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1.9.11

मारुति सुज़ुकी, मानेसर का मज़दूर आंदोलन संघर्ष को व्‍यापक और जुझारू बनाना होगा

गुड़गांव, 1 सितम्‍बर, सुबह 9 बजे। मारुति सुज़ुकी, मानेसर के मज़दूरों पर मैनेजमेंट द्वारा थोपे गए आंदोलन का आज चौथा दिन है। 29 अगस्‍त की सुबह से की गई जबरन तालाबन्‍दी के बाद से 49 मज़दूर बिना कोई कारण बताये बर्खास्‍त या निलंबित किये जा चुके हैं। मैनेजमेंट ने करीब 2000 ठेका मज़दूरों और अप्रेंटि‍सों को अलग करने के लि‍ए 1 सि‍तम्‍बर तक वि‍शेष छुट्टी घोषि‍त कर दी थी।  आज सुबह लगाई गई नई नोटि‍स में इसे 5 सि‍तम्‍बर तक बढ़ा दि‍या गया है। ठेका मज़दूर और अप्रेंटि‍स आसपास के जि‍न गांवों में कि‍राये पर रहते हैं उनके सरपंचों के ज़रि‍ए मज़दूरों पर दबाव डाला जा रहा है कि‍ वे आन्‍दोलन से दूर रहें। कारखाना गेट की ओर आ रहे मज़दूरों को रास्‍ते में रोककर गांवों के दबंगों द्वारा डराने-धमकाने की कई घटनाएं सामने आने के बाद कल मज़दूरों ने यह नि‍र्णय लि‍या कि‍ ठेका मज़दूर और अप्रेंटि‍स कंपनी की वर्दी में नहीं आयेंगे। मैनेजमेंट मज़दूरों में भ्रम पैदा करने और उनका मनोबल तोड़ने के लिए तमाम तरह के घटिया हथकंडे अपनाने में लगा हुआ है। मीडिया में कभी यह प्रचार किया जा रहा है कि प्‍लांट में प्रोडक्‍शन शुरू हो गया है तो कभी यह कहा जा रहा है कि प्रोडक्‍शन को गुड़गाँव प्‍लांट में शिफ्ट करने पर विचार किया जा रहा है। हालांकि मज़दूरों पर इन हथकंडों का कोई असर नहीं है और वे लड़ने के लिए तैयार हैं।

1 सितम्‍बर को 4 बजे से मारुति सुज़ुकी कारख़ाने के गेट नं. 2 पर सभा होगी जिसमें गुड़गाँव और आसपास की कई कंपनियों की यूनियनें शामिल होंगी। कहा जा रहा है कि आगे के कार्यक्रम की घोषणा उसी सभा में की जायेगी।

पिछले तीन दिनों के अनुभव से ऐसा लगता है कि पिछले जून की हड़ताल से ज़रूरी सबक नहीं सीखे गये हैं। कुछ बिन्‍दु जिन पर मज़दूरों और इस आन्‍दोलन के समर्थकों को सोचने की ज़रूरत है:

-     यह साफ़ है कि मैनेजमेंट ने पूरी योजना और तैयारी के साथ यह हमला किया है। लेकिन मज़दूरों की ओर से इसकी जवाबी कार्रवाई में योजनाबद्धता, स्‍पष्‍ट दिशा, तेज़ी और अपनी ताक़त का उचित इस्‍तेमाल करने की क्षमता की कमी साफ़ दिखाई देती है।
-       - पहले तीन दिनों में कोई प्रभावी कार्रवाई की ही नहीं जा सकी। गेट पर सुबह-शाम एक-डेढ़ घंटे की सभा के अलावा आन्‍दोलन को चलाने का कोई कार्यक्रम नहीं था। सैकड़ों मज़दूर सारे दिन छोटी-छोटी टोलियों में गेट के आसपास के इलाके में यहां-वहां बैठे रहते थे।
-       - जून की हड़ताल की ही तरह इस बार भी व्‍यापक मज़दूर आबादी को आन्‍दोलन से जोड़ने का कोई ठोस प्रयास नहीं किया गया है। एटक, सीटू, एचएमएस जैसी बड़ी यूनियनों के नेताओं ने 40 यूनियनों के समर्थन की घोषणा कर दी है और आज शाम की सभा में इन यूनियनों से जुड़े कुछ मज़दूर शामिल भी होंगे। लेकिन मारुति के आन्‍दोलन में उठे मुद्दे गुड़गांव के सभी मज़दूरों के साझा मुद्दे हैं -- लगभग हर कारख़ाने में अमानवीय वर्कलोड, जबरन ओवरटाइम, वेतन से कटौती, ठेकेदारी, यूनियन अधिकारों का हनन और लगभग गुलामी जैसे माहौल में काम कराने से मज़दूर त्रस्‍त हैं और समय-समय पर इन मांगों को लेकर लड़ते रहे हैं। बुनियादी श्रम क़ानूनों का भी पालन लगभग कहीं नहीं होता। इन मांगों पर अगर मारुति के मज़दूरों की ओर से गुडगांव, मानेसर, धारूहेड़ा, बवाल बेल्‍ट के लाखों मज़दूरों का आह्वान किया जाता और केन्‍द्रीय यूनियनें ईमानदारी से तथा अपनी पूरी ताक़त से उसका साथ देतीं तो एक व्‍यापक जन-गोलबन्‍दी की जा सकती थी। इसका स्‍वरूप कुछ भी हो सकता था - जैसे, इसे एक ज़बर्दस्‍त मज़दूर सत्‍याग्रह का रूप दिया जा सकता था।
सभी तस्‍वीरें 'बिगुल मज़दूर दस्‍ता' के साथियों ने खींची हैं

-       पिछली बार की ही तरह इस बार भी ऐसा भ्रम पैदा हो रहा है जैसे पूरे गुड़गांव क्षेत्र के मज़दूर आन्‍दोलन के समर्थन में सक्रिय हैं। बेशक, मज़दूर आन्‍दोलन का समर्थन करते हैं, लेकिन इस मौन समर्थन को संघर्ष की एक प्रबल शक्ति में तब्‍दील करने के लिए सक्रिय प्रयासों और योजना की ज़रूरत होती है। यूनियनों की ओर से किये गये एकाध कार्यक्रमों और अखबारी बयानों मात्र से यह समर्थन कोई ताक़त नहीं बन सकता। पिछली बार का उदाहरण सामने है जब 5 जून की गेट मीटिंग के बाद तमाम बड़ी यूनियनें महज़ ज़बानी जमाखर्च करती रहीं और एक भी प्रभावी कार्रवाई नहीं कर सकीं। कई दिन बाद महज़ दो घंटे के टूलडाउन का नोटिस दिया गया लेकिन ''मुख्‍यमंत्री के आश्‍वासन पर'' उसे दो बार टाला गया और फिर इतने आगे की तारीख तय की गई कि उसके पहले ही समझौता हो गया।

-      इतने लंबे चले आन्दोलन के दौरान आम मज़दूर आबादी को आन्‍दोलन से जोड़ने के लिए एक भी पर्चा या पोस्‍टर तक नहीं निकाला गया। इस बार भी ऐसा ही हो रहा है। पूरे इलाके की आम मज़दूर आबादी आन्‍दोलन के बारे में उतना ही जानती है जितना अख़बारों या टीवी द्वारा बताया जा रहा है। भारी संसाधनों से लैस तमाम केन्‍द्रीय यूनियनें अगर एक पर्चा या पोस्‍टर तक नहीं निकाल सकतीं तो यह सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि वे आन्‍दोलन को व्‍यापक बनाना ही नहीं चाहतीं।

-      मारुति का नेतृत्‍व भी आम मज़दूरों को निर्णयों में भागीदार बनाने और उनके जोश और सक्रियता का कोई इस्‍तेमाल कर पाने में अब तक विफल रहा है। हज़ारों युवा मज़दूर बिना किसी योजना और बिना किसी काम के हैं जबकि उन्‍हें लेकर जन गोलबन्‍दी और प्रचार के विभिन्‍न रूपों का इस्‍तेमाल किया जा सकता था।

-    आन्‍दोलन के पक्ष में दबाव बनाने के लिए देश के विभिन्‍न मज़दूर संगठनों, यूनियनों और नागरिक समाज से सम्‍पर्क करने का कोई भी प्रयास नहीं किया गया। देश और दुनिया की तमाम ऑटोमोबाइल यूनियनों तथा खासकर सुज़ुकी मोटो कॉर्प के विभिन्‍न प्‍लांट की यूनियनों से भी संपर्क किया जाता तो मैनेजमेंट और सरकार पर दबाव बनाया जा सकता था। यूनियन नेतृत्‍व को इस बारे में कई बार सुझाव देने पर भी वह इसके महत्‍व को समझने में अब तक विफल रहा है।

- दरअसल, मैनेजमेंट और सरकार की मंशा और नीयत को लेकर मज़दूरों तथा नेतृत्‍व में काफी भ्रम है। वे इस बात को नहीं समझ पा रहे कि यह सब यूनियन गतिविधियों को सुनियोजित ढंग से ख़त्‍म करने की कोशिश का हिस्‍सा है जिसमें राज्‍य सरकार पूरी तरह से कंपनी के साथ है। भूमंडलीकरण के दौर की नीतियों के तहत पूरे देश और दुनियाभर में यूनियन अधिकारों पर बढ़ते हमलों और मंदी तथा बढ़ती होड़ के कारण कंपनियों पर लागत कम करने के दबाव के परिप्रेक्ष्‍य में भी वे इन कार्रवाइयों को नहीं देख पा रहे। उन्‍हें ऐसा लगता है कि मैनेजमेंट में बैठे कुछ व्‍यक्तियों की प्रतिशोधी कार्रवाइयों और प्रशासन द्वारा कंपनी से पैसे खा लेने के चलते ये कार्रवाइयां की जा रही हैं। इसके लिए सबसे अधिक ज़ि‍म्‍मेदार वे कथित ''वाम'' यूनियनें हैं जो मज़दूरों के बीच राजनीतिक प्रचार के काम को तो बहुत पहले ही तिलांजलि दे चुकी थीं और अब तो कोई जुझारू आर्थिक संघर्ष करने के काबिल भी नहीं रह गई हैं। चन्‍द एक रस्‍मी कार्रवाइयों से आगे कुछ करने की उनकी औकात भी नहीं रह गई है और अब नीयत भी नहीं है। उनका सबसे बड़ा काम है, कुछ गरम-गरम जुमलेबाज़ि‍यों के बाद मज़दूरों के गुस्‍से पर पानी के छींटे डालना और किसी भी आन्‍दोलन को जुझारू और व्‍यापक होने से रोककर किसी-न-किसी समझौते में ख़त्‍म करा देना। एटक के गुड़गांव इलाके के प्रभारी के शब्‍दों में ऐसे समझौते ''विन-विन'' होते हैं यानी मज़दूरों और मैनेजमेंट दोनों की जीत होती है। लेकिन जैसा मारुति के पिछले समझौते ने साफ़ कर दिया, वास्‍तव में जीत मैनेजमेंट की ही होती है।

-- मारुति सुज़ुकी के मज़दूर आन्‍दोलन के समर्थन में नागरिक मोर्चा
संपर्क: सत्‍यम (9910462009), रूपेश (9213639072),  सौरभ (9811841341)

बिगुल मज़दूर दस्‍ता की ओर से आन्‍दोलन के समर्थन में जारी पर्चा (देखें संलग्‍न पीडीएफ़ फ़ाइल) Pamphlet Distributed by Bigul Mazdoor Dasta_31.8.11

कल शाम मारुति गेट पर एकत्र मज़दूरों के बीच इसे बाँटा गया और आज से मानेसर तथा गुड़गांव के विभिन्‍न कारखानों और मज़दूर इलाकों में इसका वितरण किया जायेगा।

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बिगुल के बारे में

बिगुल पुस्तिकाएं
1. कम्युनिस्ट पार्टी का संगठन और उसका ढाँचा -- लेनिन

2. मकड़ा और मक्खी -- विल्हेल्म लीब्कनेख़्त

3. ट्रेडयूनियन काम के जनवादी तरीके -- सेर्गेई रोस्तोवस्की

4. मई दिवस का इतिहास -- अलेक्ज़ैण्डर ट्रैक्टनबर्ग

5. पेरिस कम्यून की अमर कहानी

6. बुझी नहीं है अक्टूबर क्रान्ति की मशाल

7. जंगलनामा : एक राजनीतिक समीक्षा -- डॉ. दर्शन खेड़ी

8. लाभकारी मूल्य, लागत मूल्य, मध्यम किसान और छोटे पैमाने के माल उत्पादन के बारे में मार्क्सवादी दृष्टिकोण : एक बहस

9. संशोधनवाद के बारे में

10. शिकागो के शहीद मज़दूर नेताओं की कहानी -- हावर्ड फास्ट

11. मज़दूर आन्दोलन में नयी शुरुआत के लिए

12. मज़दूर नायक, क्रान्तिकारी योद्धा

13. चोर, भ्रष् और विलासी नेताशाही

14. बोलते आंकड़े चीखती सच्चाइयां


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