कैसा है यह लोकतन्त्र और यह संविधान किनकी सेवा करता है? (तीसरी किस्त)
(अगले अंक में : अन्तरिम सरकार और संविधान सभा, साम्प्रदायिक विनाश-लीला, तेभागा-तेलंगाना, पुनप्रा-वायलार, माउण्टबेटन योजना, विभाजन और आजादी)
गोरखपुर का मई दिवस
यूँ तो विभिन्न संशोधनवादी पार्टियों और यूनियनों की ओर से हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन वह बस एक अनुष्ठान होकर रह गया है। मगर बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में इस बार गोरखपुर में मई दिवस मजदूरों की जुझारू राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।
गोरखपुर, बरगदवाँ और गीडा औद्योगिक क्षेत्र के 1500 से अधिक मजदूरों ने एकजुट होकर पहली मई को अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर आम हड़ताल की और जुलूस निकाला। मजदूर सुबह आठ बजे से ही अपने-अपने कारखाना गेटों पर जमा होने लगे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सैकड़ों मजदूर बरगदवाँ भगवानपुर की फैक्ट्रियों और मजदूर बस्तियों से नारे लगाते हुए निकले और गोरखनाथ, तरंग चौराहा, जटाशंकर चौक, गोलघर होते हुए दिन के 1 बजे नगर निगम मैदान पर पहुँचे, जहाँ जुलूस सभा में तब्दील हो गया। जटांशकर चौराहे पर गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) से आया 250 मजदूरों का साइकिल जुलूस और अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच के कार्यकर्ता भी इसमें शामिल हो गये। गीडा के मजदूरों में भी मई दिवस को लेकर ख़ासा उत्साह था। वे भारी संख्या में जुटे और सबसे पहले उन्होंने गीडा औद्योगिक क्षेत्र में जुलूस निकाला। उसके बाद वे सभी 25 किमी. तक साइकिल चलाते हुए जटाशंकर चौक तक पहुँचे। मजदूरों के हाथों में लाल झण्डे थे और माथे पर लाल पट्टियाँ बँधी हुई थीं। वे 'दुनिया के मजदूरो एक हो', 'मई दिवस के शहीद अमर रहें', 'मई दिवस अमर रहे,' 'पूँजीवाद हो बरबाद,' 'इन्कलाब जिन्दाबाद' के नारे लगा रहे थे। उनके हाथों में नारे लिखी तख्तियाँ थीं। जुलूस में सबसे आगे 'मई दिवस अमर रहे' लिखा लाल बैनर चल रहा था। उससे कुछ दूरी पर एक बड़े से चौकोर लाल बैनर पर मजदूरों की पाँच माँगें लिखी थीं
सभा को सम्बोधित करते हुए बिगुल मजदूर दस्ता के कार्यकर्ता प्रशान्त जो टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष भी हैं, ने मई दिवस के जन्म और उसकी क्रान्तिकारी विरासत के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि 1886 के शिकागो के मजदूरों का 'काम के घण्टे आठ करो' का नारा पूरे विश्व मजदूर आन्दोलन का नारा बन गया। इसने पहली बार पूरी दुनिया के मजदूरों को एकजुट होकर अपने-अपने देश की पूँजीवादी सरकारों के ख़िलाफ लड़ने का रास्ता दिखाया। मजदूरों में पहली बार यह भावना जागृत हुई कि वे अलग-अलग अपने-अपने कारख़ानेदारों से लड़ते हुए, अपने हालात नहीं सुधार सकते।
टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के सचिव और बिगुल मजदूर दस्ता के कार्यकर्ता तपीश ने कहा कि मजदूरों को यह बात साफ तौर पर समझ लेनी होगी कि अकूत कुर्बानियों के बाद बने श्रम कानूनों को पूँजीवादी सरकारें लागू नहीं करना चाहती हैं। उल्टे मजदूर अधिकारों में लगातार कटौती की जा रही है। आज से करीब सवा सौ साल पहले चले संघर्षों के बाद आज हालत यह हो गयी है कि यदि मजदूर अपना ख़ून बहाकर कुछ कानून अपने पक्ष में बनवा भी लेते हैं तो पूँजीवादी सरकारों का शासन-प्रशासन उसे कभी भी लागू नहीं होने देगा। उन्होंने कहा कि 1886 में शिकागो के मजदूर सिर्फ अपने वेतन-भत्तो बढ़वाने के लिए नहीं लड़ रहे थे। वे पूँजी की ग़ुलामी से आजादी के लिए लड़ रहे थे। आज के मजदूरों का यह फर्ज बनता है कि वे श्रम कानूनों को लागू करने की माँग उठाते हुए यह याद रखें कि उनका ऐतिहासिक मिशन पूँजीवाद को ख़त्म करके एक ऐसी समाज व्यवस्था कायम करना है जिसमें उत्पादन, राज-काज और समाज के पूरे ढाँचे पर मेहनतकशों का नियन्त्रण हो।
नौजवान भारत सभा के प्रमोद ने मजदूरों द्वारा मई दिवस के मौके पर उठायी गयी पाँचों माँगों का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने कहा कि पूँजीपति वर्ग अपने मुनाफे की हवस में पर्यावरण को तबाह करने में लगा है। पूँजीवाद सिर्फ मजदूरों का ही नहीं वरन पूरी मानवता और इस धरती का दुश्मन बन बैठा है। उन्होंने कहा कि शहरी बेरोजगारों को रोजगार गारण्टी की माँग एक अन्य महत्वपूर्ण माँग है। पूँजीपति चाहते हैं कि उनके कारख़ाना गेटों पर बेरोजगारों की भीड़ हमेशा मौजूद रहे जिसका फायदा उठाकर वे मनमाफिक मजदूरी पर मजदूरों को निचोड़ सकें। प्रमोद ने कहा कि मजदूरों को अपनी राजनीतिक माँगें उठाकर व्यापक पैमाने पर निम्न मध्य वर्ग, गरीब किसान, बेरोजगारों और समाज के सभी दबे-कुचले तबकों को अपने साथ मिलाने की कोशिश करनी चाहिए।
अखिल भारत नेपाली एकता मंच के एम.पी. शर्मा और अविनाश ने भी मजदूरों को सम्बोधित किया। नेपाल के उदाहरण से उन्होंने बताया कि दुनिया के सभी दबे-कुचलों, मजदूरों और तबाह होते किसानों की मुक्ति के परचम का रंग केवल लाल है। जब भी जनता ने अपनी मुक्ति का झण्डा उठाया है पुराने शासक वर्ग ने उसे हर तरीके से कुचलने की कोशिश की है।
विभिन्न कारख़ानों के अगुआ मजदूरों ने भी सभा को सम्बोधित किया। सभी मजदूर वक्ताओं ने बरगदवाँ और गीडा औद्योगिक क्षेत्र की एकजुटता की ओर बढे पहले कदम का स्वागत किया। उन्होंने इलाकाई आधार पर अपनी एकजुटता को मजबूत करने की बात की और मई दिवस की क्रान्तिकारी भावना को अपनाने पर जोर दिया।
मई दिवस के आयोजन को सफल बनाने के लिए बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन] लारी प्रोसेस हाऊस, गीडा, इंजीनियरिंग वर्कर्स यूनियन और नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने सघन तैयारियाँ कीं। छोटी-छोटी प्रचार टोलियाँ बनाकर कारखाना गेटों, मुहल्ला बस्तियों, नुक्कड़ चौराहों, रेलवे वर्कशापों पर 15000 पर्चे बाँटे गये और 2000 पोस्टर चिपकाये गये। 28 अप्रैल को गीडा ग्राउण्ड जुडियान, और 29 अप्रैल को बरगदवाँ गाँव, में जहाँ मजदूरों की भारी आबादी रहती है, मर्यादपुर से आयी देहाती मजदूर यूनियन की टोली ने क्रान्तिकारी बिरहा और गीतों की प्रस्तुति की। इन आयोजनों में हजारों मजदूरों ने परिवार सहित शिरकत की। मई दिवस और मजदूर आन्दोलन से सम्बन्धित साहित्य भी मजदूरों ने ख़ूब खरीदा और पढ़ा।
यूँ तो विभिन्न संशोधनवादी पार्टियों और यूनियनों की ओर से हर साल मजदूर दिवस मनाया जाता है लेकिन वह बस एक अनुष्ठान होकर रह गया है। मगर बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में इस बार गोरखपुर में मई दिवस मजदूरों की जुझारू राजनीतिक चेतना का प्रतीक बन गया।
गोरखपुर, बरगदवाँ और गीडा औद्योगिक क्षेत्र के 1500 से अधिक मजदूरों ने एकजुट होकर पहली मई को अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के अवसर पर आम हड़ताल की और जुलूस निकाला। मजदूर सुबह आठ बजे से ही अपने-अपने कारखाना गेटों पर जमा होने लगे। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सैकड़ों मजदूर बरगदवाँ भगवानपुर की फैक्ट्रियों और मजदूर बस्तियों से नारे लगाते हुए निकले और गोरखनाथ, तरंग चौराहा, जटाशंकर चौक, गोलघर होते हुए दिन के 1 बजे नगर निगम मैदान पर पहुँचे, जहाँ जुलूस सभा में तब्दील हो गया। जटांशकर चौराहे पर गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) से आया 250 मजदूरों का साइकिल जुलूस और अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच के कार्यकर्ता भी इसमें शामिल हो गये। गीडा के मजदूरों में भी मई दिवस को लेकर ख़ासा उत्साह था। वे भारी संख्या में जुटे और सबसे पहले उन्होंने गीडा औद्योगिक क्षेत्र में जुलूस निकाला। उसके बाद वे सभी 25 किमी. तक साइकिल चलाते हुए जटाशंकर चौक तक पहुँचे। मजदूरों के हाथों में लाल झण्डे थे और माथे पर लाल पट्टियाँ बँधी हुई थीं। वे 'दुनिया के मजदूरो एक हो', 'मई दिवस के शहीद अमर रहें', 'मई दिवस अमर रहे,' 'पूँजीवाद हो बरबाद,' 'इन्कलाब जिन्दाबाद' के नारे लगा रहे थे। उनके हाथों में नारे लिखी तख्तियाँ थीं। जुलूस में सबसे आगे 'मई दिवस अमर रहे' लिखा लाल बैनर चल रहा था। उससे कुछ दूरी पर एक बड़े से चौकोर लाल बैनर पर मजदूरों की पाँच माँगें लिखी थीं
सभा को सम्बोधित करते हुए बिगुल मजदूर दस्ता के कार्यकर्ता प्रशान्त जो टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष भी हैं, ने मई दिवस के जन्म और उसकी क्रान्तिकारी विरासत के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि 1886 के शिकागो के मजदूरों का 'काम के घण्टे आठ करो' का नारा पूरे विश्व मजदूर आन्दोलन का नारा बन गया। इसने पहली बार पूरी दुनिया के मजदूरों को एकजुट होकर अपने-अपने देश की पूँजीवादी सरकारों के ख़िलाफ लड़ने का रास्ता दिखाया। मजदूरों में पहली बार यह भावना जागृत हुई कि वे अलग-अलग अपने-अपने कारख़ानेदारों से लड़ते हुए, अपने हालात नहीं सुधार सकते।
टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के सचिव और बिगुल मजदूर दस्ता के कार्यकर्ता तपीश ने कहा कि मजदूरों को यह बात साफ तौर पर समझ लेनी होगी कि अकूत कुर्बानियों के बाद बने श्रम कानूनों को पूँजीवादी सरकारें लागू नहीं करना चाहती हैं। उल्टे मजदूर अधिकारों में लगातार कटौती की जा रही है। आज से करीब सवा सौ साल पहले चले संघर्षों के बाद आज हालत यह हो गयी है कि यदि मजदूर अपना ख़ून बहाकर कुछ कानून अपने पक्ष में बनवा भी लेते हैं तो पूँजीवादी सरकारों का शासन-प्रशासन उसे कभी भी लागू नहीं होने देगा। उन्होंने कहा कि 1886 में शिकागो के मजदूर सिर्फ अपने वेतन-भत्तो बढ़वाने के लिए नहीं लड़ रहे थे। वे पूँजी की ग़ुलामी से आजादी के लिए लड़ रहे थे। आज के मजदूरों का यह फर्ज बनता है कि वे श्रम कानूनों को लागू करने की माँग उठाते हुए यह याद रखें कि उनका ऐतिहासिक मिशन पूँजीवाद को ख़त्म करके एक ऐसी समाज व्यवस्था कायम करना है जिसमें उत्पादन, राज-काज और समाज के पूरे ढाँचे पर मेहनतकशों का नियन्त्रण हो।
नौजवान भारत सभा के प्रमोद ने मजदूरों द्वारा मई दिवस के मौके पर उठायी गयी पाँचों माँगों का पुरजोर समर्थन किया। उन्होंने कहा कि पूँजीपति वर्ग अपने मुनाफे की हवस में पर्यावरण को तबाह करने में लगा है। पूँजीवाद सिर्फ मजदूरों का ही नहीं वरन पूरी मानवता और इस धरती का दुश्मन बन बैठा है। उन्होंने कहा कि शहरी बेरोजगारों को रोजगार गारण्टी की माँग एक अन्य महत्वपूर्ण माँग है। पूँजीपति चाहते हैं कि उनके कारख़ाना गेटों पर बेरोजगारों की भीड़ हमेशा मौजूद रहे जिसका फायदा उठाकर वे मनमाफिक मजदूरी पर मजदूरों को निचोड़ सकें। प्रमोद ने कहा कि मजदूरों को अपनी राजनीतिक माँगें उठाकर व्यापक पैमाने पर निम्न मध्य वर्ग, गरीब किसान, बेरोजगारों और समाज के सभी दबे-कुचले तबकों को अपने साथ मिलाने की कोशिश करनी चाहिए।
अखिल भारत नेपाली एकता मंच के एम.पी. शर्मा और अविनाश ने भी मजदूरों को सम्बोधित किया। नेपाल के उदाहरण से उन्होंने बताया कि दुनिया के सभी दबे-कुचलों, मजदूरों और तबाह होते किसानों की मुक्ति के परचम का रंग केवल लाल है। जब भी जनता ने अपनी मुक्ति का झण्डा उठाया है पुराने शासक वर्ग ने उसे हर तरीके से कुचलने की कोशिश की है।
विभिन्न कारख़ानों के अगुआ मजदूरों ने भी सभा को सम्बोधित किया। सभी मजदूर वक्ताओं ने बरगदवाँ और गीडा औद्योगिक क्षेत्र की एकजुटता की ओर बढे पहले कदम का स्वागत किया। उन्होंने इलाकाई आधार पर अपनी एकजुटता को मजबूत करने की बात की और मई दिवस की क्रान्तिकारी भावना को अपनाने पर जोर दिया।
मई दिवस के आयोजन को सफल बनाने के लिए बिगुल मजदूर दस्ता की अगुवाई में टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन] लारी प्रोसेस हाऊस, गीडा, इंजीनियरिंग वर्कर्स यूनियन और नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने सघन तैयारियाँ कीं। छोटी-छोटी प्रचार टोलियाँ बनाकर कारखाना गेटों, मुहल्ला बस्तियों, नुक्कड़ चौराहों, रेलवे वर्कशापों पर 15000 पर्चे बाँटे गये और 2000 पोस्टर चिपकाये गये। 28 अप्रैल को गीडा ग्राउण्ड जुडियान, और 29 अप्रैल को बरगदवाँ गाँव, में जहाँ मजदूरों की भारी आबादी रहती है, मर्यादपुर से आयी देहाती मजदूर यूनियन की टोली ने क्रान्तिकारी बिरहा और गीतों की प्रस्तुति की। इन आयोजनों में हजारों मजदूरों ने परिवार सहित शिरकत की। मई दिवस और मजदूर आन्दोलन से सम्बन्धित साहित्य भी मजदूरों ने ख़ूब खरीदा और पढ़ा।
लम्बे अरसे बाद गोरखपुर में इतने बड़े पैमाने पर हुए पहली मई के आयोजन के प्रति व्यापक मजदूर आबादी में जहाँ भारी उत्सुकता था, वहीं इलाके के पूँजीपतियों में उससे अधिक बेचैनी दिखायी पड़ी। जालान सरिया और बर्तन फैक्ट्री के मालिकान ने अपने मजदूरों को सुबह पाँच बजे ही काम पर बुला लिया, ताकि वे जुलूस में शामिल न हो सकें। उन्होंने अपने फैक्ट्री गेट पर पर्चा तक नहीं बँटने दिया। जिस दिन पर्चा बाँटा जा रहा था उस दिन सभी मजदूरों को पीछे के गेट से निकाल दिया गया। गीडा के मजदूरों ने जब अपने औद्योगिक क्षेत्र में नारे लगाते हुए जुलूस निकाला तो कई मजदूर काम बन्द कर अपने-अपने कारखाना गेटों-खिड़कियों पर इकट्ठा होकर जुलूस देखने लगे। बहुतों ने उसके समर्थन में नारे भी लगाये। अंकुर उद्योग के मालिक ने मजदूरों को रोकने के लिए 1 मई को ई.एल. का भुगतान करने का नोटिस लगवा दिया। मगर मजदूरों ने मालिक के षड्यन्त्र को भाँप लिया और एकजुट होकर इसका विरोध किया, बाद में अंकुर के मैनेजमेण्ट को अपना नोटिस वापस लेना पड़ा।स
शहरी रोजगार गारण्टी अभियान के तहत लगभग डेढ़ हजार मजदूर, छात्र, युवा और शहरी बेरोजगारों ने मई दिवस के दिन दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर जबर्दस्त प्रदर्शन किया और हजारों हस्ताक्षरों के साथ एक माँगपत्रक प्रधानमन्त्री को सौंपा। बिगुल मजदूर दस्ता, स्त्री मजदूर संगठन, दिशा छात्र संगठन, नौजवान भारत सभा, स्त्री मुक्ति लीग एवं अन्य जनसंगठन राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारण्टी कानून की माँग पर पिछले कई माह से दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र सहित देश के विभिन्न हिस्सों में अभियान चला रहे हैं। अभियान की मुख्य माँग यह है कि भारत सरकार शहरी गरीबों और बेरोजगारों के लिए नरेगा की तर्ज पर कानून बनाकर साल में कम से कम 200 दिन के रोजगार की गारण्टी करे।
प्रधानमन्त्री को सौंपे गये पाँचसूत्री माँगपत्रक की माँगें इस प्रकार हैं - 1. नरेगा की तर्ज पर शहरी बेरोजगारों के लिए अविलम्ब शहरी रोजगार गारण्टी योजना बनाकर लागू की जाये। 2. शहरी बेरोजगारों को साल में से कम से कम 200 दिनों का रोजगार दिया जाये। 3. योजना में मिलने वाले काम पर न्यूनतम मजदूरी के मानकों के अनुसार भुगतान किया जाये। 4. रोजगार न दे पाने की सूरत में जीविकोपार्जन के न्यूनतम स्तर के लिए पर्याप्त बेरोजगारी भत्ता दिया जाये। 5. योजना को पूरे भारत में लागू किया जाये।
दिल्ली के विभिन्न इलाकों, नोएडा, गाजियाबाद, लखनऊ, गोरखपुर, पंजाब तथा हरियाणा से आये प्रदर्शनकारियों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय शहरी रोजगार गारण्टी कानून के लिए अभियान के संयोजक अभिनव सिन्हा ने कहा कि रोजगार के अधिकार को भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारण्टी कानून में, स्वतन्त्रता के बाद सरकार ने कम से कम कागज पर पहली बार यह माना है कि ग्रामीण गरीबों और बेरोजगारों को रोजगार प्रदान करना राज्य की जिम्मेदारी है। सब जानते हैं कि नरेगा में भारी भ्रष्टाचार है और 100 दिन का रोजगार गुजारे के लिए नाकाफी है। नरेगा के बेहतर कार्यान्वयन के लिए और इसमें 200 दिन के रोजगार के लिए संघर्ष करने के साथ ही हमें इस तथ्य पर भी जोर देना है कि शहरी गरीब और बेरोजगार भी इस प्रकार की रोजगार गारण्टी के बराबर के हकदार हैं, ख़ासकर इसलिए कि शहरों में बेरोजगारी गाँवों के मुकाबले अधिक तेजी से बढ़ रही है। इसके अलावा, शहरी गरीब अधिक असुरक्षित हैं, क्योंकि उनमें 10 में से 9 प्रवासी हैं।
नौजवान भारत सभा, दिल्ली इकाई के संयोजक आशीष ने कहा कि ग्रामीण भारत में बेरोजगारी की दर 7 फीसदी है, जबकि शहरों में यह 10 फीसदी से अधिक है; शहरों में काम करने योग्य प्रत्येक 1000 लोगों में से सिर्फ 337 के पास रोजगार है, गाँवों में यह संख्या 417 है। शहरी भारत में 60 फीसदी युवा बेरोजगार हैं, जबकि ग्रामीण भारत में 45 फीसदी युवा बेरोजगार हैं। इसके अलावा, शहरों में लगभग 90 फीसदी मजदूर दिहाड़ी पर या ठेके पर काम करते हैं, जो अक्सर वर्ष में काफी समय तक बेरोजगार रहते हैं। यदि बेरोजगारों और र्अ(-बेरोजगारों की कुल संख्या जोड़ी जाये, तो साफ हो जायेगा कि भारत की 85 प्रतिशत शहरी जनसंख्या को अपनी आजीविका चलाने के लिए गारण्टीशुदा काम की आवश्यकता है।
बिगुल मजदूर दस्ता के अजय ने कहा कि मजदूर वर्ग की बुनियादी और तात्कालिक माँग है कि शहरी रोजगार गारण्टी कानून का मसौदा बनाया जाये और उसे लागू किया जाये। लेकिन हमें यह भी समझ लेना होगा कि शहरी रोजगार की गारण्टी के लिए कोई कानून मात्र बना देने से शहरी बेरोजगारों की करोड़ों की आबादी के जीवन स्तर पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ेगा। ईमानदारी से लागू करने पर भी, अधिक से अधिक यह केवल तात्कालिक राहत ही दे सकेगा। बेरोजगारी की समस्या के स्थायी समाधान के लिए जरूरी है कि मुनाफे पर टिकी व्यवस्था को बदला जाये।
दिशा छात्र संगठन की चण्डीगढ़ इकाई के राजिन्दर ने कहा कि पंजाब में, और विशेषकर लुधियाना जैसे औद्योगिक शहरों में शहरी आबादी में गरीबी बहुत अधिक फैली हुई है। बिहार और उत्तर प्रदेश से आने वाले प्रवासी मजदूर बेहद गरीबी और अभाव में जीते हैं। आये दिन उन्हें काम से निकाल दिये जाने की समस्या से जूझना पड़ता है। शहरी रोजगार गारण्टी का कानून बनने से इन मजदूरों को कुछ सुरक्षा मिलेगी।
स्त्री मुक्ति लीग की शिवानी ने कहा कि शहरी महिलाओं को ऐसे कानून की सख्त जरूरत है। उन्होंने कहा, ''हमने माँग की है कि शहरी गरीबों को न्यूनतम मजदूरी दी जाये और 200 दिन के रोजगार की गारण्टी की जाये, जिसका अर्थ है कि योजना के तहत रोजगार पाने वाले पुरुषों और महिलाओं को बराबर मजदूरी मिलेगी। ऐसा कानून होने पर महिलाओं को, विशेषकर शहरों की स्त्री मजदूरों को सुरक्षा मिलेगी क्योंकि मालिकों या ठेकेदारों के हाथों उत्पीड़न और क्रूरता का शिकार होने वाली ज्यादातर स्त्रियाँ ठेके या दिहाड़ी पर काम करती हैं।
दिशा छात्र संगठन की दिल्ली इकाई के सदस्य, शिवार्थ ने कहा कि यदि गरीबी दूर करने का यूपीए और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह का दावा एक फरेब नहीं है, तो उन्हें सरकार के इसी कार्यकाल में ऐसा बिल पेश करना चाहिए और उसे संसद में पारित करवाना चाहिए।
जागरूक नागरिक मंच, दिल्ली के संयोजक सत्यम ने कहा कि शहरी रोजगार की माँग विशेष रूप से शहरी गरीबों, मजदूरों और बेरोजगार युवाओं के लिए जरूरी है। सरकार को संविधान में संशोधन करके रोजगार के अधिकार को एक बुनियादी अधिकार का दर्जा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि 'जागरूक नागरिक मंच' की तरफ से इस माँग के समर्थन में शहरी नागरिकों, पत्रकारों, बुध्दिजीवियों आदि के बीच अभियान चलाया जा रहा है और यह माँग पूरी होने तक इसके पक्ष में जनमत तैयार करने का काम जारी रहेगा।
बादाम मजदूर यूनियन, करावल नगर के कपिल ने कहा कि मजदूरों को किसी के भरोसे नहीं रहना होगा, उन्हें अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी होगी। कल्याणकारी रिक्शा ठेली मजदूर समिति और हाथ ठेला यूनियन की ओर से महेन्द्र पासवान ने भी इस अभियान का समर्थन किया।
विभिन्न वक्ताओं ने अभियान की माँगों के साथ-साथ अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस के महत्व के बारे में भी बताया। दिशा छात्र संगठन की सांस्कृतिक टीम ने इस प्रदर्शन के दौरान कई क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की। प्रधानमन्त्री कार्यालय को देश के विभिन्न राज्यों में कराये गये 25 हजार से अधिक हस्ताक्षरों से युक्त माँगपत्रक सौंपने के साथ प्रदर्शन समाप्त हुआ।
मई दिवस अभियान के लिए यूनियन ने ''मई दिवस के क्रान्तिकारी पथ पर आगे बढ़ो, पूँजीपतियों द्वारा लूट, दमन, अन्याय के खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए आगे आओ'' शीर्षक से एक पर्चा बड़े पैमाने पर लुधियाना के मजदूरों तक पहुँचाया। पर्चे के जरिये मजदूरों को मौजूदा समय की चुनौतियों को कबूल करने और मई दिवस के क्रान्तिकारी इतिहास से प्रेरणा लेकर पूँजीपति वर्ग की ग़ुलामी से मुक्ति के महासंग्राम को कामयाबी तक पहुँचाने के लिए जी-जान लगा देने का आह्नान किया गया।
अनेक नुक्कड़ सभाओं में कारखाना मजदूर यूनियन की सांस्कृतिक टीम द्वारा किशनचन्दर की कहानी पर आधारित व्यंग्यात्मक नुक्कड़ नाटक 'गङ्ढा' का मंचन किया गया जिसमें एक मजदूर की कहानी पेश की गयी, जो गरीबी, कंगाली के गङ्ढे में गिरा चीख-चीखकर कह रहा है कि उसे कोई वहाँ से बाहर निकाले। नेता, धार्मिक बाबा, सरकारी अफसर, पत्रकार, पुलिस के पात्रों के साथ गङ्ढे में गिरे मजदूर की बातचीत के जरिये दिखाया गया कि मौजूदा व्यवस्था से मजदूर वर्ग को कोई उम्मीद नहीं रखनी चाहिए।
पहली मई को दो इलाकों में कारखाना मजदूर यूनियन द्वारा लाल झण्डे फहराते हुए पैदल मार्च किया गया। एक मार्च ई.डब्ल्यू.एस. कालोनी से शुरू होकर, ताजपुर रोड होते हुए बस्ती चौक तक निकाला गया। 'मई दिवस के शहीद अमर रहें', 'दुनिया के मजदूरो एक हो', 'हर जोर-जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है', 'खत्म करो पूँजी का राज, लड़ो बनाओ लोक-स्वराज' आदि गगनभेदी नारे बुलन्द करते हुए, लोगों में पर्चा वितरत करते हुए, कारखाना मजदूर यूनियन के सदस्यों ने मई दिवस के शहीदों की याद को ताजा किया और उनके संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्नान किया। दूसरा जुलूस गयासपुरा में निकाला गया। मान नगर (ढाबा रोड) से शुरू होकर तालाब से होते हुए लक्ष्मण नगर, अम्बेडकर नगर और पीपल चौक से होते कारखाना मजदूर यूनियन के सदस्यों का यह काफिला प्रेम नगर पहुँचा।
नुक्कड़ सभाओं के दौरान कारखाना मजदूर यूनियन के लखविन्दर ने कहा कि आज मजदूरों को हासिल नाममात्र के हक-अधिकार छीने जा रहे हैं। पूँजीपति वर्ग मजदूर वर्ग से संगठित होने और अपने हक की आवाज बुलन्द करने का अधिकार भी छीन रहा है। उन्होंने कहा कि मई दिवस का यह सन्देश हर मजदूर के जेहन में उतारने की जरूरत है कि मजदूरों को आज तक बिना लड़े कुछ भी नहीं मिला। शोषक वर्ग से हमें किसी भी तरह की रहमदिली की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और अपने हक-अधिकार एकजुट संघर्ष के जरिये हासिल करने के लिए आगे आना चाहिए। उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय मजदूर दिवस की गौरवमयी क्रान्तिकारी विरासत को हर मजदूर तक पहुँचाना होगा। उन्होंने कहा कि अपनी क्रान्तिकारी विरासत को आत्मसात करके ही मजदूर वर्ग पूँजीपति वर्ग पर विजय प्राप्त कर सकता है।
बिगुल संवाददाता
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14. बोलते आंकड़े चीखती सच्चाइयां
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