21.12.09
19.12.09
बादाम मज़दूरों के नेता रिहा
17 दिसम्बर को पुलिस ने बिना कोई चिकित्सीय सहायता प्रदान किये मज़दूर नेताओं को घायल हालत में ही गोकलपुरी थाने में लाॅक-अप में बन्द कर दिया। ज्ञात हो, कि यह मामला करावलनगर थाने के अन्तर्गत आता है लेकिन मज़दूरों से भयाक्रान्त पुलिस प्रशासन ने इन मज़दूर नेताओं को करावलनगर या खजूरी थाने में नहीं बन्द किया। जाहिर है कि पुलिस पूरी तरह मालिकों की ओर से कार्रवाई कर रही है। मालिकों को किराए के गुण्डे रखने की कोई ज़रूरत नहीं थी।
इस बीच करावलनगर इलाके में चौथे दिन भी हज़ारों की संख्या में मज़दूर हड़ताल स्थल पर मौजूद रहे। हड़ताल के जारी रहने से करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग ठप्प पड़ गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि करावलनगर पुलिस थाने के पक्षपातपूर्ण व्यवहार और मज़दूरों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ न कराए जाने के कारण यूनियन सीधे पुलिस उपायुक्त, उत्तर-पूर्वी दिल्ली के पास शिकायत दर्ज़ कराएगी और अगर तब भी कार्रवाई नहीं होती है तो फिर हमारे पास अदालत जाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचेगा। ग़ौरतलब है कि बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में पिछले एक वर्ष से बादाम मज़दूर अपने कानूनी हक़ों की माँग कर रहे हैं और साथ ही बादाम संसाधन उद्योग को सरकार द्वारा औपचारिक दर्ज़ा दिये जाने की माँग कर रहे हैं। फिलहाल, सभी बादाम गोदाम मालिक गैर-कानूनी ढंग से बिना किसी सरकारी लाईसेंस या मान्यता के ठेके पर मज़दूरों से अपने गोदामों में काम करवा रहे हैं। इसमें बड़े पैमाने पर महिला मज़दूर हैं लेकिन उनके लिए शौचालय या शिशु घर जैसी कोई सुविधा नहीं है। बादाम मज़दूरों को तेज़ाब में डाल कर सुखाए गए बादामों को हाथों, पैरों और दांतों से तोड़ना पड़ता है। उनके लिए सुरक्षा के कोई इंतज़ाम नहीं हैं और उन्हें टी.बी., खांसी, आदि जैसे रोग आम तौर पर होते रहते हैं। महिला मज़दूरों के बच्चे भी काफ़ी कम उम्र में ही जानलेवा बीमारियों के शिकार हो जाते हैं। बादाम मज़दूर यूनियन इन मज़दूरों के लिए बेहतर कार्य स्थितियों की भी माँग कर रही है। लेकिन मालिक और ठेकेदार पुलिस प्रशासन और स्थानीय नेताओं और गुण्डों के बल पर अपनी मनमानी और गुण्डागर्दी चला रहे है। बादाम मज़दूर यूनियन के योगेश ने कहा कि लेकिन अब वे दिन लद गये हैं जब मज़दूर गुलामों की तरह चुपचाप खटते रहते थे और कोई आवाज़ नहीं उठाते थे। वे एक यूनियन के रूप में संगठित हो चुके हैं और अपने कानूनी हक़ों को जीतने से नीचे वे किसी जीत पर नहीं रुकेंगे।
बादाम मज़दूर यूनियन के आज रिहा हुए संयोजक आशीष कुमार सिंह ने कहा कि बादाम के ठेकेदार बुरी तरह से डर गये हैं। पुलिस को अपने साथ मिलाकर और गुण्डों के बल पर निहत्थे मज़दूरों पर कायराना हमला कराकर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे झुण्ड में निहत्थे महिलाओं और बच्चों पर ही अपने पौरुष का प्रदर्शन कर सकते हैं। लेकिन महिला मज़दूरों ने उनके हमले का मुँहतोड़ जवाब देकर साबित कर दिया है कि वे ऐसे किसी भी नापाक हमले का जवाब उसी भाषा में दे सकते हैं। अब वे दिन गये जब मज़दूर चुपचाप मालिकों की मार और गाली-गलौच को बर्दाश्त करते थे। मज़दूर अपनी एकता के बल पर बिकी हुई पुलिस और मालिकों के गुण्डों, दोनों से टकराने की ताक़त रखते हैं। इस कायराना हमले ने मज़दूरों के हौसले को तोड़ने की बजाय उन्हें और बुलन्द कर दिया है। यह अकारण नहीं है कि करीब 15 फीसदी मज़दूर जो भय के कारण हड़ताल में शामिल नहीं थे, मज़दूर नेताओं की गिरफ्तारी के बाद वे भी हड़ताल में शामिल हो चुके हैं और उन्होंने मालिकों की मुनाफे की मशीनरी का चक्का पूरी तरह जाम कर दिया है।
बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मज़दूरों की जुझारू हड़ताल तीसरे दिन भी जारी
प्रेस विज्ञप्ति
वैश्विक बादाम व्यवसाय के मुनाफे की चक्की में पिसते दिल्ली के बादाम मज़दूरों का संघर्ष
पुलिस प्रशासन मुस्तैदी से मालिकों की सेवा में
बादाम मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में मज़दूरों की जुझारू हड़ताल तीसरे दिन भी जारी
18 दिसम्बर, दिल्ली। ज्ञात हो कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली के करावलनगर क्षेत्र में करीब 30 हज़ार मज़दूर परिवार बादाम तोड़ने का काम करते हैं। यह पूरा व्यवसाय देशव्यापी नहीं, बल्कि विश्वव्यापी है। बेहद आदिम परिस्थितियों में गुलामों की तरह खटने वाले ये मज़दूर जिन कम्पनियों के बादाम का संसाधन करते हैं, वे कम्पनियाँ भारत की नहीं बल्कि अमेरिका, आस्ट्रेलिया और कनाडा की हैं। ये भारत के सस्ते श्रम के दोहन के लिए अपने ड्राई फ्रूट्स की प्रोसेसिंग यहाँ करवाते हैं। दिल्ली की खारी बावली पूरे एशिया की सबसे बड़ी ड्राई फ्रूट मण्डी है। खारी बावली के बड़े मालिक सीधे विदेशों से बादाम मँगवाते हैं और उन्हें संसाधित करके वापस भेज देते हैं। ये मालिक संसाधन का काम छुटभैये ठेकेदारों से करवाते हैं जिन्होंने दिल्ली के करावलनगर, सोनिया विहार, बुराड़ी-संतनगर और नरेला में अपने गोदाम खोल रखे हैं। इन गोदामों कोई भी सरकारी मान्यता या लाईसेंस नहीं प्राप्त है और ये पूरी तरह से गैर-कानूनी तरह से काम कर रहे हैं। एक-एक गोदाम में 20 से लेकर 40 तक मज़दूर काम करते हैं। इनके काम के घंटे अधिक मांग के सीज़न में कई बार 16 घण्टे तक होते हैं। इन्हें बादाम की एक बोरी तोड़ने पर मात्र 50 रुपये दिये जाते हैं। इनमें महिला मज़दूर बहुसंख्या में हैं। उनके साथ मारपीट, गाली-गलौज और उनका उत्पीड़न आम घटनाएँ हैं।
इन मज़दूरों ने पिछले तीन दिनों से अपनी यूनियन ‘बादाम मज़दूर यूनियन’ के नेतृत्व में पीस रेट को 50 रुपये से बढ़ाकर 80 रुपये करने, डबल रेट से ओवरटाइम देने, जॉब कार्ड व पहचान पत्र देने, आदि की माँगों को लेकर हड़ताल कर रखी है। इस हड़ताल के दूसरे दिन मालिकों ने अपने गुण्डों के जरिये महिला मज़दूरों, उनके बच्चों और तीन यूनियन कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमला किया। इस हमले में दो यूनियन कार्यकर्ता गम्भीर रूप से जख्मी हो गये, जबकि कई महिला मज़दूरों और उनके बच्चों को चोटें आईं। इस दौरान मालिक और उनके गुण्डे दलित मज़दूरों को लगातार जातिसूचक टिप्पणियों से अपमानित करते रहे और ख़ास तौर पर दलित मज़दूरों और यूनियन कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया। बचाव के लिए महिला मज़दूरों ने गुण्डों पर पथराव शुरू किया जिसमें मालिकों के चार गुर्गे घायल हुए। इसके बाद पुलिस आई और उसने घायल गुण्डों को तो मालिकों की शह पर तुरन्त अपनी गाड़ी में अस्पताल पहुँचाया और उनकी प्राथमिक चिकित्सा करवाई, लेकिन यूनियन के घायल नेताओं और मज़दूरों को बिना किसी चिकित्सीय देखभाल के सीधे गिरफ्तार करके थाने ले गई। 12 बजे से साढ़े चार बजे तक पुलिस उनका बयान दर्ज़ करने का बहाना कर देर करती रही। इस बीच कई मज़दूरों और यूनियन कार्यकर्ताओं का खून बहता रहा और उन्हें बीच में अन्य यूनियन कार्यकर्ताओं ने बाहर से लाकर दवाइयां और खाने का सामान दिया। इस अमानवीय व्यवहार के बाद पुलिस उन्हें लेकर थाने से निकली और उसने मज़दूरों को बताया कि दोनों पक्षों के लोगों के खि़लाफ़ प्राथमिकी दर्ज़ कर ली गई है और अब घायल मज़दूरों और यूनियन कार्यकर्ताओं को मेडिकल चेक अप के लिए गुरू तेग बहादुर अस्पताल ले जाया जा रहा है जिसके बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा। लेकिन पुलिस उन्हें बिना किसी चिकित्सा के सीधे गोकलपुरी थाने लेकर गई और वहाँ उन्हें बन्द कर दिया गया। आज उनकी सीलमपुर जिला मजिस्ट्रेट के सामने पेशी हुई लेकिन तकनीकी कारणों से उनकी ज़मानत नहीं हो पाई और उन्हें एक दिन तक के लिए न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। इस बीच मज़दूरों ने अपनी हड़ताल को और मज़बूत बनाते हुए चेतावनी जुलूस निकाला और संघर्ष को जारी रखने की शपथ खाई। इस समय करावलनगर का पूरा बादाम संसाधन उद्योग मज़दूरों की हड़ताल के कारण ठप्प पड़ा है। 18 दिसम्बर की शाम तक करावलनगर में हज़ारों मज़दूर हड़ताल स्थल के इर्द-गिर्द एकजुट हैं। बादाम मज़दूर यूनियन के नवीन ने कहा कि हमारे साथियों की गिरफ्तारी ने हमारे संघर्ष को और मज़बूत कर दिया है। अब इस संघर्ष को किसी भी सूरत में जीत तक पहुँचाना सभी मज़दूरों का पहला कर्तव्य है।
जब यूनियन के कार्यकर्ता और ‘बिगुल’ अखबार के पत्रकारों ने पुलिस प्रशासन से इस बात पर सफाई माँगी कि गुण्डों और मालिकों के खि़लाफ़ कोई प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज़ की गई और पुलिस ने पूरी तरह मालिकों की शह पर यूनियन और उसके मज़दूरों के खि़लाफ़ क्यों कार्रवाई की तो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों तक का कहना यह था कि यूनियन वालों को सबक सिखाना ज़रूरी है और हड़ताली मज़दूरों के होश ठिकाने ला दिये जाएँगे। साफ़ है कि पुलिस पूरी तरह मालिकों की शह पर काम कर रही है और मज़दूर आन्दोलन को दबाने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रही है। इस बीच करावलनगर के कांग्रेस, आरएसएस और भाजपा आदि के नेता पूरी तरह मालिकों के पक्ष में जाकर खड़े हो गये हैं। ग़ौरतलब है कि कई बादाम गोदाम मालिक स्वयं इन पार्टियों के स्थानीय नेता हैं।यह पहली बार नहीं है जब पुलिस ने मालिकों के पक्ष से कार्रवाई की हो। एक वर्ष पहले, 2008 के अगस्त में भी मज़दूरों ने अपनी कानूनी माँगों को लेकर एक आन्दोलन किया था। उस दौरान भी मालिकों ने मज़दूरों पर हमला किया था और बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजक और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता आशीष कुमार को मनमाने तरीके से गिरफ्तार कर लिया था। लेकिन उस समय कोई केस दर्ज़ होने के पहले ही मज़दूरों ने हज़ारों की संख्या में थाने का घेराव कर उन्हें छुड़ा लिया था। लेकिन इस बार पुलिस ने झूठ बोलकर मज़दूरों को गुमराह किया और बताया कि दोनों पक्षों की ओर से प्राथमिकी दर्ज़ कर ली है और मज़दूरों को धोखा देकर उन्हें बिना किसी सुनवाई के करावलनगर से दूर गोकलपुरी के थाने में लॉक अप में बन्द कर दिया। कई मज़दूरों का कहना था कि थाने के अन्दर मालिकों ने पुलिस से लाखों रुपये का लेन-देन किया है। जाहिर है कि मालिकों की सेवा करने की फीस पुलिस प्रशासन ने वसूली ही होगी! यूनियन के शीर्ष नेतृत्व को एक दिन तक लॉक अप में बन्द कर हड़ताल को तोड़ने की उम्मीद में मालिकों ने पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर यह साज़िश की है। लेकिन उनकी उम्मीद के पलट मज़दूरों की हड़ताल और मज़बूत हो गई है और मज़दूरों के बीच से ही नये नेतृत्व ने गिरफ्तार मज़दूर नेताओं की गिरफ्तारी तक आन्दोलन की कमान संभाल ली है। हज़ारों मज़दूर इस समय करावलनगर की सड़कों पर हैं।ग़ौरतलब है कि ये मज़दूर पिछले एक वर्ष से अपने कानूनी हक़ों को पूरा करवाने की माँग कर रहे हैं। इनमें न्यूनतम मज़दूरी कानून, ट्रेड यूनियन अधिनियम, ठेका मज़दूर कानून आदि जैसे कानूनों के तहत मज़दूरों को प्रदत्त अधिकारों की माँगें शामिल हैं। इसके लिए बादाम मज़दूर यूनियन के सदस्य पिछले एक वर्ष में कई बार उत्तर-पूर्वी दिल्ली के उप श्रमायुक्त कार्यालय के भी दर्ज़नों बार चक्कर लगा चुके हैं। लेकिन वहाँ जाकर भी हर बार यही पता चला कि मालिकों के हाथ पूरा प्रशासन बिका हुआ है और लेन-देन का एक व्यापक नेटवर्क काम कर रहा है जो मज़दूरों को गुलामों की तरह खटाते रहने और सभी कानूनों का अन्धेरगर्दी के साथ उल्लंघन करने पर आमादा रहता है। इस आन्दोलन की ख़ास बात यह है कि इन हज़ारों मज़दूरों में महिला मज़दूरों की बहुसंख्या है और वे पूरी प्रतिबद्धता के साथ इस संघर्ष में डटी हुई हैं। मज़दूर इस बात पर अडिग हैं कि चाहे पूरा पुलिस प्रशासन मालिकों के हाथ बिका रहे, वे झुकेंगे नहीं और इस संघर्ष को जारी रखेंगे।
हम सभी मीडियाकर्मियों से अपील करते हैं कि वे स्वयं इस पूरे मामले की जाँच करें और इस तथ्यपत्रक में दिये गये तथ्यों की पड़ताल करें और मज़दूरों के इस संघर्ष को सारे समाज के सामने लाएँ। साथ ही, किस प्रकार पूरा पुलिस प्रशासन आज मज़दूरों के विरुद्ध पूँजीपतियों के साथ खड़ा होता है यह भी पूरे देश के सामने लाने की आज सख़्त ज़रूरत है। हम सभी संवेदनशील मीडियाकर्मियों से अपील करते हैं कि वे मज़दूरों के इस न्यायपूर्ण संघर्ष के साथ अपनी पक्षधरता जाहिर करें और उचित जांच-पड़ताल के बाद इस पूरे मामले को अपने पत्र में या चैनल में स्थान दें।
17.12.09
बादाम तोड़ने वाले 25-25 हज़ार मज़दूर हड़ताल पर
नई दिल्ली के करावल नगर इलाके में बादाम तोड़ने वाले मज़दूरों ने हड़ताल की घोषणा कर दी है। 'बादाम मज़दूर यूनियन' के बैनर तले इन मज़दूरों के हड़ताल पर जाने से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया सहित कई यूरोपीय देशों में बादाम निर्यात प्रभावित हो गया है। बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजक आशीष ने कहा कि सरकार ने 1970 में ठेका मज़दूरी क़ानून के तहत जो बुनियादी अधिकार दिए थे उनका यहां कोई पालन नहीं हो रहा है। श्रम क़ानूनों के उल्लंघन से यहां के 20 हज़ार से ज़्यादा मज़दूर त्रस्त हैं। यूनियन के सदस्य राहुल ने कहा कि बेहिसाब महंगाई में न्यूनतम मज़दूरी भी न मिलने से मज़दूरों के परिवारों के सामने दाल-रोटी की चिंता बढ़ गयी है। लिहाज़ा मज़दूरों ने काम बंद कर दिया है।
बादाम मज़दूर यूनियन के संयोजकों पर हमला, पुलिस ने गुण्डो की जगह संयोजकों को ही गिरफ्तार किया
करावल नगर के बादाम मज़दूर कल से मज़दूरी बढ़ाने की मांग को लेकर हड़तालत पर हैं। आज सुबह क़रीब 1500 महिला-पुरुष मज़दूर अपनी मांग के समर्थन में यूनियन के संयोजक आशीष तथा अन्य लोगों की अगुवाई में इलाकाई पैमाने का जुलूस निकाल रहे थे। ये मज़दूर प्रति बोरा 40 रुपये की बेहद मामूली दरों पर ठेकेदारों के लिए काम करते हैं। आन्दोलन के बढ़ते जनसमर्थन से बौखलाए बादाम ठेकेदारों ने सुबह क़रीब 11:30 बजे अपने गुण्डो से जुलूस पर हमला करा दिया। हमले में आशीष, कुणाल और प्रेमप्रकाश बुरी तरह घायल हो गये। ठेकेदारों की बर्बरता से बौखलाए मज़दूरों ने इस पर ज़बर्दस्त प्रतिरोध किया।