हालिया लेख/रिपोर्टें

Blogger WidgetsRecent Posts Widget for Blogger

20.6.09

बेर्टोल्ट ब्रेष्ट की कविता - हम राज करें, तुम राम भजो!

खाने की टेबुल पर जिनके
पकवानों की रेलमपेल
वे पाठ पढ़ाते हैं हमको
'सन्तोष करो, सन्तोष करो!'

उनके धन्‍धों की ख़ातिर
हम पेट काटकर टैक्स भरें
और नसीहत सुनते जायें --
'त्याग करो, भई त्याग करो!'


मोटी-मोटी तोंदों को जो
ठूँस-ठूँसकर भरे हुए
हम भूखों को सीख सिखाते --
'सपने देखो, धीर धरो!'

बेड़ा ग़र्क़ देश का करके
हमको शिक्षा देते हैं -
'तेरे बस की बात नहीं
हम राज करें, तुम राम भजो!'



(इस कविता का मनबहकी लाल ने अपने निराले अन्दाल में अनुवाद किया है।)

परिकल्पना प्रकाशन से प्रकाशित पुस्‍तक 'कहे मनबहकी खरी-खरी' से

4 कमेंट:

neeta June 20, 2009 at 10:17 AM  

sundar rachna ka mazedar anuwad

दिनेशराय द्विवेदी June 20, 2009 at 10:46 AM  

सच की आग उगलती कविता है।
इसे मैंने पहले रवि कुमार के पोस्टर पर पढ़ा है।

परमजीत सिहँ बाली June 20, 2009 at 5:36 PM  

बहुत सुन्दर व बढिया रचना।बधाई।

बिगुल के बारे में

बिगुल पुस्तिकाएं
1. कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा -- लेनिन

2. मकड़ा और मक्खी -- विल्हेल्म लीब्कनेख़्त

3. ट्रेडयूनियन काम के जनवादी तरीके -- सेर्गेई रोस्तोवस्की

4. मई दिवस का इतिहास -- अलेक्ज़ैण्डर ट्रैक्टनबर्ग

5. पेरिस कम्यून की अमर कहानी

6. बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति की मशाल

7. जंगलनामा : एक राजनीतिक समीक्षा -- डॉ. दर्शन खेड़ी

8. लाभकारी मूल्य, लागत मूल्य, मध्यम किसान और छोटे पैमाने के माल उत्पादन के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण : एक बहस

9. संशोधनवाद के बारे में

10. शिकागो के शहीद मज़दूर नेताओं की कहानी -- हावर्ड फास्ट

11. मज़दूर आन्दोलन में नयी शुरुआत के लिए

12. मज़दूर नायक, क्रान्तिकारी योद्धा

13. चोर, भ्रष् और विलासी नेताशाही

14. बोलते आंकड़े चीखती सच्चाइयां


  © Blogger templates Newspaper III by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP