बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता - हम राज करें, तुम राम भजो!
खाने की टेबुल पर जिनके
पकवानों की रेलमपेल
वे पाठ पढ़ाते हैं हमको
'सन्तोष करो, सन्तोष करो!'
उनके धन्धों की ख़ातिर
हम पेट काटकर टैक्स भरें
और नसीहत सुनते जायें --
'त्याग करो, भई त्याग करो!'
मोटी-मोटी तोंदों को जो
ठूँस-ठूँसकर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते --
'सपने देखो, धीर धरो!'
बेड़ा ग़र्क़ देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं -
'तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो!'
(इस कविता का मनबहकी लाल ने अपने निराले अन्दाल में अनुवाद किया है।)
परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक 'कहे मनबहकी खरी-खरी' से
4 कमेंट:
बहुत सुन्दर
sundar rachna ka mazedar anuwad
सच की आग उगलती कविता है।
इसे मैंने पहले रवि कुमार के पोस्टर पर पढ़ा है।
बहुत सुन्दर व बढिया रचना।बधाई।
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