समझौते के बाद आन्दोलन केवल स्थगित हुआ है, समाप्त नहीं --- गोरखपुर का मज़दूर आन्दोलन श्रम कानूनों को लागू कराने की लम्बी लड़ाई की एक कड़ी है
संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के नेताओं ने कहा है कि 22 अक्टूबर को हुए समझौते के बाद आन्दोलन समाप्त नहीं हुआ है बल्कि इसे केवल दस दिन के लिए स्थगित किया गया है। यदि दस दिन के अंदर समझौता पूरी तरह लागू नहीं कराया गया तो ग्यारहवें दिन से मजदूर फिर से सड़क पर उतरकर आरपार की लड़ाई लड़ेंगे। इस बार यदि मालिकान और प्रशासन अपने वायदे से मुकरे तो गोरखपुर से लेकर लखनऊ तक इस संघर्ष को ले जाया जायेगा और प्रदेशव्यापी स्तर पर मजदूरों को एकजुट किया जायेगा। नेताओं ने कहा कि मंडलायुक्त के हस्तक्षेप के बाद यह समझौता हुआ है, यदि वायदाखिलाफी हुई तो इसके ज़िम्मेदार स्वयं मंडलायुक्त होंगे।
समझौते के बाद जारी अपनी प्रेस विज्ञप्ति में मोर्चा ने कहा कि मजदूर पिछले तीन महीने से श्रम कानूनों के महज कुछ प्रावधानों को लागू करने की मांग कर रहे हैं और खेद की बात है कि प्रशासन इतना भी नहीं करा पा रहा है।
मंडलायुक्त के हस्तक्षेप से हुए समझौते के बावजूद फैक्ट्री मालिकों द्वारा काम पर लिये जाने वाले मजदूरों की सूची गेट पर नहीं लगाये जाने के कारण मॉडर्न लेमिनेटर्स लि. और मॉडर्न पैकेजिंग प्रा. लि. के गेट पर चल रहा मजदूरों का धरना शाम तक समाप्त नहीं हुआ था और मजदूरों में जबर्दस्त आक्रोश व्याप्त था। सहायक श्रमायुक्त ने आज फैक्ट्री गेट पर जमा मजदूरों के समक्ष घोषणा की कि दोनों फैक्ट्रियों के सभी पुरुष मजदूरों को दस दिन के भीतर क्रमिक रूप से काम पर वापस लिया जायेगा और काम पर नहीं ली गयी महिला मजदूरों को एक महीने के न्यूनतम वेतन के बराबर क्षतिपूर्ति दी जायेगी। इसके बाद महिला मजदूरों को भुगतान कर दिया गया लेकिन काम पर लिये जाने वाले मजदूरों की सूची नहीं लगायी गयी। वायदे के अनुसार ए.एल.सी. ओ.पी. गुप्ता को उपस्थित मजदूरों की सूची संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा को सौंपनी थी तथा उसकी अन्य प्रतियां कंपनी, मंडलायुक्त तथा श्रम विभाग को देनी थीं, लेकिन शाम 5 बजे तक ए.एल.सी. महोदय सूची उपलब्ध कराये बिना और कोई सूचना दिये बिना कंपनी से फरार हो गये। संघर्ष मोर्चा ने फैक्ट्री मालिक पवन बथवाल एवं किशन बथवाल तथा श्रम विभाग के रवैये की कड़ी निन्दा करते हुए कहा कि वे समझौते का उल्लंघन करके मजदूरों को भड़काने का काम कर रहे हैं। प्रशासन ने तत्काल हस्तक्षेप करके मामले को हल नहीं कराया तो स्थिति विस्फोटक हो सकती है।
मोर्चा ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि गोरखपुर का मजदूर आन्दोलन महज कुछ फैक्ट्री मालिकों के विरुध्द कुछ मजदूरों की लड़ाई नहीं है, यह मजदूरों के जायज़ हकों के लिए व्यापक संघर्ष की एक कड़ी है। पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश के नब्बे प्रतिशत से अधिक कारखानों में श्रम कानूनों के न्यूनतम प्रावधान भी लागू नहीं हैं। मोर्चा इस मुद्दे पर मजदूरों की व्यापक गोलबन्दी करके श्रम कानूनों को लागू कराने के लिए पहल करेगा। इसके साथ ही, वर्तमान श्रम कानूनों का दायरा अभी अतिसीमित है जो मजदूरों को उनके श्रम का उचित मोल तथा यथोचित सामाजिक सुरक्षा दिलाने में अक्षम है। इसलिए मोर्चा श्रम कानूनों की खामियों को दूर करने के लिए भी दबाव बनायेगा।
विज्ञप्ति के अनुसार गोरखपुर के आंदोलन से साबित हो गया है कि श्रम कानूनों को लागू कराने वाली सरकारी एजेंसियां अत्यंत लचर तथा भ्रष्टाचार से ग्रस्त हैं। अधिकांश स्थानों पर ये एजेंसियां मालिकों के एजेंट की भूमिका निभाते हुए श्रम कानूनों के उल्लंघन में मददगार होती हैं। इसलिए श्रम विभाग से लेकर लेबर कोर्ट तक इन एजेंसियों को जवाबदेह, लोकतांत्रिक तथा प्रभावी बनाना भी मोर्चा की मुहिम का हिस्सा होगा।
अन्य संगठनों एवं संस्थाओं के सहयोग से संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों के अमल तथा मजदूरों के हालात पर व्यापक नमूना सर्वेक्षण एवं अध्ययन करायेगा। इसमें नरेगा के मजदूरों की दशा को भी शामिल किया जायेगा। इस काम के लिए जाने-माने अर्थशास्त्रियों एवं श्रम कानून के विशेषज्ञों से भी सम्पर्क किया जा रहा है। सर्वेक्षण के बाद तैयार रिपोर्ट को केन्द्र एवं राज्य सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया जायेगा।
मोर्चा ने कहा कि कुछ उद्योगपति बार-बार ऐसे बयान दे रहे हैं कि श्रमिक अशान्ति विकास में बाधक है। ये लोग मजदूरों द्वारा अपने न्यायसंगत एवं कानूनसम्मत अधिकार मांगने पर अशान्ति का हौवा खड़ा करते हैं और सारा दोष मजदूरों पर मढ़ देते हैं। हम ऐसे आरोपों की कटु निन्दा करते हैं और पूछना चाहते हैं कि क्या विकास का यही मतलब होता है कि उद्योगों में काम करने वाली बहुसंख्यक आबादी को न्यूनतम वेतन भी न मिल सके। क्या गुलामों जैसे हालात में मजदूरों की हड्डियां निचोड़कर ही विकास हो सकता है! यदि श्रम कानून ही विकास में सबसे बड़ी बाधा हैं तो सरकार सारे श्रम कानूनों को खत्म क्यों नहीं कर देती?
मोर्चा ने इस आन्दोलन में गोरखपुर के तमाम बुध्दिजीवियों, पत्रकारों, मजदूर-कर्मचारी यूनियनों तथा विभिन्न राजनीतिक-सामाजिक संगठनों एवं आम नागरिकों की ओर से मिले व्यापक समर्थन के लिए उनका आभार व्यक्त किया। गोरखपुर के अलावा, लखनऊ, दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद, मुंबई, पटना, कोलकाता, लुधियाना, चंडीगढ़, इलाहाबाद, कानपुर, वाराणसी, बदायूं, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश आदि से बड़ी संख्या में बुध्दिजीवियों व जनसंगठनों ने जिला प्रशासन और राज्य सरकार को ज्ञापन भेजे, अधिकारियों को फोन किये, बयान जारी किये तथा हमारे समर्थन में बैठकें व प्रदर्शन आयोजित किये। हमारे पास सैकड़ों की संख्या में फोन, ईमेल तथा पत्र आये हैं। सभी संघर्षरत मजदूरों की ओर से मोर्चा इन सभी समर्थकों को हार्दिक धन्यवाद देता है।
गोरखपुर मजदूर आन्दोलन समर्थक नागरिक मोर्चा ने हमें सूचित किया है कि वह गोरखपुर मजदूर आन्दोलन की स्थिति से देशव्यापी स्तर पर बुध्दिजीवियों, जनाधिकार कर्मियों और जनसंगठनों को अवगत कराता रहेगा और यदि प्रशासन समझौते पर पूरी तरह अमल नहीं कराता है तो जगह-जगह से सत्याग्रहियों के जत्थे फिर से गोरखपुर पहुंचने की तैयारी शुरू कर देंगे। आने वाले कुछ महीनों तक नागरिक मोर्चा समझौते के अमल पर कड़ी निगरानी रखेगा।
1 कमेंट:
श्रम कानूनों को लागू कराने की लड़ाई वास्तव में लंबी है। कोई भी उद्योग कानूनों की पालना नहीं करता। यहाँ तक कि मजदूरों द्वारा मांग करने पर भी सरकारी ऐजेंसियाँ उसे लागू कराने में असमर्थ रहती हैं। इस लड़ाई का विस्तार होना चाहिए। पूरे देश को इस की आवश्यकता है।
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