हजारों की तादाद में शहरी गरीब, मजदूर, छात्र, युवा और स्त्रियां शहरी रोजगार गारंटी अधिकार की मांग के लिए इकट्ठा हुए
राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी कानून के लिए अभियान के तहत जंतर-मंतर पर विशाल प्रदर्शन - 25 हजार से अधिक हस्ताक्षरों सहित माँगपत्रक प्रधानमंत्री को सौंपा
शहरी रोजगार गारंटी अभियान के तहत लगभग पांच हजार मजदूर, छात्र, युवा और शहरी बेरोजगार जंतर-मंतर पर इकट्ठा हुए और हजारों हस्ताक्षरों के साथ एक मांगपत्रक प्रधानमंत्री को सौंपा। दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, बिगुल मजदूर दस्ता, स्त्री मुक्ति लीग और स्त्री मजदूर संगठन एवं अन्य जनसंगठन राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी कानून की माँग पर पिछले कई माह से दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अभियान चला रहे हैं। अभियान की मुख्य माँग यह है कि भारत सरकार शहरी गरीबों और बेरोजगारों के लिए नरेगा की तर्ज पर कानून बनाकर साल में कम से कम 200 दिन के रोजगार की गारंटी करे।
प्रधानमंत्री को सौंपे गए पाँचसूत्री माँगपत्रक की माँगें इस प्रकार हैं - 1. नरेगा की तर्ज़ पर शहरी बेरोज़गारों के लिए अविलम्ब शहरी रोज़गार गारण्टी योजना बनाकर लागू की जाये। 2. शहरी बेरोज़गारों को साल में से कम से कम 200 दिनों का रोज़गार दिया जाये। 3. योजना में मिलने वाले काम पर न्यूनतम मज़दूरी के मानकों के अनुसार भुगतान किया जाये। 4. रोज़गार न दे पाने की सूरत में जीविकोपार्जन के न्यूनतम स्तर के लिए पर्याप्त बेरोज़गारी भत्ता दिया जाये। 5. योजना को पूरे भारत में लागू किया जाये।
दिल्ली के विभिन्न इलाकों, नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, पंजाब तथा हरियाणा से आए प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी कानून के लिए अभियान के संयोजक अभिनव सिन्हा ने कहा, ''रोजगार के अधिकार को भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून में, स्वतंत्रता के बाद सरकार ने कम से कम कागज पर पहली बार यह माना है कि ग्रामीण गरीबों और बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है। सब जानते हैं कि नरेगा में भारी भ्रष्टाचार है और 100 दिन का रोजगार गुजारे के लिए नाकाफी है। फिर भी राज्य द्वारा यह जिम्मेदारी स्वीकार करना ही महत्वपूर्ण है। नरेगा के बेहतर कार्यान्वयन के लिए और इस योजना में 200 दिनों के रोजगार के लिए संघर्ष करने के साथ ही हमें इस तथ्य पर भी जोर देना है कि शहरी गरीब और बेरोजगार भी इस प्रकार की रोजगार गारंटी के समान रूप से हकदार हैं, खासकर इसलिए कि शहरों में बेरोजगारी गांवों के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा, शहरी गरीब अधिक अरक्षित हैं, क्योंकि उनमें 10 में से 9 प्रवासी हैं।''
नौजवान भारत सभा, दिल्ली इकाई के संयोजक आशीष ने कहा कि ग्रामीण भारत में बेरोजगारी की दर 7 फीसदी है, जबकि शहरों में यह 10 फीसदी से अधिक है; शहरों में काम करने योग्य प्रत्येक 1000 लोगों में से सिर्फ 337 के पास रोजगार है; गांवों में यह संख्या 417 है। शहरी भारत में 60 फीसदी युवा बेरोजगार हैं, जबकि ग्रामीण भारत में 45 फीसदी युवा बेराजगार हैं। इसके अलावा, शहरों में लगभग 90 फीसदी मजदूर दिहाड़ी पर या ठेके पर काम करते हैं, जो अक्सर वर्ष में काफी समय तक बेरोजगार रहते हैं। यदि बेरोजगारों और अद्र्ध-बेरोजगारों की कुल संख्या जोड़ी जाए, तो साफ हो जाएगा कि भारत की 85 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को अपनी आजीविका चलाने के लिए गारंटीशुदा काम की आवश्यकता है।
बिगुल मज़दूर दस्ता के अजय ने कहा कि मजदूर वर्ग की बुनियादी और तात्कालिक मांग है कि शहरी रोजगार गारंटी कानून का मसौदा बनाया जाए और उसे लागू किया जाए। लेकिन हमें यह भी समझ लेना होगा कि शहरी रोजगार की गारंटी के लिए कोई कानून मात्र बना देने से शहरी बेरोजगारों की करोड़ों की आबादी के जीवन स्तर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। बहुत ईमानदारी के साथ लागू करने पर भी, अधिक से अधिक यह केवल तात्कालिक राहत ही दे सकेगा। बेरोजगारी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए तो जरूरी है कि मुनाफे पर आधारित व्यवस्था को बदला जाए।
दिशा छात्र संगठन की चंडीगढ़ इकाई की नमिता ने कहा कि पंजाब में, और विशेषकर लुधियाना जैसे औद्योगिक शहरों में शहरी आबादी में गरीबी बहुत अधिक फैली हुई है। बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मजदूर बेहद गरीबी और अभाव में जीते हैं। आए दिन उन्हें काम से निकाल दिए जाने की समस्या से जूझना पड़ता है। शहरी रोजगार गारंटी का कानून बनने से इन मजदूरों को कुछ सुरक्षा मिलेगी।
स्त्री मुक्ति लीग की शिवानी ने कहा कि ऐसा कानून शहरी महिलाओं के लिए भी लाभप्रद होगा। उन्होंने कहा, ''इस अभियान में हमने मांग की है कि शहरी गरीबों को न्यूनतम मजदूरी दी जाए और वर्ष में 200 दिन के रोजगार की गारंटी की जाए, जिसका अर्थ है कि योजना के तहत रोजगार पाने वाले पुरुषों और महिलाओं को समान मजदूरी मिलेगी। दूसरी बात, ऐसे कानून होने पर महिलाओं को, विशेषकर शहरों की स्त्री मजदूरों को सुरक्षा मिलेगी क्योंकि मालिकों या ठेकेदारों के हाथों उत्पीड़न और क्रूरता का शिकार होने वाली ज्यादातर स्त्रियां ठेके या दिहाड़ी पर काम करती हैं। राज्य की तरफ से रोजगार की गारंटी मिल जाने पर महिलाएं पहले की तरह अरक्षित नहीं रह जाएंगी।''
दिशा छात्र संगठन की दिल्ली इकाई के सदस्य, शिवार्थ ने कहा कि नरेगा लागू करवाने से यूपीए की सरकार को बहुत प्रशंसा मिली, हालांकि इससे गुणात्मक स्तर पर कोई बदलाव नहीं आया और ज्यादातर पैसा गांवों की भ्रष्ट नेताशाही और अफसरशाही की जेबों में पहुंच जाता है। फिर भी, सरकार का यह स्वीकार करना महत्वूपर्ण बात है कि रोजगार देना उसकी जिम्मेदारी है, भले ही यह रोजगार महज 100 दिन का हो। यदि यूपीए और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह गरीबी दूर करने के अपने दावे के प्रति ईमानदार हैं, तो उन्हें सरकार के इसी कार्यकाल में तत्काल ऐसा बिल पेश करना चाहिए और उसे संसद में पारित करवाना चाहिए।
जागरूक नागरिक मंच की दिल्ली इकाई के संयोजक सत्यम ने कहा कि शहरी रोजगार की मांग विशेष रूप से शहरी गरीबों, मजदूरों और बेरोजगार युवाओं के लिए जरूरी है, लेकिन भारत के प्रत्येक नागरिक की यह मांग होनी चाहिए। सरकार को संविधान में संशोधन करके रोजगार के अधिकार को एक बुनियादी अधिकार का दर्जा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि ‘जागरूक नागरिक मंच’ की तरफ से इस अभियान के समर्थन में शहरी नागरिकों, पत्रकारों, बुद्धिजीवियों आदि के बीच अभियान चलाया जा रहा है और यह माँग पूरी होने तक इसके पक्ष में जनमत तैयार करने का काम जारी रहेगा।
दिशा छात्र संगठन की सांस्कृतिक टीम ने इस प्रदर्शन के दौरान कई क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की। प्रधानमंत्री कार्यालय को देश के विभिन्न राज्यों से कराए गए 25 हजार से अधिक हस्ताक्षरों से युक्त मांगपत्रक सौंपने के साथ प्रदर्शन समाप्त हुआ।
अभिनव
संयोजक, राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारंटी अभियान
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अभिनवः 9999379381, आशीषः 9211662298
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