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14.6.09

चेन्नई के सफाई कामगारों की हालत देशभर के सफाईकर्मियों का आईना है

मशहूर भारतीय फिल्मकार सत्यजित रे ने अपनी एक फिल्म अमेरिका में प्रदर्शित की तो पहले शो में ही बहुत से अमेरिकी फिल्म बीच में ही छोड़कर आ गये क्योंकि सत्यजीत रे ने फिल्म के एक सीन में भारतीय लोगों को हाथों से खाना खाते हुए दिखाया था जिसे देखकर उन्हें वितृष्णा होने लगी थी। लेकिन अगर उन्हें इंसान के हाथों से सीवरेज की सफाई होती दिखला दी जाती तो शायद वे बेहोश हो जाते। सिर्फ अमेरिकी ही क्यों, इस नर्क के दर्शन से तो बहुत से भारतीय भी बेहोश हो जायेंगे। लोग अपने घरों में साफ-सुथरा टायलट इस्तेमाल करते हैं लेकिन वे शायद ही कभी सोचते हों कि उनके इस टायलट को साफ रखने के लिए इस दुनिया में ऐसे भी लोग हैं जो अपनी जान दे देते हैं। सिर्फ इसलिए कि दूसरे लोग एक साफ-सुथरी, ‘‘हाइजेनिक’’ ज़िन्दगी जी सकें।
बहुत सारी ज़िन्दगियाँ इस तरह की भी हैं जो हर रोज़ इंसान की गन्दगी से भरे गटरों-मैनहोलों आदि में उतरती हैं। महज़ 90 या हद से हद 110 रुपये की दिहाड़ी कमाने के लिए। पिछले दिनों चेन्नई म्यूनीसिपल कारपोरेशन सम्बन्धी आयीं रिपोर्टें कुछ ऐसे ही तथ्य पेश करती हैं। चेन्नई मैटरे जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड का कहना है कि 24 मई 2003 और 17 अक्टूबर 2008 के बीच 17 सीवर कर्मचारियों की मौत, मैनहोलों या गटर की सफाई करते समय गन्दी ज़हरीली गैस चढ़ने से हो गयी। सफाई कर्मचारियों की ट्रेडयूनियनों का कहना है कि यह गिनती पिछले दो दशकों में 1,000 के नज़दीक पहुँचती है। यही नहीं जो कामगार ज़िन्दा भी हैं, वे हर समय कार्बन मोनोआक्साइड, हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन जैसी ज़हरीली गैसों के सीधे सम्पर्क में रहने से कई प्रकार की साँस की बीमारियों के शिकार हैं। यही नहीं, दस्त, टाइफाइड और हैपीटाइटस-बी इन कामगारों में पाये जाने वाले सामान्य रोग हैं। ई. कौली नामक बैक्टीरिया पेट के बहुत गम्भीर रोगों का जन्मदाता है और क्लोसटरीडम टैटनी नामक बैक्टीरिया खुले जख्मों के सीधे सम्पर्क में आने से टैटनस का कारण बनता है। ये सारे बैक्टीरिया गन्दे पानी में आमतौर पर पाये जाते हैं और चमड़ी के रोग इतने हैं कि गिने नहीं जा सकते।
चेन्नई के 5.63 लाख घरों के कनेक्शनों वाला 78,861 मैनहोलों सहित 2,671 किलोमीटर लम्बे सीवरेज नेटवर्क को सँभालने के लिए सिर्फ 4,000 ही कर्मचारी हैं जबकि 1978 में इनकी गिनती 11,000 थी। इस सारी प्रक्रिया में जो सबसे अमानवीय बात है वह यह है कि आज भी मैनहोलों को साफ करने के लिए सफाई कर्मचारी उनके अन्दर उतरते हैं और सारी सफाई हाथों से करते हैं। इम्‍प्‍लायमेण्ट आफ मैनुअल स्कैवेंजर्स एण्ड कंस्टरक्शन आफ ड्राई लैटरीन्ज़ (प्रोविजनल) एक्ट 1993 के तहत मानवीय हाथों से मैनहोल या गटर तो क्या घरों के सैप्टिक टैंक भी साफ करना ग़ैर-कानूनी है। लेकिन हमारे देश के अन्य सभी कानूनों की तरह यह कानून भी महज़ काग़ज़ी ही है। इस कानून की धज्जियाँ उड़ते हुए आप किसी भी मैनहोल पर चलते काम के समय देख सकते हैं। यहाँ तक कि इन सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा के इन्तज़ाम तक मुहैया नहीं करवाये जाते। कानूनन आक्सीजन सिलण्डर हर समय सफाई कर्मचारी के पास होना चाहिए, लेकिन भ्रष्टाचार के चलते यह हो पाना सम्भव ही नहीं है। बड़ी गिनती में सफाई कर्मचारी ठेके पर भर्ती किये जाते हैं। इतने बड़े शहर चेन्नई में मैनहोलों के बीच की सिल्ट साफ करने के लिए अगर उन्नत तकनीक अपनायी जाये तो होने वाली मौतें कम की जा सकती हैं। वैसे तो तमिलनाडू सरकार ने पिछले कई वर्षों से अण्डरग्राउण्ड सीवरेज स्कीम का शोशा भी छोड़ रखा है। जिसके तहत सभी सीवरेज महकमे का मशीनीकरन किया जायेगा। इस स्कीम की हवा तभी निकलती दिखती है जब यह पता चलता है कि 148 नगर निगमों में से सिर्फ 6 नगर निगमों में ही यह स्कीम पूरी हो पायी है।
उपरोक्‍त दिये गये तथ्यों में चेन्नई के सफाई कामगारों की हालत का ही पता नहीं चलता बल्कि यह तो पूरे देश के सफाई कामगारों की ज़िन्दगी की एक धुँधली सी तस्वीर है जो हमेशा ख़ूबसूरत शहरों की परतों के नीचे दबी रहती है। असल तस्वीर इससे भी कहीं भयानक है।

- अजयपाल

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