जनवादी अधिकार कर्मियों, कवियों-लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों के नाम एक ज़रूरी पत्र
गोरखपुर मजदूर आन्दोलन समर्थक नागरिक मोर्चा
जनवादी अधिकार कर्मियों, कवियों-लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों के नाम
एक ज़रूरी पत्र
त्वरित सहयोगी कार्रवाई के लिए आपात अपील - 21 अक्टूबर 2009, गोरखपुर
प्रिय साथी,
गोरखपुर में आन्दोलनरत मजदूरों और उनके नेताओं पर, फैक्टरी मालिकों के इशारे पर प्रशासन द्वारा आतंक और अत्याचार का सिलसिला चरम पर पहुंचने के साथ हमने 'करो या मरो' के संकल्प के साथ सड़क पर उतरने का निर्णय लिया है और आज से नागरिक सत्याग्रह की शुरुआत की है। इस न्याययुद्ध में हमें आपका साथ चाहिए। इसलिए मैं यह पत्र आपको लिख रही हूं। हम हक, इंसाफ और जनवादी अधिकारों के इस संघर्ष में लाठी-गोली-जेल-मौत के लिए तैयार होकर उतरे हैं। हम आपसे इस संघर्ष में सहयोग की अपील करते हैं, भागीदारी की अपील करते हैं, क्योंकि यह आपकी भी लड़ाई है।
गोरखपुर में फैक्टरी मालिकों की शह पर मजदूरों पर कायम पुलिसिया आतंक राज के खिलाफ शुरू हो चुके निर्णायक संघर्ष में हम आपसे भागीदारी और सहयोग की अपील करते हैं!
हम दमन, फर्जी मुकदमे कायम करके तीन नेताओं की गिरफ्तारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा उनकी बरबर पिटाई और नौ मजदूरों पर फर्जी मुकदमों के विरोध में नागरिक सत्याग्रह में भागीदारी की अपील करते हैं!
मजदूर नेताओं पर ''नक्सली उग्रवादी'' होने के झूठे आरोप और मालिक-प्रशासन-नेताशाही गंठजोड़ के विरुद्ध हम आरपार की लड़ाई लड़ेंगे!
हमें इस न्याययुद्ध में आपका साथ चाहिए!
- कात्यायनी
आपको शायद पता हो कि गोरखपुर की धागा एवं कपड़ा मिलों तथा प्लास्टिक बोरी के दो कारखानों के मजदूर श्रम कानूनों को लागू करवाने की मांग को लेकर विगत छ: माह से लड़ते आ रहे हैं। गोरखपुर की फैक्टरियों में श्रम कानून का कोई भी प्रावधान लागू नहीं होता और मजदूरों की हालत बंधुआ गुलामों जैसी रही है। ट्रेड यूनियन बनाने की कोशिशें गुण्डागर्दी के बल पर दबा दी जाती रही हैं। पहली बार यह गतिरोध तीन धागा एवं कपड़ा मिलों में टूटा, जब मालिक-प्रशासन-नेताशाही गंठजोड़ के खिलाफ खड़े होकर मजदूरों ने आन्दोलन शुरू किया। उनकी कुछ मांगें मान ली गयीं (जिनसे अब फिर मालिक मुकर रहे हैं) और आन्दोलन समाप्त हो गया। इसके बाद प्लास्टिक बोरी के दो कारखानों के करीब 1200 मजदूरों ने ढाई महीने पहले न्यूनतम मजदूरी सहित श्रम कानूनों के कुछ प्रावधानों को (ध्यान दें - कुछ प्रावधान, सभी नहीं) लागू करने के लिए आन्दोलन शुरू किया। इन कारखानों के मालिक कांग्रेसी नेता व पूर्व मेयर पवन बथवाल और उनके भाई किशन बथवाल हैं। इन कारखानों में आन्दोलन शुरू होते ही, सारे मालिक एकजुट हो गये, कई पार्टियों के चुनावी नेता भी उनके पक्ष में बयान देने लगे, प्रशासन छल-फरेब में लग गया और मालिकों के गुण्डों और पुलिस ने आतंक फैलाने का काम शुरू कर दिया।
पिछले ढाई महीनों के दौरान फैक्टरी मालिक और प्रशासन कई बार अपने वायदों से मुकरे। फिर कई बार की वार्ताओं और चेतावनियों के बाद विगत 15 अक्टूबर को मजदूर निर्णायक संघर्ष के लिए कचहरी परिसर में भूख हड़ताल पर बैठे। इसके बाद बर्बर पुलिसिया ताण्डव की शुरुआत हुई। मजदूरों को बलपूर्वक धरनास्थल से हटा दिया गया। महिला मजदूरों को पुरुष पुलिसकर्मियों ने घसीट-घसीटकर और ऊपर उठाकर धरनास्थल से दूर फेंक दिया। फिर 'संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा' (जिसके बैनर तले आन्दोलन चल रहा है) के तीन नेतृत्वकारी कार्यकर्ताओं - तपीश मैंदोला, प्रशांत मिश्र और प्रमोद कुमार को और मुकेश कुमार नाम के एक मजदूर को एडीएम (सिटी) कार्यालय में बातचीत के बहाने बुलाया गया और फिर कैण्ट थाने ले जाकर स्वयं सिटी मजिस्ट्रेट अरुण, एडीएम (सिटी) अखिलेश तिवारी और कैण्ट थाने के इंस्पेक्टर विजय सिंह ने उन्हें लात-घूंसों से बर्बरतापूर्वक पीटा। तपीश और प्रमोद बार-बार कहते रहे कि प्रशांत दिल के गंभीर रोगी हैं, अत: उनके साथ मारपीट न की जाये, पर पुलिस अधिकारी अपनी पशुता से बाज नहीं आये। प्रशांत का इलाज दिल्ली के 'एम्स' और 'मैक्स' संस्थानों में चल रहा है। फिर इन चारों लोगों पर शान्तिभंग और 'एक्स्टॉर्शन' की धाराएं लगाकर जेल भेज दिया गया। जेल में भी बार-बार आग्रह के बावजूद न तो इन सबका मेडिकल हुआ, न ही प्रशांत को कोई डाक्टरी सुविधा मुहैया करायी गयी। इन्हें जानबूझकर अबतक जेल में रखा गया है ताकि मारपीट के मेडिकल साक्ष्य जुटाये न जा सकें और इनका मनोबल तोड़ दिया जाये। प्रशासन ने अब गैंग्स्टर एक्ट लगाने की भी पूरी तैयारी कर रखी है। प्रशासन की तैयारी कुछ मार्क्सवादी साहित्य, बिगुल मजदूर अखबार और पेन ड्राइव आदि की बरामदगी दिखाकर ''माओवादी'' बताते हुए संगीन धाराएं लगाने की थी और कुछ अधिकारियों ने मीडिया में इस आशय का बयान भी दिया। लेकिन फिर कुछ पत्रकारों द्वारा ऐसे कदम के उल्टा पड़ जाने के खतरे के बारे में चेतावनी देने तथा व्यापक मजदूर आक्रोश को देखते हुए प्रशासन ने फिलहाल हाथ रोक रखा है। इन चार लोगों के अतिरिक्त अन्य नौ मजदूरों पर भी फर्जी मुकदमे दर्ज किये गये हैं।
यह बताना जरूरी है कि स्थानीय 'चैम्बर ऑफ कॉमर्स', अलग-अलग फैक्टरी मालिक और पुलिस एवं नागरिक प्रशासन के अधिकारी पिछले ढाई महीने से मीडिया में इस आशय का बयान देते रहे हैं कि इस मजदूर आन्दोलन में ''बाहरी तत्व'', ''नक्सली'' और ''माओवादी'' सक्
यहां यह बताना जरूरी है कि जिन्हें ''नक्सली'', ''आतंकवादी'' और ''माओवादी'' कह
फिलहाल गोरखपुर में फैक्टरी मालिकों के इशारे पर प्रशासन का जो नंगा आतंकराज चल रहा है, उसके खिलाफ सात कारखानों के मजदूर धरना और क्रमिक भूख हड़ताल पर बैठे हैं। तपीश, प्रशांत, प्रमोद और मुकेश जेल में बंद हैं। मजदूरों की मांगें स्पष्ट हैं : (1) गिरफ्तार नेताओं को बिना शर्त रिहा करो और फर्जी मुकदमे हटाओ (2) मारपीट के दोषी अधिकारियों के विरुद्ध जांच और कानूनी कार्रवाई शुरू करो, (3) श्रम कानूनों को लागू कराने का ठोस आश्वासन दो।
इस आन्दोलन के पक्ष में हमने भी आर-पार की लड़ाई के लिए सड़क पर उतरने का निश्चय किया है और हमारी भी वही मांगें हैं जो मजदूरों की हैं। गोरखपुर पहुंचने के बाद आज से हम नागरिक सत्याग्रह की शुरुआत कर रहे हैं। इसके अन्तर्गत दो दिनों तक लोक आह्नान के लिए शहर में पदयात्रा एवं जनसभाएं करने के बाद हम आन्दोलनरत मजदूरों के धरना और क्रमिक भूख हड़ताल में शामिल हो जायेंगे। यदि प्रदेश शासन और प्रशासन के कानों तक फिर भी आवाज नहीं पहुंची तो दो दिनों के क्रमिक भूख हड़ताल के बाद हम आमरण भूख हड़ताल शुरू कर देंगे। हम फर्जी मुकदमों, गिरफ्तारी और दमन का सामना करने के लिए तैयार हैं। इस ठण्डे, निर्मम और गतिरोध भरे समय में, व्यापक जनसमुदाय के अन्तर्विवेक को जागृत करने और आततायी सत्ता को चेतावनी देने के लिए यदि आमरण भूख हड़ताल करके प्राण देना जरूरी है, तो हम इसके लिए तैयार हैं और हम अपनी इस भावना को आप तक सम्प्रेषित करते हुए आपसे हर सम्भव सहयोग की अपील करते हैं।
आप इन नंबरों पर संपर्क भी कर सकते हैं:
कात्यायनी - 09936650658, सत्यम - 09910462009, संदीप - 09350457431
ईमेल: satyamvarma@gmail.com, sandeep.samwad@gmail.com
आप क्या कर सकते हैं :
- दिल्ली, लखनऊ, लुधियाना और देश के अन्य शहरों से साथीगण गोरखपुर आकर इस नागरिक सत्याग्रह में शामिल हो रहे हैं। हम आपका भी आह्वान करते हैं।
- हमारा आग्रह है कि नागरिक अधिकारकर्मियों की टीमें यहां आकर स्थितियों की जांच-पड़ताल करें, जन-सुनवाई करें, रिपोर्ट तैयार करें और शासन तक न्याय की आवाज़ पहुंचायें।
- हमारा आग्रह है कि आप अपने-अपने शहरों में, विशेष तौर पर, दिल्ली, लखनऊ और उत्तर प्रदेश के शहरों में इस मसले को लेकर विरोध प्रदर्शन आयोजित करें।
- हमारा आग्रह है कि आप उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव, श्रम मंत्री, श्रम सचिव और गोरखपुर प्रशासन के अधिकारियों को ईमेल, फैक्स, फोन, पत्र और टेलीग्राम के द्वारा अपना विरोध पत्र भेजें और हस्ताक्षर अभियान चलाकर ज्ञापन दें। ये सभी पते, ईमेल पता, फैक्स नं. आदि साथ संलग्न हैं।
साथियो,
गतिरोध और विपर्यय से भरे दिनों में वैचारिक मतभेद अक्सर पूर्वाग्रह एवं असंवाद की शक्त अख्तियार कर लेते हें। अवसरवादी तत्व अक्सर अपने निहित स्वार्थी राजनीतिक खेल और कुत्सा प्रचारों से 'जेनुइन' परिवर्तनकामी जमातों के बीच विभ्रमों-विवादों-पूर्वाग्रहों को जन्म देते और बढ़ाते रहते हैं। हम समझते हैं कि असली कसौटी सामाजिक व्यवहार को बनाया जाना चाहिए। न्याय और अधिकार के 'जेनुइन' और ज्वलंत मुद्दों पर जारी संघर्षों में हमें जरूर कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ खड़े होना चाहिए, तमाम वैचारिक मतभेदों के बावजूद। यही भविष्य की व्यापक एकजुटता की दिशा में पहला ठोस कदम होगा।
गोरखपुर में पुलिसिया आतंक राज की जो बानगी देखने को मिली है, वह भावी राष्ट्रीय परिदृश्य की एक छोटी झलकमात्र है। आपातकाल की पदचापें एक बार फिर दहलीज के निकट सुनायी दे रही हैं। सत्ता जनता के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की तैयारी कर रही है। हम उस युद्ध की चुनौती की अनदेखी नहीं कर सकते। हमें संघर्ष के मुद्दों पर साझा कार्रवाइयों की प्रक्रिया तेज करनी होगी। हमें नागरिक स्वतंत्रता और जनवादी अधिकारों के आन्दोलन को सशक्त जनान्दोलन का रूप देने में जुट जाना होगा। हमें साहस के साथ सड़कों पर उतरकर सत्ता की निरंकुश स्वेच्छाचारिता को चुनौती देनी होगी। हमें साथ आना ही होगा। एकजुटता बनानी ही होगी।
इसी आह्नान और क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
(कात्यायनी)
संयोजक
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