मजदूर स्त्रियों के बीच काम का एक नया तरीका सोचा गया - स्त्री मजदूर कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाना
समोइलोवा की पहल पर उन्होंने स्त्री कार्यकर्ताओं के अध्ययन के लिए छोटी अवधि वाले पाठयक्रम आयोजित किये और कारखानों की हमारी अधिकतर संगठनकर्ता इन पाठ्यक्रमों में शामिल हुईं। सेमोयलोवा इन पाठ्यक्रमों का निर्देशन करतीं और उनमें पढ़ाती भी थीं। उसके बाद मजदूर स्त्रियों के बीच काम का एक नया तरीका सोचा गया यानी स्त्री मजदूर कार्यकर्ता सम्मेलन बुलाना। अनुवाद : विजयप्रकाश सिंहअदम्य बोल्शेविक - नताशा
एल. काताशेवा
निश्चित रूप से यह तो नहीं कहा जा सकता कि यह फॉर्म समोइलोवा की निर्विवाद संगठनात्मक प्रतिभा से प्रेरित था या इस क्षेत्र में काम कर रहे उन सभी साथियों के दिमाग़ में स्वत:स्फूर्त ढंग से आया था जो अक्टूबर क्रान्ति की जबरदस्त तैयारियों में लगे हुए थे। चाहे जिस भी वजह से यह हुआ हो, जनसंगठन के इस नये रचनात्मक रूप की तैयारियों का काम जल्दी ही जोर-शोर से शुरू हो गया। सभी फैक्टरियों में चुनाव कराये गये जिससे पिछड़ी चेतना की स्त्री मजदूर कार्यकर्ताओं को जागृत करने और साहसी हरावल के स्तर तक उनका उन्नयन करने में मदद मिली जिन्होंने लाल अक्टूबर की सर्जना की। यह चुनाव सक्रिय काम का, सक्रिय क्रान्तिकारी संघर्ष का आह्नान था।
वे बैठकें, जिनमें स्त्री मजदूरों की प्रतिनिधि अपनी जुझारू सहायक - समोइलोवा और निकोलेयेवा से विचार-विमर्श करतीं, खेरसन स्ट्रीट के ''यूनिटी'' क्लब में शनिवार के दिन होती थीं। मजदूरों की आम कतारों को रिपोर्टें दी जातीं और सम्मेलन में चुनावों के नतीजों की रिपोर्टें भी होतीं। ये रिपोर्टें पेत्रोग्राद के सर्वहारा में व्याप्त आम जज्बे का वास्तविक बैरोमीटर होतीं।
समोइलोवा अच्छी तरह जानती थीं कि बैरोमीटर ''तूफान'' का संकेत दे रहा है। सम्मेलन अक्टूबर के अन्त में बुलाया गया था। यह शुरू हुआ और अपना काम करने लगा, परन्तु इस काम के शुरू होने के साथ ''दस दिन जब दुनिया हिल उठी'' का आगाज भी हो गया। तब सम्मेलन को किसी भावी तिथि तक के लिए स्थगित कर देने का निर्णय लिया गया ताकि वे प्रतिनिधि, जो अपनी-अपनी फैक्टरियों में जनता के संगठनकर्ता थे, इन निर्णायक दिनों में अपनी तैनाती वाली जगहों पर बने रहने और अक्टूबर क्रान्ति के संघर्ष में अपना कर्तव्य निभाने में सक्षम हो सकें। अक्टूबर क्रान्ति के सफलतापूर्वक सम्पन्न हो जाने के बाद नवम्बर में सम्मेलन दोबारा शुरू हुआ। निकोलेयेवा अध्यक्ष और समोइलोवा उसके अध्यक्षीय मण्डल की सदस्य थीं। सम्मेलन में पेत्रोग्राद की सभी सक्रिय महिला कार्यकर्ताएँ थीं - ऐवास संयन्त्र की एमिल्या सोल्निन, बेसली आइलैण्ड पाइप फैक्टरी की विनोग्रेदोवा, वायवोर्ग स्थित ''नित्का'' फैक्टरी की स्पिनर वासिना, एरिक्सन फैक्टरी की मिआश (जो बाद में युदेनिच के मोर्चे पर वीरगति को प्राप्त हुईं) वग़ैरह।
बिलकुल शुरुआत से ही, सम्मेलन ने सभी मौजूद लोगों की उन्नत वर्गीय चेतना को प्रकट किया। सम्मेलन स्वयं को मजदूर वर्ग की सत्ता का अंग महसूस करता था। अध्यक्ष मण्डल पर टिप्पणियों की झड़ी लग गयी। यह पूछा गया कि जिनोविएव और केमेनेव ने पार्टी की कन्द्रीय कमेटी क्यों छोड़ी थी, रिकोव और लुनाचार्स्की ने जनकमीसार की परिषद से इस्तीफा क्यों दिया था? (जिनोविएव और केमेनेव अक्टूबर क्रान्ति शुरू करने के निर्णय से असहमत थे। रिकोव और लुनाचेर्स्की तथाकथित जनवादी पार्टियों के खिलाफ पार्टी द्वारा अख्तियार किये गये सख्त रुख से असहमत थे।) उन्हें सही रास्ते पर लाने के लिए पार्टी ने क्या किया? सम्मेलन ऐसे क्षणों में निष्क्रिय नहीं रहना चाहता था, जब निष्क्रियता मजदूर वर्ग की सत्ता को कमजोर कर सकती थी।
समोइलोवा के भाषण के फौरन बाद निम्न प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया : ''स्त्री मजदूर कार्यकर्ताओं की यह बैठक माँग करती है कि सदस्यगण पार्टी अनुशासन का पालन करें और यह भी कि क्रान्तिकारी सर्वहारा की पार्टी की अखण्डता और एकता को बनाये रखने के लिए - जो इस समय अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा के क्रान्तिकारी आन्दोलन के हरावल का द्योतक है - मौजूदा हालात से निकलने का कोई रास्ता निकाला जाये। सिर्फ सुनिश्चित क्रान्तिकारी वर्गीय लाइन पर डटे रहकर ही रूस का सर्वहारा समाजवाद के लिए अन्तरराष्ट्रीय सर्वहारा के क्रान्तिकारी आन्दोलन को मजबूती प्रदान कर सकता है।''
डाँवाडोल होने वाले साथियों को उन स्त्री मजदूरों की जुझारू भावनाओं से अवगत कराने के लिए एक प्रतिनिधि मण्डल स्मोल्नी भेजा गया, जहाँ पेत्रोग्राद में संघर्ष कर रहे क्रान्तिकारी कार्यकर्ताओं का आम मुख्यालय था। उन स्त्री मजदूरों ने उनके आचरण की कठोर शब्दों में निन्दा की। देर रात यह फैसला लिया गया। समय गँवाने का अवसर नहीं था। प्रतिनिधि मण्डल रातों-रात स्मोल्नी रवाना हो गया।
स्त्री मजदूर कार्यकर्ता इस सम्पूर्ण विश्वास के साथ बैठक से विदा हुईं कि बतौर स्त्री मजदूर प्रतिनिधि वे पार्टी अनुशासन भंग करने वाले कॉमरेडों को प्रभावित कर लेंगी। मजदूर स्त्रियाँ इस बात से आक्रोश में थीं कि ऐसे वक्त जब सारी दुनिया की नजरें रूस पर टिकी हुई थीं, हमारी कतारों में कोई फूट पड़े, जिसके चलते वह खतरा जो हम पर मँडरा रहा है, हमारे दुश्मनों की निगाहों में आ जाये। स्मोल्नी पहुँचकर वे सबसे पहले लेनिन से मिलने गयीं। उन्होंने यह कहकर उन्हें शान्त करा दिया कि ऐसे कॉमरेडों का भ्रम जल्द ही दूर हो जायेगा, जो यह मानते हैं कि तथाकथित जनवादी संगठनों के साथ समझौते की अभी भी कोई गुंजाइश बची है।
''सत्ता पर कब्जा कर लें, कॉमरेड लेनिन, हम मजदूर औरतें बस यही चाहती हैं'', प्रतिनिधि मण्डल ने लेनिन से कहा। इसके जवाब में उनका कहना था : ''मुझे नहीं बल्कि आप मजदूरों को सत्ता अपने हाथ में ले लेनी चाहिए। अपनी-अपनी फैक्टरियों में वापस जाइये और मजदूरों से यही बताइये।''
पेत्रोग्राद की स्त्री मजदूर हर परिस्थिति में साथ रहीं। वे एकजुट होकर लेनिन के पीछे चल रहे पेत्रोग्राद के सर्वहारा वर्ग के साथ, कन्धे से कन्धा मिलाकर चलीं। सही नेतृत्व और कम्युनिस्ट पार्टी के महान कार्यों की वजह से (समोइलोवा इस काम में पहली कतार के लोगों में से एक थीं) मजदूर औरतें पेत्रोग्राद के उन तमाम क्रान्तिकारी मजदूरों के कन्धे से कन्धा मिलाकर लड़ीं, जिनके हाथों में उस वक्त अक्टूबर क्रान्ति का भविष्य था।
स्त्री श्रमिकों और माँओं व नवजात शिशुओं की सुरक्षा के सवाल पर सम्मेलन ने कई प्रस्ताव पारित किये, जो आगे चलकर सोवियत सरकार द्वारा इस क्षेत्र में बनाये गये कानूनों का आधार बने। उसने कॉमरेड निकोलेयेवा के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मण्डल किसान प्रतिनिधियों की सोवियतों के अधिवेशन में भेजने का निर्णय किया, जिसका सत्र उस समय चल रहा था। यह प्रतिनिधि मण्डल जनकमिसार परिषद को, जिसे हाल ही में बोल्शेविकों ने मजदूर वर्ग की सरकार के एक अंग के रूप में संगठित किया था, समर्थन देने के पेत्रोग्राद की स्त्री मजदूरों के फैसले की सूचना देने के लिए भेजा गया था।
समोइलोवा ने अक्टूबर क्रान्ति में अपनी तमाम क्रान्तिकारी सक्रियता को, क्रान्ति की जीत में सहभागी बनी, मजदूर स्त्रियों के इस सशक्त सर्जनात्मक उभार के साथ एकरूप कर दिया। आगे चलकर उन्होंने पार्टी के और प्रेस के क्षेत्र में सोवियतों के काम में सक्रिय भूमिका निभायी, पर साथ ही उन्होंने एक सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में अपनी रचनात्मक प्रतिभा का भी परिचय दिया और स्त्री मजदूरों तथा बाद में किसान स्त्रियों को कम्युनिस्ट पार्टी की कतारों तक, सोवियत सत्ता के लिए संघर्षरत योद्धाओं की कतारों तक, सोवियत सत्ता के निर्माताओं की कतारों तक लाने में अपनी मेहनत लगा दी। उन्होंने जनता के बीच आन्दोलन, संगठन और प्रचार के नये रूप लागू किये। ये सारे नये रूप सम्भवत: उनके सुझाये हुए नहीं थे, लेकिन वे हमेशा उन पर विस्तार से काम करतीं और लोगों के बीच उन्हें लागू करतीं। नतीजा हमेशा एक ही रहा, जनता संघर्ष और रचनात्मक क्रान्तिकारी काम के लिए जागृत, संगठित और उद्वेलित हो जाती।
1 कमेंट:
सही है।
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