की मांग की गई है।
इधर लखनऊ में वयोवृद्ध पूर्व शिक्षक नेता एवं अनुराग ट्रस्ट की अध्यक्ष कमला पाण्डेय ने आज मुख्यमंत्री मायावती के नाम एक और पत्र भेजकर कहा है कि गोरखपुर के मज़दूरों पर लगातार जारी दमन-उत्पीड़न को यदि बंद नहीं किया गया तो वे स्वयं गोरखपुर पहुंचकर आमरण अनशन शुरू कर देंगी। उन्होंने कहा कि सत्ता के दम्भ में सुश्री मायावती शायद यह भूल गई हैं कि वे प्रदेश के लाखों मज़दूरों की भी प्रतिनिधि हैं। मज़दूरों की आवाज़ को अगर इस तरह से लगातार अनसुना किया जाता रहेगा तो आगामी चुनाव में भी उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
देश के विभिन्न भागों से गोरखपुर में मजदूरों के दमन की निन्दा और मायावती सरकार को ज्ञापन आदि भेजने का अभियान लगातार जारी है। कुछ प्रमुख सामाजिक कर्मियों और बुध्दिजीवियों का एक प्रतिनिधिमंडल लखनऊ जाकर मुख्यमंत्री से भी मुलाकात करने वाला है।

कृपया इस ऑनलाइन याचिका पर हस्‍ताक्षर करके मजदूरों के दमन का विरोध करें : http://bit.ly/kvIuIq
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26.5.11

12 मज़दूर नेता ज़मानत पर रिहा, आन्दोलन और तेज करने का ऐलान

प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर प्रशासन के पक्षपात और दमन-उत्पीड़न की जानकारी दी

नई दिल्‍ली, 26 मई। गोरखपुर में पिछले 20 मई को गिरफ्तार किए गए 12 मज़दूर नेता आज ज़मानत पर रिहा कर दिए गए। रिहा होने के बाद संयुक्त मज़दूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के तपीश मैन्दोला ने कहा कि मज़दूरों की मांगों को लेकर आन्दोलन अब और तेज किया जाएगा।
     उन्होंने कहा कि मालिकान की शह पर प्रशासन डरा-धमकाकर और लाठी-गोली-जेल के सहारे मज़दूर आन्दोलन को कुचलने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह कामयाब नहीं होगा। मज़दूर अपने मूलभूत अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और वे अब पीछे नहीं हटेंगे। तपीश ने कहा कि वी.एन. डायर्स में जबरन तालाबन्दी करके और अंकुर उद्योग में मज़दूरों पर गोलियां चलवाकर मालिकों ने यह लड़ाई मज़दूरों पर थोपी है। मगर प्रशासन मालिकों के सुर में सुर मिलाकर उल्टा हमें ही अराजक और विकास-विरोधी बता रहा है।
     इस बीच संयुक्त मज़दूर अधिकार संघर्ष मोर्चा की ओर से प्रशान्त ने आज प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति और मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजकर मज़दूरों के दमन-उत्पीड़न और गोरखपुर ज़िला प्रशासन तथा पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये की जानकारी दी। पत्र में लिखा गया है कि मज़दूरों को शान्तिपूर्ण ढंग से धरना-प्रदर्शन तक नहीं करने दिया जा रहा है और किसी अधिकारी तक से मिलने नहीं दिया जा रहा है। चिलुआताल के थानाध्यक्ष गजेन्द्र राय बरगदवा में घर-घर जाकर मज़दूरों को धमका रहे हैं और कारखाने में काम पर जाने के लिए ज़ोर-ज़बर्दस्ती कर रहे हैं।
      मज़दूर आन्दोलन का समर्थन करने के कारण गिरफ्तार की गयी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा और सामाजिक कार्यकर्ता श्वेता ने भी पत्र भेजकर राष्ट्रीय महिला आयोग से पुलिस द्वारा की गयी बदसलूकी और डराने-धमकाने की शिकायत की है। पांच दिन बाद जेल से रिहा हुई श्वेता ने कहा कि चिलुआताल के थानाध्यक्ष गजेन्द्र राय ने उन्हें ''देख लेने'' और कैरियर बर्बाद कर देने की धमकी दी। गिरफ्तार करने के बाद उन्हें तथा एक मज़दूर की बुजुर्ग मां सुशीला देवी को महिला थाने में भी डराया-धमकाया गया।
ज्ञातव्य है कि गत 20 मई को जब पांच अनशनकारियों के साथ मज़दूर ज़िलाधिाकारी से मिलने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर कई बार लाठीचार्ज किया था जिसमें 25 मज़दूरों को चोटें लगी थीं। पुलिस ने 73 मज़दूरों को हिरासत में लिया था जिनमें से 59 मज़दूरों को देर रात छोड़ दिया गया था लेकिन तपीश मैन्दोला और दो महिला कार्यकर्ताओं श्वेता तथा सुशीला देवी सहित 14 मज़दूर नेताओं को जेल भेज दिया गया था। उन पर विभिन्न जमानती एवं गैर-जमनाती धाराओं में तीन-तीन मुकदमे कायम किए गए थे।
 
इस बीच संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने आज राज्य के प्रमुख सचिव, श्रम को दिए गए ज्ञापन में कहा है कि गोरखपुर में तमाम कारखानों में श्रम कानूनों का उल्लंघन हो रहा है और श्रम विभाग के अधिकारी खुलेआम पक्षपात कर रहे हैं जिसके कारण यहां निरन्तर श्रमिक अशान्ति बनी हुई है। इसलिए शासन के स्तर से उच्च स्तरीय जांच टीम भेजकर यहां सभी कारखानों की तथा स्थानीय श्रम कार्यालय की भूमिका की जांच करायी जाए। गत 19 मई को मज़दूरों को बाहर रखकर पक्षपातपूर्ण ढंग से केवल वी.एन. डायर्स के मालिकों के साथ एकतरफा वार्ता आयोजित कर निर्णय करने वाले श्रम विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई की जाये।
इस बीच गोरखपुर के दोनों औद्योगिक क्षेत्रों, कार्यालयों और शहर के प्रमुख स्थानों पर नुक्कड़ सभाओं तथा रिहायशी इलाकों में जनसम्पर्क के जरिए उद्योगपतियों तथा प्रशासन की मिलीभगत का भंडाफोड़ करने और मजदूरों की मांगों के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने का अभियान जारी है।
देश के विभिन्न भागों से गोरखपुर में मजदूर आन्दोलन की निन्दा और मायावती सरकार पर दबाव बनाने का अभियान भी लगातार जारी है। आज मुंबई में गरीबों को उजाड़ने के खिलाफ मेधा पाटकर के नेतृत्व में चल रही भूख हड़ताल और प्रदर्शन के दौरान भी गोरखपुर के मजदूरों के दमन का सवाल उठाया गया और संघर्षरत मजदूरों के साथ एकजुटता जाहिर की गयी। बंगलूर से सामाजिक कार्यकर्ता कावेरी इन्दिरा के नेतृत्व में विभिन्न सामाजिक कर्मियों ने मुख्यमंत्री तथा अन्य अधिकारियों को फोन तथा फैक्स द्वारा अपना विरोध दर्ज कराया। कल कोलकाता में विभिन्न संगठन प्रदर्शन कर राज्यपाल के माध्यम से मुख्यमंत्री मायावती के नाम ज्ञापन भेजकर उत्तर प्रदेश में मज़दूरों के बढ़ते दमन पर विरोध जताएंगे।
 
कृपया इस ऑनलाइन याचिका पर हस्‍ताक्षर करके मजदूरों के दमन का विरोध करें : http://bit.ly/kvIuIq  

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24.5.11

जेल में मज़दूर नेता आमरण अनशन पर, बाहर समर्थकों ने मोर्चा संभाला शहर में जगह-जगह पोस्‍टर-पर्चों के जरिये किया मालिक-प्रशासन के झूठ का पर्दाफाश


देश-विदेश से कानूनविदों-एक्टिविस्‍टों-पत्रकारों ने मायावती के नाम अपील पर हस्‍ताक्षर करके दमन की निंदा की

नई दिल्‍ली, 23 मई। 3 मई को मज़दूरों पर चली गोलियों और उसके विरोध में 9 तारीख के शांतिपूर्ण मजदूर सत्‍याग्रह के बर्बर दमन के बाद और 20 मई को लाठीचार्ज के बाद फर्जी आरोपों में दो महिला साथियों समेत 14 मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ रहा है। जेल में बंद मजदूर नेताओं ने आज भी आमरण अनशन जारी रखा। दूसरी तरफ,उनके समर्थकों ने गोरखपुर शहर के विभिन्‍न इलाकों में प्रचार अभियान चलाकर प्रशासन के झूठ का भंडाफोड़ किया। इसके अलावा देश-विदेश के ट्रेडयूनियन कर्मियों, एक्टिविस्‍टों, जनवादी अधिकार और मानवाधिकार कर्मियों ने मुंबई की सीनियर एडवोकेट कामायनी बाली महाबल द्वारा मायावती के नाम जारी की गई ऑनलाइन अपील पर हस्‍ताक्षर करके पुलिस-प्रशासन द्वारा मजदूर आंदोलन के दमन की निंदा की और फर्जी आरोपों में गिरफ्तार नेताओं की रिहाई की मांग की।
गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा ने बताया कि आज सुबह से ही गोरखपुर में अलग-अलग कारखानों के मजदूर और आंदोलन समर्थक छात्रों-युवाओं ने भगवानपुर मोहल्‍ला, बरगदवां गांव, बरगदवा चौराहा, मोहरीपुर, गीडा,विकासनगर के इलाकों में घर-घर जाकर लोगों को प्रशासन के झूठ और पक्षपातपूर्ण रवैये के बारे में बताया। उन्‍होंने इन इलाकों में पोस्‍टर चिपकाकर और पर्चे बांटकर भी मालिक-प्रशासन-नेता-गुंडा गठजोड़ का भंडाफोड़ किया। उधर, संयुक्‍त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने कहा कि 3 मई के गोलीकांड के दोषी फैक्‍ट्री मालिक, माफिया सरगना प्रदीप सिंह को गिरफ्तार नहीं किया गया, फर्जी मुकदमों में बंद किए मजदूर नेताओं को छोड़ा नहीं गया और शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन कर रहे मजदूरों के बर्बर दमन के जिम्‍मेदार अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई तो वे अपना अभियान तेज़ कर देंगे। उन्‍होंने बताया कि मजदूरों ने फैसला किया है कि जब तक वी.एन. डायर्स से निकाले गए 18 मजदूरों को काम पर वापस नहीं लिया जाएगा तब तक एक भी मजदूर काम पर नहीं जाएगा।
दूसरी तरफ, आज जारी की गई ऑनलाइन अपील पर सुबह तक 130 हस्‍ताक्षर किए जा चुके थे। हस्‍ताक्षर करने वाले नामों में एडवोकेट और सामाजिक कार्यकर्ता कामायनी बाली महाबल, ट्रेडयूनियन और मानवाधिकार कर्मी सुधा उपाध्‍याय एवं रोमा, एन.ए.पी.एम. के मधुरेश, हल्‍द्वानी से लेखक एवं संस्‍कृतिकर्मी अशोक कुमार पाण्‍डेय, मुंबई से फोटो जर्नलिस्‍ट जावेद इक़बाल, यू.के. से स्‍टीफन कार्डवेल, हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रो. बी.आर. बापूजी, अमेरिका से फ्रे‍डरिक डिसूज़ा,  पत्रकार मेहताब आलम, प्रियरंजन, अमलेंदु उपाध्‍याय, संदीप शर्मा, दीपांकर चक्रवर्ती, कमेटी फॉर कम्‍युनल एमेटी, मुंबई के शुक्‍ल सेन, कोलकाता से गौतम गांगुली, सायन भट्टाचार्य, मेदिनीपुर अनिर्बान प्रधान, जगदलपुर से अली सैयद, चेन्‍नई से रंजनी कमल मूर्ति एवं अन्‍य छात्रों-सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं-पत्रकारों के नाम शामिल हैं। ऑनलाइन पिटीशन पर हस्‍ताक्षर करने यह सिलसिला जारी है। इसके अतिरिक्‍त देशभर से जागरूक नागरिक उत्तर प्रदेश और विशेषतौर पर गोरखपुर प्रशासन को फोन-फैक्‍स-ईमेल करके भी पुलिस-प्रशासन द्वारा शांतिपूर्ण मजदूर आंदोलन के दमन और मजदूर नेताओं की गिरफ्तारी पर विरोध जता रहे हैं।
उल्‍लेखनीय है कि गोरखपुर में 3 मई के गोलीकांड के दोषियों की गिरफ्तारी और अन्‍य मांगों को लेकर 16 मई से भूख हड़ताल पर बैठे मजदूर 20 मई को जिलाधिकारी कार्यालय ज्ञापन देने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज करके 73 मजदूरों को हिरासत में लिया था जिनमें से अधिकांश मजदूर देर रात छोड़ दिए गए थे लेकिन बीएचयू की छात्रा श्‍वेता, स्‍त्री मजदूर सुशीला देवी और अन्‍य 12 को गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस 20 तारीख को दिन में ही मजदूर नेता तपीश मैंदोला को किसी अन्‍य स्‍थान से उठा ले गई थी और अगले दिन कोर्ट में उनकी पेशी से पहले तक तपिश की गिरफ्तारी से इंकार करती रही। बाद में दोपहर को अचानक तपिश को मजिस्‍ट्रेट के सामने पेश कर दिया गया। सभी मजदूर नेताओं पर पुलिस ने तीन-तीन फर्जी मुकदमे दायर किए हैं। जेल भेजे गए सभी 14 मजदूर नेताओं ने जेल में आमरण-अनशन शुरू कर दिया है। इनमें से श्‍वेता और सुशीला देवी पिछले 6 दिन से आमरण अनशन पर हैं जिसके कारण उनकी हालत लगातार बिगड़ रही है। इसके बावजूद उन्‍होंने जेल में भी आमरण अनशन शुरू कर दिया है। दो मुकदमों में दोनों को जमानत मिलने के बावजूद पुलिस द्वारा दायर किए गए तीसरे मुकदमे में उन्‍हें जमानत नहीं मिली थी।


गोरखपुर मज़दूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा 

कात्‍यायनी-09936650658सत्‍यम-09910462009संदीप-08447011935 

Please sign this online petition: http://www.petitiononline.com/mayawati/petition.html

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22.5.11

मजदूरों या उनके प्रतिनिधियों को सूचना दिए बिना ही निपटा ली गई एकतरफा वार्ता

गोरखपुर: वीएन डार्यस-प्रशासन के बीच हुई वार्ता अवैधानिक

निकाले गए 18 मजदूरों को काम पर वापस रखने की मजदूरों की मुख्‍य मांग पर चर्चा तक नहीं हुई

14 मजदूर नेताओं ने जेल में आमरण अनशन जारी रखा

फैक्‍ट फाइंडिंग टीम की जांच पूरी, प्रथम दृष्‍टया प्रशासन की भूमिका को नकारात्‍मक बताया




नई दिल्‍ली, 22 मई। गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा ने कल शाम वीएन डायर्स के मालिक विष्‍णु अजीत सरिया-श्रम विभाग-प्रशासन के बीच हुई वार्ता को अवैध एवं कानून विरोधी बताया है। मोर्चा ने कहा कि कल हुई इस एकतरफा वार्ता में मजदूरों के प्रतिनिधि शामिल नहीं थे। इससे स्‍पष्‍ट होता है कि गोरखपुर प्रशासन मालिकों के पक्ष में काम कर रहा है, क्‍योंकि मजदूरों या उनके प्रतिनिधियों को इस वार्ता की सूचना तक नहीं दी गई। मजदूरों के प्रतिनिधियों के बिना हुई यह वार्ता पूरी तरह अवैधानिक है और इसमें श्रमिकों की मुख्‍य मांग, अवैध रूप से निकाले गए 18 मजदूरों को काम पर वापस लेने, पर कोई चर्चा ही नहीं गई।

मोर्चा ने कहा कि मालिक और मजदूर मिलकर वार्ता कर सकते हैं लेकिन मालिक-श्रम विभाग-प्रशासन ने इस वार्ता से मजदूरों को बाहर रखकर खुद ही फैसला कर लिया कि मिल चालू की जाएगी। यही नहीं इस वार्ता में मालिक और प्रशासन से पूरी तरह गलतबयानी की है कि मजदूरों के कारण कारखानों में 30 अप्रैल से तालाबंदी है। सच्‍चाई यह है कि वीएन डायर्स के मालिकान ने 10 अप्रैल को ही कारखाने की बिजली कटवा दी थी और जबरन तालाबंदी कर दी थी। तभी से ताला खुलवाने के लिए मजदूरों की तरफ से लगातार प्रशासन तथा श्रम विभाग को ज्ञापन दिए जा रहे हैं। इसके बावजूद प्रशासन मालिकों के पक्ष में तथ्‍यों को तोड़-मरोड़ रहा है।

मोर्चा ने कहा कि यह एकतरफा फैसला किसी मजदूर को स्‍वीकार नहीं है। सभी मजदूर और संयुक्‍त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा चाहते हैं कि कारखाने चालू हों, लेकिन जब तक फैक्‍ट्री से निकाले गए 18 मजदूरों को काम पर नहीं रखा जाएगा तब तक एक भी मजदूर काम पर नहीं जाएगा। आज भी कार्यालय स्‍टाफ के एक-दो कर्मचारियों को छोड़कर कोई मजदूर फैक्‍ट्री में काम करने नहीं गया।

इस बीच जेल भेजे गए सभी 14 मजदूर नेताओं ने जेल में आमरण-अनशन शुरू कर दिया है। गौरतलब है कि पिछले 6 दिन से श्‍वेता और सुशीला देवी भी आमरण अनशन पर थे जिसके कारण उनकी हालत बिगड़ गई थी। इसके बावजूद उन्‍होंने जेल में भी आमरण अनशन शुरू कर दिया है। कल दो मुकदमों में दोनों को जमानत मिलने के बावजूद पुलिस द्वारा दायर किए गए तीसरे मुकदमे में उन्‍हें जमानत नहीं मिली और 12 अन्‍य मजदूर नेताओं के साथ उन्‍हें जेल भेज दिया गया था। सभी मजदूर नेताओं पर विभिन्‍न धाराओं में तीन-तीन फर्जी मुकदमे दायर किए गए हैं।

इधर, मजदूरों ने बरगदवा के कारखाना गेटों और मजदूर बस्तियों में सभाओं और प्रचार का सिलसिला तेज कर दिया है। शहर के नागरिकों तथा छात्रों-युवाओं-कर्मचारियों को भी प्रशासन की अंधेरगर्दी तथा मजदूरों की जायज मांगों से अवगत कराने के लिए आज से शहर में पर्चे बांटने शुरू कर दिए गए। इस अभियान को विस्‍तार देते हुए,कल से व्‍यापक जनसंपर्क शुरू कर दिया जाएगा। मोर्चा ने मालिकों की शह पर पुलिस द्वारा मकान-मालिकों पर मजदूरों को मकान से निकालने का दबाव बनाने की भी कड़ी निंदा की।

दूसरी ओर, अंकुर उद्योग लिमिटेड में दिनांक 3 मई को हुए गोलीकांड की देशव्यापी चर्चा एवं मजदूर आंदोलन सेसंबंधित घटनाओं की विभिन्न स्रोतों से जानकारी मिलने के पश्चात 19 मई को गोरखपुर पहुंची मीडियाकर्मियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की एक तथ्य अन्वेषण (फैक्ट फाइंडिंग) टीम ने जांच पूरी कर ली है। अपने तीन दिनी प्रवास के दौरान यह टीम एसपी सिटी, कमिश्नर, डीएलसी, संबंधित पुलिस अधिकारियों, विभिन्नमजदूर नेताओं, बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, जनवादी अधिकारकर्मियों, एवं अंकुर उद्योग लि. तथा वी.एन. डायर्स केमजदूरों से मिली एवं पूरे घटनाक्रम पर विस्तार से बातचीत की। टीम जांच पूरी कर ली है एवं संबंधित तथ्य तथा दस्तावेज एकत्रित कर लिए हैं। जांच दल के सदस्यों का प्रथम दृष्टतया यह मत बना है कि अंकुरउद्योग लि. में हुई घटना एवं इस क्षेत्र के मजदूर आंदोलन के संबंध में प्रशासन की भूमिका नकारात्मक एवं आंदोलन विरोधी रही है। फैक्ट फाइंडिंग टीम अगले कुछ दिनों में अपनी विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके प्रकाशित करेगी।



 गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा 


कात्‍यायनी-09936650658, सत्‍यम-09910462009, संदीप-08447011935

ईमेल: satyamvarma@gmail.com, sandeep.samwad@gmail.com
 

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21.5.11

फर्जी आरोप में 12 मजदूर नेताओं को जेल भेजा

गोरखपुर मजदूर गोलीकांड 
'मायाराज' बना आतंकराज 
दिनभर शहरभर में मजदूरों को खदेड़ती रही पुलिस 
मजदूर नेताओं ने जेल में आमरण अनशन शुरू किया

नई दिल्‍ली, 21 मई। आज गोरखपुर की पुलिस और प्रशासन ने मालिकपरस्‍त अंधेरगर्दी की नई मिसाल कायम कर दी। लेकिन पुलिसिया दमन के बावजूद मजदूर अपना सत्‍याग्रह विभिन्‍न रूपों में जारी रखे रहे। 
3 मई के गोलीकांड के दोषियों की गिरफ्तारी और अन्‍य मांगों को लेकर 16 मई से भूख हड़ताल पर बैठे मजदूर कल, 20 मई को, जिलाधिकारी कार्यालय ज्ञापन देने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर बर्बर लाठीचार्ज करके 73 मजदूरों को हिरासत में लिया था जिनमें से अधिकांश मजदूर देर रात छोड़ दिए गए थे लेकिन बीएचयू की छात्रा श्‍वेता, स्‍त्री मजदूर सुशीला देवी और अन्‍य 12 को गिरफ्तार कर लिया गया था। पुलिस कल दिन में ही मजदूर नेता तपीश मैंदोला को किसी अन्‍य स्‍थान से उठा ले गई थी और आज सुबह तक तपिश की गिरफ्तारी से इंकार करती रही। बाद में दोपहर को अचानक तपीश को अदालत में पेश कर दिया गया। सभी मजदूर नेताओं पर पुलिस ने धारा 309 के तहत आत्‍महत्‍या के प्रयास का मुकदमा दर्ज किया है। यह अपने आपमें हास्‍यास्‍पद है क्‍योंकि इनमें से अधिकांश तो अनशन पर बैठै ही नहीं थे। श्‍वेता तथा सुशीला देवी, जिनका स्‍वास्‍थ्‍य पांच दिन की भूख हड़ताल के बाद बिगड़ रहा था, उन्‍हें जमानत पर रिहा कर दिया गया है। बाकी 12 मजदूरों को जेल भेज दिया गया है। मजदूर नेताओं ने जेल में ही आमरण अनशन शुरू कर दिया है।
दूसरी ओर, पूर्वघोषित कार्यक्रम के अनुसार सैकड़ों मजदूर आज भी जिलाधिकारी को ज्ञापन सौंपने जा रहे थे लेकिन पुलिस ने जगह-जगह लाठीचार्ज कर उन्‍हें एकत्र नहीं होने दिया। इसके बाद मजदूरों ने टाउनहॉल स्थित गांधी प्रतिमा पर धरना देने की कोशिश की लेकिन वहां भी पुलिस ने मजदूरों को पहुंचने नहीं दिया। जिलाधिकारी कार्यालय घंटों तक पुलिस छावनी बना रहा और पुलिस के जवान आसपास के इलाके में ढूंढ़ कर मजदूरों को खदेड़ते रहे। कलेक्‍ट्रेट और टाउनहॉल के इर्द-गिर्द किसी भी स्‍थान पर चार-पांच मजदूर जैसे दिखने वाले व्‍यक्तियों को देखते ही पुलिस लाठियां लेकर तितर-बितर कर दे रही थी।
दिनभर चले दमन चक्र के बावजूद मजदूर सत्‍याग्रह जारी रखने पर दृढ़ हैं। शाम होते-होते सैकड़ों की संख्‍या में मजदूर वीएन डायर्स के तालाबंद कारखानों के गेट पर उसी स्‍थान पर फिर से जुट गए जहां जारी आमरण अनशन को पुलिस ने गिरफ्तारियों के द्वारा बंद करा दिया था। जेल में आमरण अनशन पर बैठे मजदूर नेताओं के समर्थन में बड़ी संख्‍या में विभिन्‍न कारखानों के मजदूर धरने पर बैठे हैं।
इस बीच वीएन डायर्स के मालिकान ने अपने अड़ि‍यल रुख को और बढ़ाते हुए कारखाना गेट पर नोटिस लगा दिया है कि जो मजदूर कल से काम पर नहीं आएंगे उन्‍हें हटाकर नयी भर्ती की  जाएगी। 
संयुक्‍त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने इसकी तीखी निंदा करते हुए कहा है  कि श्रम विभाग और जिला प्रशासन की शह पर ही वीएन डायर्स के मालिकान इस तरह की नंगी मनमानी कर रहे  हैं।
दूसरी ओरमजदूरों ने जिलाधिकारी कार्यालय के माध्‍यम से मुख्‍यमंत्री मायावती को ज्ञापन भेजकर चेतावनी दी है कि अगर वे तत्‍काल हस्‍तक्षेप कर उन्‍हें न्‍याय नहीं दिलाएंगी तो श्रमिक अशांति और फैलेगी। ज्ञापन की प्रमुख मांगों में कल 20 मई को फर्जी आरोप में गिरफ्तार किए गए सभी 14 मजदूर नेताओं को तुरंत रिहा किया जाए और उन पर दायर सभी फर्जी मुकदमे वापस लेना,3 मई को हुए गोलीकांड के नामजद अभियुक्‍तों अशोक जालान, अंकुर जालान तथा प्रदीप सिंह (सहजनवां क्षेत्र के माफिया सरगना) को तुरंत गिरफ्तार करना और हत्‍या के प्रयास, आदि के मुकदमे चलाकर सख्‍त से सख्‍त कार्रवाई करना, 9 मई को मजदूरों के बर्बर दमन के दोषी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करना, घटना की उच्‍च न्‍यायालय के कार्यरत न्‍यायाधीश से जांच कराना, गोलीकांड के घायलों को मुआवजा दिलाना, निलंबित मजदूरों को काम पर रखना और कारखानों की अवैध तालाबंदी खुलवाना शामिल हैं।

गोरखपुर मजदूर आंदोलन समर्थक नागरिक मोर्चा 
कात्‍यायनी-09936650658सत्‍यम-09910462009संदीप-08447011935

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बिगुल के बारे में

बिगुल पुस्तिकाएं
1. कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा -- लेनिन

2. मकड़ा और मक्खी -- विल्हेल्म लीब्कनेख़्त

3. ट्रेडयूनियन काम के जनवादी तरीके -- सेर्गेई रोस्तोवस्की

4. मई दिवस का इतिहास -- अलेक्ज़ैण्डर ट्रैक्टनबर्ग

5. पेरिस कम्यून की अमर कहानी

6. बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति की मशाल

7. जंगलनामा : एक राजनीतिक समीक्षा -- डॉ. दर्शन खेड़ी

8. लाभकारी मूल्य, लागत मूल्य, मध्यम किसान और छोटे पैमाने के माल उत्पादन के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण : एक बहस

9. संशोधनवाद के बारे में

10. शिकागो के शहीद मज़दूर नेताओं की कहानी -- हावर्ड फास्ट

11. मज़दूर आन्दोलन में नयी शुरुआत के लिए

12. मज़दूर नायक, क्रान्तिकारी योद्धा

13. चोर, भ्रष् और विलासी नेताशाही

14. बोलते आंकड़े चीखती सच्चाइयां


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