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20.7.09

दिल्ली मेट्रो की दुर्घटना में मज़दूरों की मौत का जिम्मेदार कौन?

डी.एम.आर.सी. और सरकार की हत्यारी नीतियाँ और ठेका कम्पनी की मुनाफाखोर हवस

बिगुल संवाददाता

पिछली 12 जुलाई की सुबह दिल्ली के जमरूदपुर इलाके में मेट्रो रेल का बन रहा पुल गिर जाने से 6 मजदूरों की मौत हो गयी और करीब 20 से 25 मजदूर घायल हो गये जिनमें से कुछ की हालत गम्भीर है। उस जगह पर काम करने वाले मजदूरों और उनके सुपरवाइजर ने मेट्रो प्रशासन और ठेका कम्पनी गैमन को बहुत पहले ही बता दिया था कि इस जगह पर काम करना खतरे से खाली नहीं है। पुल के एक खम्भे में कुछ महीने पहले दरार आ गयी थी जिसके चलते करीब दो महीने पहले काम रोकना पड़ा था। लेकिन 2010 के कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले मेट्रो रेल का काम पूरा करके वाहवाही लूटने के चक्कर में मेट्रो प्रशासन ने ठेका कम्पनियों को मजदूरों का शोषण करने, सभी श्रम कानूनों का उल्लंघन करने और तमाम सुरक्षा उपायों की अनदेखी करने की पूरी छूट दे रखी थी। इसीलिए ठेका कम्पनी गैमन इण्डिया ने मेट्रो प्रशासन के इंजीनियरों की जानकारी और इजाजत से उस दरार की थोड़ी-बहुत मरम्मत करवाकर दो-तीन दिन पहले फिर से काम शुरू करा दिया। 11 जुलाई की रात भी पुल के टूटने के डर से काम को रोकना पड़ा था। लेकिन मुनाफे की हवस में अन्धी कम्पनी ने 12 जुलाई की सुबह 4.30 बजे फिर से काम शुरू करवा दिया। कुछ ही देर में दरार वाला खम्भा टूट गया और पुल में लगने वाला लोहे का कई सौ टन का लांचर टूटकर गिर पड़ा जिसके नीचे करीब 35 मजदूर आ गये। इनमें से कुछ ने दुर्घटना स्थल पर ही दम तोड़ दिया और कुछ ने अस्पताल में दम तोड़ा। इस दुर्घटना के तुरन्त बाद दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के प्रबन्ध निदेशक ई. श्रीधरन ने प्रेस कांफ्रेंस में इस्तीफा देने की घोषणा कर दी। जैसाकि तय ही था, शीला दीक्षित की सरकार ने इस्तीफा नामंजूर कर दिया। साफ है कि यह इस्तीफा इस भयंकर दुर्घटना से ध्‍यान हटाने के लिए की गयी एक नौटंकी था ताकि यह बात ही किनारे हो जाये कि यह हादसा हुआ कैसे और इसके लिए कौन जिम्मेदार है।

इस घटना के अगले ही दिन उसी जगह पर टूटे लांचर को हटाने के लिए लगायी गयी 4 क्रेनें पलट गयीं जिससे पूरा लांचर और ढेरों मलबा फिर नीचे गिर पड़े। इस दुर्घटना में तीन इंजीनियर और तीन मजदूर घायल हो गये।

मेट्रो रेल के निर्माण में होने वाली यह पहली दुर्घटना नहीं है। इससे पहले अक्टूबर, 2008 में लक्ष्मीनगर, सितम्बर 2008 में चांदनी चौक और जुलाई 2008 में राममनोहर लोहिया अस्पताल के पास भी मेट्रो निर्माण स्थल पर दुर्घटनाएँ हो चुकी हैं, जिनमें बेगुनाह मजदूर और नागरिक मारे गये थे। छोटी-छोटी दुर्घटनाओं की तो कोई गिनती ही नहीं है। एक घटना में तो मेट्रो के एक डम्पर ने सोते हुए मजदूरों पर मिट्टी से भरा ट्रक पलट दिया था, जिससे कई मजदूरों की दबकर मौत हो गयी थी। ऐसे में यह सोचने की बात है कि इन मौतों का जिम्मेदार कौन है?

दरअसल इस दुर्घटना को हादसा कहना ही ग़लत है। यह सीधे-सीधे उन बेगुनाह मजदूरों की हत्या है जो इसमें मारे गये हैं। इन मजदूरों को मेट्रो प्रशासन अपना कर्मचारी मानने से इंकार करके गैमन कम्पनी का कर्मचारी बताता है ताकि उनकी मौत की जिम्मेदारी से हाथ झाड़ सके। निर्माण मजदूरों को कहीं भी मेट्रो प्रशासन ने कोई कर्मचारी पहचान कार्ड तक नहीं मुहैया कराया है। श्रम कानूनों को ताक पर रखकर इन मजदूरों से 12 से 15 घण्टे तक काम कराया जाता है। इन्हें न तो न्यूनतम मजदूरी दी जाती है और कई बार साप्ताहिक छुट्टी तक नहीं दी जाती। सरकार और मेट्रो प्रशासन ने दिल्ली का चेहरा चमकाने और कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले निर्माण कार्य को पूरा करने के लिए ठेका कम्पनियों को मजदूरों से जानवरों की तरह काम लेने की पूरी छूट दे दी है। मजदूरों से अमानवीय स्थितियों में काम कराया जाता है। उनके काम की स्थितियों और सुरक्षा उपायों पर कोई ध्‍यान नहीं दिया जाता है।


मेट्रो में काम करने वाले निर्माण मजदूरों को डी.एम.आर.सी. ने कोई पहचान पत्र नहीं दिया है और वह उन्हें अपना मजदूर तक नहीं मानता। जबकि कानूनन मेट्रो के निर्माण से प्रचालन तक में लगे सभी ठेका मजदूरों का प्रमुख नियोक्ता (इम्प्लायर) डी.एम.आर.सी. है। इन मजदूरों से 12 से 15 घण्टे तक अमानवीय परिस्थितियों में काम लिया जाता है क्योंकि दिल्ली को जल्दी से जल्दी 'वर्ल्ड क्लास सिटी' बनाना है। इनके कार्य की स्थितियाँ ऐसी हैं जिनमें काम करना एक इंसान के बूते की बात नहीं होती। इन मजदूरों की सुरक्षा का कोई खयाल नहीं रखा जाता। इन्हें सेफ्टी हेल्मेट के नाम पर जो प्लास्टिक की टोपी दी जाती है, वह भारी पत्थर की चोट तक नहीं रोक सकता। इस हेल्मेट के अतिरिक्त इतना खतरनाक काम करने के बावजूद उन्हें बचाव के लिए और कुछ नहीं दिया जाता है। अगर यह कहा जाये कि ये मजदूर अपनी जान पर खेलकर मेट्रो को बना रहे हैं तो ग़लत नहीं होगा।

कारपोरेट जगत की ऑंखों के तारे बने श्रीधरन महोदय से पूछा जाना चाहिए कि इन मजदूरों को ठेका कम्पनियों की मुनाफे की हवस के भरोसे छोड़ देने के समय उनकी नैतिकता कहाँ चली गयी थी?

इस हादसे के दो दिनों बाद ही 14 जुलाई की सुबह मुम्बई मेट्रो का भी पिलर गिर गया। यहाँ पर भी गैमन इण्डिया काम करवा रही थी। यही वह ठेका कम्पनी है जिसके द्वारा निर्मित एक फ्लाईओवर पिछले वर्ष हैदराबाद में ध्‍वस्त हो गया था जिसमें दो लोगों की मौत हो गयी थी। गैमन इण्डिया द्वारा बनाये गये कई ढाँचे पिछले सालों के दौरान क्षतिग्रस्त हो चुके हैं। इन सबके बावजूद गैमन इण्डिया को हमेशा 'क्लीन चिट' मिल गयी। इसी से ठेका कम्पनियों और सरकार में बैठे अधिकारियों के अपवित्र गठबन्धन के बारे में साफ पता चल जाता है।

श्रम कानूनों का यह नंगा उल्लंघन सिर्फ निर्माण मजदूरों के साथ ही नहीं हो रहा है। मेट्रो में काम करने वाले समस्त ठेका मजदूरों के श्रम अधिकारों का डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियाँ इसी बेशर्मी के साथ मखौल उड़ा रही हैं। कुछ और तथ्यों पर निगाह डालिये। मेट्रो स्टेशनों और डिपो पर काम करने वाले करीब 3000 सफाई कर्मचारी नौ ठेका कम्पनियों के तहत काम कर रहे हैं, जिन्हें 2800 से 3300 रुपये तक तनख्वाह मिलती है, जबकि कानूनन उनकी तनख्वाह 5300 रुपये होनी चाहिए। इस पर जब मजदूरों ने 'मेट्रो कामगार संघर्ष समिति' बनाकर आन्दोलन किया तो आन्दोलन में शामिल मजदूरों को डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों ने निकालना शुरू कर दिया। जब इससे भी बात नहीं बनी तो दिल्ली प्रशासन के साथ मिलकर डी.एम.आर.सी. ने उन्हें दो दिनों के लिए जेल में भी डलवाया। यह आन्दोलन अभी भी जारी है।

इस तरह के सैकड़ों ऑंकड़े गिनाये जा सकते हैं जिसके जरिये डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों द्वारा श्रम कानूनों, सुरक्षा उपायों और कार्य-स्थितियों की उपेक्षा का प्रमाण मिलता है। यह कोई अनजाने में होने वाली उपेक्षा नहीं है। इसके पीछे डी.एम.आर.सी. और ठेका कम्पनियों की मुनाफे की हवस और उनका भ्रष्टाचार है।

इस पूरे मामले पर लीपापोती करने वाली आन्तरिक जाँच नहीं बल्कि उच्चस्तरीय न्यायिक जाँच करायी जानी चाहिए और दोषियों के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई की जानी चाहिए। इस दुर्घटना के लिए जिम्मेदार डी.एम.आर.सी. के उन अधिकारियों को तत्काल बर्खास्त किया जाना चाहिए, जिन्होंने पिलर संख्या 66 के निर्माण कार्य को जारी रखने की अनुमति दी और उनके खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए। गैमन इण्डिया के उन अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया जाना चाहिए जो इस पुल के निर्माण को देख रहे थे। इतना ही नहीं, गैमन इण्डिया का ठेका तत्काल रद्द करके उसे ब्लैकलिस्ट कर दिया जाना चाहिए। मेट्रो रेल प्रशासन को सभी परियोजनाओं की देखरेख और समीक्षा करने वाली ऐसी समिति बनानी चाहिए जिसमें तकनीकी विशेषज्ञों के साथ ही और नागरिक प्रतिनिधि भी शामिल हों। और इन सबसे भी ज्यादा जरूरी है कि मेट्रो रेल से ठेका प्रथा को खत्म किया जाये तथा सभी कामगारों को उनके जायज अधिकार दिये जायें।


2 कमेंट:

Dr. Ravi Srivastava July 20, 2009 at 11:08 AM  

मित्र, आज मुझे आप का ब्लॉग देखने का सुअवसर मिला।
वाकई आपने बहुत अच्छा लिखा है। आशा है आपकी कलम इसी तरह चलती रहेगी और हमें पढ़ने को मिलेंगे, बधाई स्वीकारें।

आप के द्वारा दी गई प्रतिक्रियाएं मेरा मार्गदर्शन एवं प्रोत्साहन करती हैं।
आप के अमूल्य सुझावों का 'मेरी पत्रिका' में स्वागत है...

Link : www.meripatrika.co.cc

…Ravi Srivastava

संदीप July 20, 2009 at 2:37 PM  

और हमारे ''सजग'' मीडियाकर्मी श्रीधरन जैसे ''महान'' व्‍यक्ति के इस्‍तीफे को लेकर व्‍यथित थे। अब तक किसी ने मेट्रो प्रशासन के प्रमुख नियोक्‍ता होने का मुद्दा ही नहीं उठाया है।

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