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18.10.09

मिलमालिकों के हाथों बिके हुए प्रशासन का युवा कार्यकर्ताओं पर बर्बर हमला

मित्रो,

गोरखपुर में मज़दूर आंदोलन को कुचलने के लिए प्रशासन के नंगे दमनकारी कदमों के बारे में हमने पिछले पोस्‍ट में आपको बताया था। इस बीच कल शाम को जब कुछ साथी काफी कोशिशों के बाद गिरफ्तार साथियों से जेल में मिले, तो उन्‍होंने जो बताया उसे आप तक पहुंचाना जरूरी लगा, इसलिए यह दूसरी पोस्‍ट।

गिरफ्तार साथियों ने बताया कि 15 अक्टूबर की रात ज़िला प्रशासन ने तीनों नेताओं को बातचीत के बहाने एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाया था जहां खुद एडीएम सिटी अखिलेश तिवारी, सिटी मजिस्ट्रेट अरुण और कैंट थाने के इंस्पेक्टर विजय सिंह ने अन्य पुलिसवालों के साथ मिलकर उन्हें लात-घूंसों से बुरी तरह मारा। बर्बरता की सारी हदें पार करते हुए ज़िले के इन वरिष्ठ अफसरों ने युवा कार्यकर्ता प्रशांत को भी बुरी तरह मारा जबकि वह और अन्य साथी बार-बार कह रहे थे कि वे हृदयरोगी हैं और पिटाई उनके लिए घातक हो सकती है। ज़िला प्रशासन फैक्ट्री मालिकों के हाथों किस कदर बिक चुका है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सका है कि जिन अफसरों पर कानून लागू कराने की ज़िम्मेदारी है वे खुद ऐसी अँधेरगर्दी पर आमादा हैं।

वार्ता के बहाने एडीएम सिटी के कार्यालय में बुलाए जाते ही इन चारों साथियों के मोबाइल फोन छीनकर स्विच ऑफ कर दिए गए और सारे कानूनों और उच्चतम न्यायालय के निर्देशों को ताक पर धरकर देर रात जेल भेजे जाने तक उन्हें किसी से बात करने की इजाज़त नहीं दी गयी। जेल जाने के तीसरे दिन 17 अक्टूबर की शाम को जब कुछ साथी जेल में उनसे मिल सके, तब उन्होंने इन घटनाओं की जानकारी दी। उन्होंने बताया कि बार-बार कहने के बावजूद प्रशासन ने उनका मेडिकल नहीं कराया। प्रशान्त दिल की गंभीर बीमारी से ग्रस्त हैं जिसका इलाज आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़, दिल्ली और मैक्स देवकी देवी हार्ट इंस्टीट्यूट, दिल्ली से चल रहा है। यह बताने पर भी उन्हें चिकित्सा सुविधा नहीं दी गयी और दवाएं तक नहीं मंगाने दी गयीं। इसके बारे में कहने पर एडीएम सिटी ने उन्हें भद्दी-भद्दी गालियां दीं। उन्हें बार-बार आन्दोलन से अलग हो जाने के लिए धमकियां दी गईं।

इसके बाद उन्हें कैंट थाने ले जाया गया जहां उनके खिलाफ शांति भंग करने की धाराओं के अतिरिक्त एक्सटॉर्शन“ (जबरन वसूली) के आरोप में धारा 384 के तहत भी मुकदमा दर्ज कर लिया गया। इसके अगले दिन मालिकों की ओर से इन तीन नेताओं के अलावा 9 मजदूरों पर जबरन मिल बंद कराने, धमकियां देने जैसे आरोपों में एकदम झूठा मुकदमा दर्ज कर लिया गया।

जिला प्रशासन एकदम नंगई के साथ मिल‍मालिकों के पक्ष में काम कर रहा है। मजदूरों पर फर्जी मुकदमे लगाए जा रहे हैं जबकि खुद मालिकों के गुंडे मजदूरों को डराने-धमकाने का काम कर रहे हैं। इतना ही नहीं, मजदूर बस्तियों में मकानमालिकों को धमकाया जा रहा है कि वे किराए पर रहने वाले मजदूरों से कमरा खाली करा लें और दुकानकारों को मजदूरों को उधार पर खाने-पीने का सामान देने तक से मना किया जा रहा है।

ऐसे में ज़रूरी है कि गोरखपुर में पूँजी, प्रशासन और घोर मज़दूर-विरोधी सांप्रदायिक शक्तियों (भाजपा सांसद योगी आदित्‍यनाथ) की सम्मिलित ताकत का अकेले मुकाबला कर रहे मज़दूरों और छात्र-युवा कार्यकर्ताओं को हम अपना हर संभव सहयोग और समर्थन प्रदान करें।

सारे घटनाक्रम और स्थिति की पूरी जानकारी के लिए, आप क्‍या कर सकते हैं, और अधिकारियों के पतों आदि के लिए पिछली पोस्‍ट यहां पढ़ें: मजदूर संगठनों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों के नाम अपील


बिगुल के बारे में

बिगुल पुस्तिकाएं
1. कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा -- लेनिन

2. मकड़ा और मक्खी -- विल्हेल्म लीब्कनेख़्त

3. ट्रेडयूनियन काम के जनवादी तरीके -- सेर्गेई रोस्तोवस्की

4. मई दिवस का इतिहास -- अलेक्ज़ैण्डर ट्रैक्टनबर्ग

5. पेरिस कम्यून की अमर कहानी

6. बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति की मशाल

7. जंगलनामा : एक राजनीतिक समीक्षा -- डॉ. दर्शन खेड़ी

8. लाभकारी मूल्य, लागत मूल्य, मध्यम किसान और छोटे पैमाने के माल उत्पादन के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण : एक बहस

9. संशोधनवाद के बारे में

10. शिकागो के शहीद मज़दूर नेताओं की कहानी -- हावर्ड फास्ट

11. मज़दूर आन्दोलन में नयी शुरुआत के लिए

12. मज़दूर नायक, क्रान्तिकारी योद्धा

13. चोर, भ्रष् और विलासी नेताशाही

14. बोलते आंकड़े चीखती सच्चाइयां


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