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10.9.09

रामचरस को इन्साफ कब मिलेगा

रामचरस लगभग 20 वर्ष पहले रोजी-रोटी की तलाश में लुधियाना आया। उत्तर प्रदेश के सन्त कबीर नगर ज़िले के रहने वाले रामचरस की पृष्ठभूमि किसानी से जुड़ी है। थोड़ी बहुत ज़मीन होने के कारण घर का गुज़ारा मुश्किल से चलता था। इसलिए रामचरस की पढ़ाई नहीं हो सकी। जवान होने पर बाकी भाइयों की शादी हो गयी तो थोड़ी सी पुश्तैनी ज़मीन की खेती से सबका गुज़ारा हो पाना कठिन हो गया। इसलिए 18-19 वर्ष की उम्र में ही रामचरस को घर छोड़कर लुधियाना में काम की तलाश में आना पड़ा। यहीं उसके दो भाई रेहड़ी लगाते थे।

रामचरस ने कई कारख़ानों में काम किया। लेकिन पिछले चार वर्षों से वह जे. पी. हैण्डलूम फैक्टरी में काम कर रहा था जो कि महावीर जैन कालोनी में स्थित है। इसका मालिक परबिन्द मित्तल है जोकि शिव सेना हिन्दोस्तान का प्रदेश अध्‍यक्ष भी है और दो बार चुनाव भी लड़ चुका है। जनकपुरी जीरो नम्बर गली में इसकी कोयले की बड़ी दुकान है और लुधियाना के सेक्टर-32 में आलीशान बंगला है।

रामचरस का परिवार उसके साथ ही रहता है। उसके सात बच्चे हैं। चार लड़के और तीन लड़कियाँ। कठोर मेहनत के बाद मुश्किल से परिवार का पेट भरता था। बड़ा लड़का पाँचवीं तक पढ़ने के बाद रेहड़ी लगाकर मूँगफली बेचता है। उससे छोटा 10 वर्ष का लड़का एक होटल में बर्तन साफ करता है। बाकी छोटे बच्चे घर में अपनी माँ के साथ शाल के बम्बल बनाने का काम करते हैं। उससे इतनी कम कमाई होती है कि सारा दिन खटने के बाद मुश्किल से 20 से 50 रुपये ही कमा पाते हैं।

इस परिवार पर पहाड़ तब टूट पड़ा जब वूलन मिल में काम करते समय एक दिन रामचरस की बाईं बाजू डबलिंग मशीन में आ गयी। वजह थी मशीन की शाफ्ट पर एक बोल्ट की ग़ैरज़रूरी लम्बाई जिसे कटवाने के लिए पहले ही मालिक को कह दिया गया था लेकिन उसने ध्‍यान नहीं दिया। आख़िर यह हादसा हो गया। रामचरस मशीन के बीच मदद के लिए छटपटा रहा था। उसकी बाजू कटकर लटक चुकी थी। ख़ून बह रहा था। बाकी कारीगर मालिक को बुलाने के लिए फोन लगा रहे थे क्योंकि वे समझते थे कि मालिक आ जाये तो वही इलाज करवायेगा। अगर न बुलाया गया तो कहीं मुकर ही न जाये। 10 मिनट बाद उसे मशीन से अलग किया गया। मालिक के आने पर एक घण्टे बाद उसे सिविल अस्पताल पहुँचाया गया। इस समय तक रामचरस बेहोश हो चुका था। जब होश आया तो मालिक परबिन्द मित्तल और तीन अन्य फैक्टरी मालिक वहाँ मौजूद थे। उसकी पत्नी और भाई भी पास था।

डॉक्टरों ने सर्जरी करके बाँह जोड़ दी। जाँघों से मांस निकाल कर बाँह में भरा गया। डॉक्टरों ने मालिकों से कहा कि मरीज बहुत कमज़ोर है इसलिए हालत सुधरने पर ही अस्पताल से ले जाया जाना चाहिए। 9 दिन तक इलाज चला। 10वें दिन मालिक और अन्य तीन लोगों ने रामचरस को उठाया और कहा कि क्या वह उन्हें पहचानता है। रामचरस ने हाँ में उत्तर दिया। मालिक ने उसे सहारा देकर कमरे का चक्कर लगवाया और बेड पर लिटा दिया। रामचरस ने कहा कि उसे चक्कर आ रहे हैं। मालिक और उसके दोस्त चले गये। थोड़ी देर बाद वे एक स्ट्रेचर ले आये और अस्पताल के स्टाफ तथा मरीज के विरोध के बावजूद रामचरस को उठाकर स्ट्रेचर पर डालकर सरां में ले आये। यहाँ ठीक से इलाज होने का भरोसा दिया गया। लेकिन वहाँ देख-भाल करने वाला कोई नहीं था। रामचरस और उसका परिवार असहाय और बेबस था।

दूसरे दिन मालिक कोरा काग़ज़ ले आया। रामचरस और परिवार के हस्ताक्षर लेने चाहे तो उन्होंने मना कर दिया। मालिक गन्दी गालियाँ देता हुआ वापिस चला गया। जाते हुए वह कहता गया 'साले पड़ा-पड़ा मर जायेगा लेकिन दवा के पैसे नहीं दूँगा'। जाता हुआ वह दवा की पर्चियाँ भी ले गया। बाद में दवा खरीदने में भी दिक्कत आयी। कुछ दिनों बाद कार लेकर मालिक आया और पेंशन के फार्म भरने के लिए रामचरस, उसके भाई और पत्नी को कचहरी के किसी वकील के पास ले गया। वहाँ उसने रामचरस के ठीक होने पर फैक्टरी में सुरक्षा गार्ड की नौकरी देने का भरोसा भी दिया। उसका अंगूठा काग़ज़ पर लगवा लिया। उसे वापिस अस्पताल छोड़ने के बाद फिर कभी वापिस नहीं आया। रामचरस के बड़े भाई एक शादी में घर जा चुके थे इसलिए पैसा भी पास नहीं था। पत्नी ने लोगों से माँग-माँग कर कुछ दिन इलाज करवाया। महीने बाद रामचरस ने फैक्टरी फोन किया लेकिन मालिक ने बिना बात सुने ही फोन काट दिया। तंग आकर वह फैक्टरी गया और मालिक से इलाज के लिए पैसों की माँग की और नौकरी देने की बात कही। मालिक ने गालियाँ देते हुए कहा कि 'भाग जा नहीं तो जूते खायेगा। मैंने अपने बच्चे नहीं पालने?'। परेशान रामचरस लौट आया। एक बार फिर फैक्टरी गया था लेकिन मालिक ने पैसे देना तो दूर मिलने तक से इनकार कर दिया। परिवार भुखमरी की हालत में था। रामचरस की पत्नी रोती हुई बार-बार कह रही थी 'मालिक ने हमारे साथ ठीक नहीं किया। सुबह से रात तक की इतनी मेहनत की यह सजा मिली'।

रामचरस ने एक यूनियन के ज़रिये लेबर आफिस में शिकायत दर्ज करवायी। पेशी पर मालिक ने रामचरस से कहा कि तुमने तो समझौते के काग़ज़ पर ख़ुद ही अंगूठा लगाया था तो रामचरस हैरान रह गया। उसने तो पेंशन के काग़ज़ों पर अंगूठा लगाया था। तभी उसे मालिक की धोखाधड़ी समझ में आई। मालिक ने उसे धमकी दी कि अब अगर दुबारा उसे परेशान किया तो मारकर खेतों में फेंक देगा और सारा झंझट ही ख़त्म कर देगा।

फरवरी में रामचरस की बाँह काट दी गयी क्योंकि इलाज सही न होने की वजह से वह सड़ गयी थी। जान बचाने के लिए बाँह काटनी ज़रूरी थी। अब कटी बाँह लेकर रामचरस लेबर कोर्ट के चक्कर काट रहा है कि शायद इन्साफ मिल ही जाये।

यह कहानी सिर्फ रामचरस की नहीं है बल्कि यह करोड़ों मज़दूरों की कहानी है।

राजविन्द

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