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23.6.09

20 रुपये रोज़ पर गुज़ारा करने वाले 84 करोड़ लोगों के देश में 300 सांसद करोड़पति

पूँजीवादी समाज में जनतन्त्र का सिर्फ ढोंग ही होता है। यहाँ जनतन्त्र अमीरों के लिए होता है न कि ग़रीब मेहनतकश जनता के लिए। इतिहास बार-बार इस बात की पुष्टि करता रहा है। हमारे देश की 15वीं लोकसभा के नतीजों से इस बार यह बात और भी ज़ोरदार ढंग से उभरकर सामने आयी है। कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए गठबन्‍धन ने भले ही आसानी से सरकार बना ली होगी, लेकिन कोई भी गठबन्‍धन या पार्टी स्पष्ट बहुमत हासिल नहीं कर पाया था। लेकिन संसद में अब करोड़पतियों को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ है। जी हाँ, संसद में इस बार 542 में से 300 करोड़पति सांसद हैं। जिस देश की 84 करोड़ जनता का गुज़ारा रोज़ाना महज़ 20 रुपये प्रति व्यक्ति से भी कम पर होता है, जहाँ लोग भूख-प्यास से मर रहे हों, बीमारियों में जकड़े बिना इलाज के तड़प रहे हों, बच्चे शिक्षा से वंचित हों और उन्हें भी मज़दूरी करके पेट भरना पड़ता हो, मज़दूर बेकारी, तालाबन्दियों-छँटनियों के शिकार हो रहे हों, कर्ज़ में डूबे ग़रीब किसान परिवार समेत आत्महत्याएँ कर रहे हों, जहाँ महिलाएँ गुज़ारे के लिए अपना शरीर तक बेचने को मजबूर हों, उस देश की जनता के साथ इससे बड़ा मज़ाक क्या हो सकता है कि उनके भविष्य का फैसला करने के लिए करोड़पतियों से लेकर खरबपति सिंहासनों पर विराजमान हों।

जैसाकि हमने कहा कि इस बार 300 करोड़पति सांसद बने हैं। लेकिन यह ऑंकड़ा तो सांसदों द्वारा उनकी सम्पत्ति के बारे में उस जानकारी पर आधारित है जो इन्होंने ख़ुद ही चुनाव से पहले दर्ज करवायी थी। कोई भी समझ सकता है कि उनके द्वारा दर्ज करवायी गयी जानकारी झूठ के पुलिन्दे के सिवा कुछ नहीं होती। इस आधार पर कहा जा सकता है कि बाकी के सांसदों में से भी अधिकतर करोड़पति से कम नहीं होंगे।

आज चाहे कोई भी चुनावी पार्टी हो, हरेक जनता की सच्ची दुश्मन है। किसी भी तरह की पार्टी या गठबन्‍धन की सरकार बने सभी जनविरोधी नीतियाँ ही लागू कर रहे हैं। पूँजीपति वर्ग की सेवा करना ही उनका लक्ष्य है। आज राज्यसत्ता द्वारा देशी-विदेशी पूँजी के हित में कट्टरता से लागू की जा रही वैश्वीकरण-उदारीकरण-निजीकरण की घोर जनविरोधी नीतियों से कोई भी चुनावी पार्टी न तो असहमत है, न ही असहमत हो सकती है। कांग्रेस, भाजपा से लेकर तमाम क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियाँ और साथ में मज़दूरों-ग़रीबों के लिए नकली ऑंसू बहाने वाली तथाकथित लाल झण्डे वाली चुनावी कम्युनिस्ट पार्टियाँ सभी की सभी इन्हीं नीतियों के पक्ष में खुलकर सामने आ चुकी हैं। इन पार्टियों के पास ऐसा कुछ भी ख़ास नहीं है जिसके ज़रिये वे जनता को लुभा सकें। वे जनता को लुभाने के लिए जो वायदे करते भी हैं, इन सभी पार्टियों को पता है कि जनता अब उनका विश्वास नहीं करती। आज जनता किसी भी चुनावी पार्टी पर विश्वास नहीं करती। धन के खुलकर इस्तेमाल के बिना कोई पार्टी या नेता चुनाव जीत ही नहीं सकता। वोट हासिल करने के लिए नेताओं की हवा बनाने के लिए बड़े स्तर पर प्रचार हो या वोटरों को पैसे देकर ख़रीदना, शराब बाँटना, वोटरों को डराना-धमकाना, बूथों पर कब्ज़े करने हों, लोगों से धर्म-जाति के नाम पर वोट बटोरने हों - इस सबके लिए मोटे धन की ज़रूरत रहती है। पूँजीवादी राजनीति का यह खेल ऐसे ही जीता जाता है। जैसे-जैसे समय गुज़रता जा रहा है वैसे-वैसे यह खेल और भी गन्दा होता जा रहा है। 14वीं लोकसभा के चुनावों में 9 प्रतिशत उम्मीदवार करोड़पति थे जोकि अब की बार 16 प्रतिशत हो गये। यह भी ध्‍यान देने लायक है कि इस बार जब करोड़पति कुल उम्मीदवारों का 16 प्रतिशत थे लेकिन जीत हासिल करने वालों में इनकी गिनती लगभग 55 प्रतिशत है। इस बार विभिन्न पार्टियों के उम्मीदवारों की औसतन सम्पत्ति इस प्रकार थी : कांग्रेस 5 करोड़, भाजपा 2 से 3 करोड़, बसपा 1.5 से 2.5 करोड। कांग्रेस ने 202 करोड़पतियों को टिकटें दीं, भाजपा ने 129, बसपा ने 95, समाजवादी पार्टी ने 41 करोड़पतियों को लोकसभा के चुनावों में उतारा।

आन्‍ध्र प्रदेश से चुने गये कुल 42 लोकसभा मेम्बरों के पास 606 करोड़ की सम्पत्ति है। इस मामले में यह प्रान्त सबसे आगे है। हरियाणा के दस लोकसभा मेम्बर चुने गये हैं जिनकी कुल सम्पत्ति 181 करोड़ है। महाराष्ट्र के सांसदों के पास 500 करोड़, तमिलनाडू के सांसदों के पास 450 करोड़ की सम्पत्ति, उत्तर प्रदेश के सांसदों के पास 400 करोड़ की सम्पत्ति, कर्नाटक के सांसदों के पास 160 करोड़ और पंजाब के सांसदों के पास 150 करोड़ की सम्पत्ति है। राजस्थान, मध्‍य प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, दिल्ली, गुजरात, असम, पश्चिम बंगाल, केरल, हिमाचल प्रदेश, मेघालय, झारखण्ड, उत्तराखण्ड, जम्मूकश्मीर और अरुणाचल प्रदेश का हरेक सांसद 10-10 करोड़ का मालिक है। पाठकों को हम फिर याद दिला दें कि ये ऑंकड़े उस जानकारी पर ही आधारित हैं जो लोकसभा के चुनाव में उतरे उम्मीदवारों ने ख़ुद ही दर्ज करवायी थी। असल में चुनाव लड़ने वाले और जीतने वाले नेताओं की सम्पत्ति दर्ज करवायी गयी सम्पत्ति से कहीं अधिक होगी।

कहने की ज़रूरत नहीं कि इन अमीर नेताओं के पास यह पैसा जनता की भारी लूट के ज़रिये ही जमा हुआ है। ये लुटेरे जनता के अपराधी हैं। लेकिन देश का कानून इन्हें अपराधी नहीं मानता। संसद में जनता के ये अपराधी शान से विराजमान हैं। लेकिन संसद में उनकी भी भारी गिनती है जिनके ऊपर भारतीय संविधान के अन्तर्गत अनेकों आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनकी गिनती 150 है।

यह है हमारे देश के जनतन्त्र की असल तस्वीर और इससे बड़ा मज़ाक क्या हो सकता है कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा जनतन्त्र कहा जाता है।

3 कमेंट:

संगीता पुरी June 23, 2009 at 9:19 AM  

यह है हमारे देश के जनतन्त्र की असल तस्वीर और इससे बड़ा मज़ाक क्या हो सकता है कि भारत को दुनिया का सबसे बड़ा जनतन्त्र कहा जाता है।
बिल्‍कुल सही ।

अजय कुमार झा June 23, 2009 at 9:35 AM  

लीजिये ये हैं हमारे जनप्रतिनिधि...जनता के सेवक..जनता जो आज भी भूखी..गरीब..बीमार है..तीन सौ तो ऐसे हैं जिन्हें मजबूरी में या चाहे जैसे भी अपनी संपत्ति का खुलासा करना पड़ा...जो बचे हुए हैं वो सब भी इसी पंक्ति में शामिल हैं...वह जिस देश की आधी आबादी अभी भी ग्रामीण है..किसान है..मजदूर है..उस देश का एक भी प्रतिनिधि इस वर्ग से नहीं..क्या खूब पूरा हो रहा है सपना देश को स्वतंत्र करवाने वालों का...

Anurag Harsh June 23, 2009 at 4:56 PM  

शानदार आंकड़ों के साथ दमदार बात कही आपने, लेकिन सुनने वाला कौन। हमें ही अवसर मिला था, इन नालायकों को चुनने का। गलती किसकी निश्चित रूप से हमारी।

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2. मकड़ा और मक्खी -- विल्हेल्म लीब्कनेख़्त

3. ट्रेडयूनियन काम के जनवादी तरीके -- सेर्गेई रोस्तोवस्की

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