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18.9.10

लुधियाना के पावरलूम वर्कर्स के आंदोलन का तीसरा दौर

दो सफल हड़तालों के बाद अब तीन दर्जन नए कारखानों में हड़ताल का तीसरा दिन। 


कारखाना मजदूर यूनियन की अगुवाई में लुधियाना के गऊशाला, कशमीर नगर, माधोपुरी आदि इलाकों के करीब तीन दर्जन पावरलूम कारखानों के मजदूरों की हड़ताल ने आज तीसरे दिन में प्रवेश किया। लुधियाना के पावरलूम करखानों के सैकड़ों मजदूर पीस रेट/वेतन बढ़ोत्तरी और अन्‍य बुनियादी अधिकारों को लागू करने के लिए एक संघर्षपूर्ण हड़ताल पर बैठे हैं और उनका प्रण है कि वे तब तक हड़ताल से नहीं उठेंगे जबतक कि उनकी मांगे मान नहीं ली जातीं।
लुधियाना के पावरलूम कारखाने मजदूरों के शोषण के लिए कुख्‍यात हैं। इन कारखानों में ज्‍यादातर पुरबिया मजदूर काम करते हैं जिन्‍हें कारखाना मालिक इंसान ही नहीं समझते। इन कारखानों में किसी भी प्रकार का श्रम कानून लागू नहीं होता। पी.एफ., ईएसआई, जॉब कार्ड, हाजिरी रजिस्‍टर जैसी कोई चीज इन कारखानों में नहीं पाई जाती। मजदूरों को काम के बदले मिलने वाले पीस रेट में कई सालों से कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है जबकि पिछले दो-तीन वर्षों में ही भोजन, आवास, दवा-इलाज, परिवहन जैसी हर बुनियादी आवश्‍यकता की चीजों में तीन-चार गुने की बढ़ोत्तरी हो चुकी है। स्‍थानीय श्रम विभाग पूरी तरह मालिकों की जेब में रहता है और बार-बार की शिकायतों के बावजूद श्रम विभाग और स्‍थानीय प्रशासन के कान पर जूं नहीं रेंगती। मालिकों के गुण्डों का खौफ लगातार मजदूरों के सिर पर बना रहता है।

इन परिस्थितियों से तंग आकर लुधियाना के मजदूरों ने कारखाना मजदूर यूनियन के नेतृत्‍व में संघर्ष की आवाज बुलंद कर दी है। इसकी शुरुआत 24 अगस्‍त को शक्तिनगर, टिब्‍बा रोड के 42 पावरलूम कारखानों के मजदूरों ने की और आठ दिन की हड़ताल के बाद उनकी जुझारू एकजुटता के सामने 31 अगस्‍त को मालिकों को आखिरकार झुकना पड़ा और उन्‍होंने मजदूरों की लगभग सभी मांगें मान लीं। यहां तक कि मजदूरों ने मालिकों को हड़ताल के दिनों का आधा वेतन देने के लिए भी मजबूर किया।  इसके बाद जिंदल टेक्‍स्‍टाइल नामके कारखाने में भी हड़ताल हुई और वहां भी उन्‍हें जीत हासिल हुई। लुधियाना के मजदूर आंदोलन के पिछले 18 वर्षों के इतिहास में यह पहला मौका था जब मजदूरों ने मालिकों की एकजुट ताकत के आगे कोई जीत दर्ज की थी। पिछले एक-डेढ़ दशक के दौरान मजदूरों ने कई बार बड़ी-बड़ी लड़ाइयां भी लड़ीं लेकिन हर बार पुरानी यूनियनों की गद्दारी के कारण आखिरकार मजदूरों को हार का मुंह देखना पड़ा। इस लिहाज से इस जीत का विशेष महत्व है और इसने मजदूरों में नए उत्‍साह का संचार किया है।

इन संघर्षों से सबक लेते हुए लुधियाना के अन्‍य क्षेत्रों (गऊशाला, कशमीर नगर, माधोपुरी आदि) के पावरलूम कारखानों के मजदूरों ने भी अपनी आवाज बुलंद कर दी है। कारखाना मजदूर यूनियन के रूप में उनके पास एक जुझारू और क्रांतिकारी यूनियन का समर्थन और नेतृत्‍व मौजूद है। मजदूरों ने यह सीखा है कि कारखाना मालिकों को झुकाने के लिए वे समझौतापरस्‍त, संशोधनवादी, नकली लाल झंडे वाली यूनियनों के भरोसे नहीं रह सकते। उन्‍हें एक क्रान्तिकारी यूनियन और फौलादी एकजुटता बनानी होगी। यही दो चीजें जीत की गारंटी दिला सकती हैं।

इस बीच गीतानगर में एक अन्‍य यूनियन के नेतृत्‍व में आंदोलन कर रहे मजदूरों पर पिछले सप्‍ताह मालिकों के गुण्‍डों ने कातिलाना हमला किया। इसमें करीब 50 मजदूर घायल हो गए। कारखाना मजदूर यूनियन ने प्रशासन से इस घटना की जांच करवाने और हमलावरों को सजा दिलाने की मांग की है। साथ ही मजदूरों ने मालिकों के किसी नए हमले का मुकाबला करने के लिए अपने सतर्कता दस्‍ते भी तैयार कर लिए। इन आंदोलनों की एक बहुत बड़ी सफलता यह है कि मजदूरों में मालिकों के गुण्‍डों और पुलिस का डर खत्‍म हो गया है। मोल्‍डर एवं स्‍टील वर्कर्स यूनियन लुधियाना ने भी पावरलूम मजदूरों की इस हड़ताल का समर्थन किया है। इसके साथ ही मजदूरों ने स्‍थानीय आबादी में भी पर्चे बांटकर नागरिकों को अपने जीवन व काम की असह्य परिस्थितियों और अपने आंदोलन के औचित्‍य के बारे में बताया है और इन्‍हीं परिस्थितियों में काम कर रहे लुधियाना के अन्‍य कारखानों के मजदूरों से भी समर्थन और आंदोलन में शामिल होने की अपील की है। मजदूरों ने श्रम विभाग के अधिकारियों को बताया कि उन्‍हीं की मेहनत की बदौलत वे मोटी-मोटी तनख्‍वाहें पाते हैं और अगर उन्‍होंने अपनी संवैधानिक जिम्‍मेदारी का भी निर्वाह नहीं किया तो मजदूर अपने आंदोलन को और तेज करेंगे।

2 कमेंट:

shameem September 19, 2010 at 7:04 PM  

ye majdoor andolan bhiwsya mein aham yogdan sabit honge isse pata calta hai ki bharat abhi bhi krantikari sambhawnao se less hai

कामता प्रसाद September 20, 2010 at 11:45 AM  

साथियो, हर दिन तफसील के साथ अपडेट दिया जाये ताकि देश के दूसरे हिस्‍से के मजदूर भी इससे सबक ले सकें। मसलन, मजदूरों ने मालिकों के गुंडों और वर्दीधारी गुंडों से किस प्रकार लोहा लिया और अपना पुरअसर प्रतिरोध दर्ज करने में कामयाब हुए, किस प्रकार से संशोधनवादी पार्टियों के लाल लंगोटधारी बंदरों को आम मेहनतकशों के बीच बेनकाब किया गया।
अखबारी रिपोर्टों में मुख्‍तसर बातें ही होती हैं हर दिन ब्‍योरेवारे जानकारी दी जाये तो ज्‍यादा अच्‍छा होगा।

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