12 मज़दूर नेता ज़मानत पर रिहा, आन्दोलन और तेज करने का ऐलान
प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और मानवाधिकार आयोग को पत्र लिखकर प्रशासन के पक्षपात और दमन-उत्पीड़न की जानकारी दी
नई दिल्ली, 26 मई। गोरखपुर में पिछले 20 मई को गिरफ्तार किए गए 12 मज़दूर नेता आज ज़मानत पर रिहा कर दिए गए। रिहा होने के बाद संयुक्त मज़दूर अधिकार संघर्ष मोर्चा के तपीश मैन्दोला ने कहा कि मज़दूरों की मांगों को लेकर आन्दोलन अब और तेज किया जाएगा।
उन्होंने कहा कि मालिकान की शह पर प्रशासन डरा-धमकाकर और लाठी-गोली-जेल के सहारे मज़दूर आन्दोलन को कुचलने की कोशिश कर रहा है लेकिन वह कामयाब नहीं होगा। मज़दूर अपने मूलभूत अधिकारों की लड़ाई लड़ रहे हैं और वे अब पीछे नहीं हटेंगे। तपीश ने कहा कि वी.एन. डायर्स में जबरन तालाबन्दी करके और अंकुर उद्योग में मज़दूरों पर गोलियां चलवाकर मालिकों ने यह लड़ाई मज़दूरों पर थोपी है। मगर प्रशासन मालिकों के सुर में सुर मिलाकर उल्टा हमें ही अराजक और विकास-विरोधी बता रहा है।
इस बीच संयुक्त मज़दूर अधिकार संघर्ष मोर्चा की ओर से प्रशान्त ने आज प्रधानमंत्री,राष्ट्रपति और मानवाधिकार आयोग को पत्र भेजकर मज़दूरों के दमन-उत्पीड़न और गोरखपुर ज़िला प्रशासन तथा पुलिस के पक्षपातपूर्ण रवैये की जानकारी दी। पत्र में लिखा गया है कि मज़दूरों को शान्तिपूर्ण ढंग से धरना-प्रदर्शन तक नहीं करने दिया जा रहा है और किसी अधिकारी तक से मिलने नहीं दिया जा रहा है। चिलुआताल के थानाध्यक्ष गजेन्द्र राय बरगदवा में घर-घर जाकर मज़दूरों को धमका रहे हैं और कारखाने में काम पर जाने के लिए ज़ोर-ज़बर्दस्ती कर रहे हैं।
मज़दूर आन्दोलन का समर्थन करने के कारण गिरफ्तार की गयी बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की छात्रा और सामाजिक कार्यकर्ता श्वेता ने भी पत्र भेजकर राष्ट्रीय महिला आयोग से पुलिस द्वारा की गयी बदसलूकी और डराने-धमकाने की शिकायत की है। पांच दिन बाद जेल से रिहा हुई श्वेता ने कहा कि चिलुआताल के थानाध्यक्ष गजेन्द्र राय ने उन्हें ''देख लेने'' और कैरियर बर्बाद कर देने की धमकी दी। गिरफ्तार करने के बाद उन्हें तथा एक मज़दूर की बुजुर्ग मां सुशीला देवी को महिला थाने में भी डराया-धमकाया गया।ज्ञातव्य है कि गत 20 मई को जब पांच अनशनकारियों के साथ मज़दूर ज़िलाधिाकारी से मिलने जा रहे थे तो पुलिस ने उन पर कई बार लाठीचार्ज किया था जिसमें 25 मज़दूरों को चोटें लगी थीं। पुलिस ने 73 मज़दूरों को हिरासत में लिया था जिनमें से 59 मज़दूरों को देर रात छोड़ दिया गया था लेकिन तपीश मैन्दोला और दो महिला कार्यकर्ताओं श्वेता तथा सुशीला देवी सहित 14 मज़दूर नेताओं को जेल भेज दिया गया था। उन पर विभिन्न जमानती एवं गैर-जमनाती धाराओं में तीन-तीन मुकदमे कायम किए गए थे।
इस बीच संयुक्त मजदूर अधिकार संघर्ष मोर्चा ने आज राज्य के प्रमुख सचिव, श्रम को दिए गए ज्ञापन में कहा है कि गोरखपुर में तमाम कारखानों में श्रम कानूनों का उल्लंघन हो रहा है और श्रम विभाग के अधिकारी खुलेआम पक्षपात कर रहे हैं जिसके कारण यहां निरन्तर श्रमिक अशान्ति बनी हुई है। इसलिए शासन के स्तर से उच्च स्तरीय जांच टीम भेजकर यहां सभी कारखानों की तथा स्थानीय श्रम कार्यालय की भूमिका की जांच करायी जाए। गत 19 मई को मज़दूरों को बाहर रखकर पक्षपातपूर्ण ढंग से केवल वी.एन. डायर्स के मालिकों के साथ एकतरफा वार्ता आयोजित कर निर्णय करने वाले श्रम विभाग के अधिकारियों पर कार्रवाई की जाये।
इस बीच गोरखपुर के दोनों औद्योगिक क्षेत्रों, कार्यालयों और शहर के प्रमुख स्थानों पर नुक्कड़ सभाओं तथा रिहायशी इलाकों में जनसम्पर्क के जरिए उद्योगपतियों तथा प्रशासन की मिलीभगत का भंडाफोड़ करने और मजदूरों की मांगों के पक्ष में जनसमर्थन जुटाने का अभियान जारी है।
देश के विभिन्न भागों से गोरखपुर में मजदूर आन्दोलन की निन्दा और मायावती सरकार पर दबाव बनाने का अभियान भी लगातार जारी है। आज मुंबई में गरीबों को उजाड़ने के खिलाफ मेधा पाटकर के नेतृत्व में चल रही भूख हड़ताल और प्रदर्शन के दौरान भी गोरखपुर के मजदूरों के दमन का सवाल उठाया गया और संघर्षरत मजदूरों के साथ एकजुटता जाहिर की गयी। बंगलूर से सामाजिक कार्यकर्ता कावेरी इन्दिरा के नेतृत्व में विभिन्न सामाजिक कर्मियों ने मुख्यमंत्री तथा अन्य अधिकारियों को फोन तथा फैक्स द्वारा अपना विरोध दर्ज कराया। कल कोलकाता में विभिन्न संगठन प्रदर्शन कर राज्यपाल के माध्यम से मुख्यमंत्री मायावती के नाम ज्ञापन भेजकर उत्तर प्रदेश में मज़दूरों के बढ़ते दमन पर विरोध जताएंगे।
कृपया इस ऑनलाइन याचिका पर हस्ताक्षर करके मजदूरों के दमन का विरोध करें : http://bit.ly/kvIuIq
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